मनुष्य के पास अगर कुछ है, तो वो है उसकी सोच और कल्पना शक्ति. आज हम अपने आस-पास, अपने सामने जो भी देख रहे हैं, ये इन दोनों की ही बदौलत है. चाहे वो इतिहास बन चुके बड़े-बड़े क़िले हों या हमारे सामने मौजूद बीते ज़माने के खंडहर. या फिर आज भी अपने सुनहरे अतीत की गवाही देते पत्थर और खंभों के कुछ ढांचें.

हिन्दुस्तान की मिट्टी ने जितना कुछ देखा है, शायद कहीं की मिट्टी ने देखा हो. यहां की आबो-हवा में जो महक है, वो इसके भिन्न और गौरवशाली इतिहास की गवाही देती है. इस इतिहास में कभी राजपूतों की महक मिलेगी, तो कभी मुगलों की परछाई. शायद भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है, जहां हर तरह की विरासत के छाप देखने को मिलते हैं, पुरानी इमारतों में. चाहे वो हवा महल हो, चाहे वो लाल किला हो या फिर कैलाश मंदिर और क़ुतुब मीनार.

जिन इमारतों, जिस सभ्यता को हमें सहेज कर रखना चाहिए, आज हमारे बीच से उठे लोग और राजनेता उसी पर राजनीति कर रहे हैं, उस को देश का अपमान बना रहे हैं. ये किसी भी देश के लिए सबसे दुःख की बात होगी कि विश्वस्तर पर उसे शर्मिंदा करने में सबसे आगे वही लोग हैं, जिन्होंने उसकी मिट्टी, उसके हवा-पानी को ख़ुद में महसूस किया है.

मुग़लकालीन इमारतों और मुस्लिम शासकों द्वारा बनायी गयी इमारतों पर इस वक़्त इतना ऐतराज़ जताया जा रहा है कि हमने सोचा क्यों न इन्हें भारत से हटा कर देखा जाए. हमने देश की प्रमुख मुग़लकालीन और मुस्लिम शासकों द्वारा बनायी गयी इमारतों को अपने नक़्शे से हटाने की कल्पना की.

फ़र्ज़ करिये की अगर हरियाली के बीच दिखने वाला क़ुतुब मीनार ना हो, तो वहां क्या होता. ऐसे ही 8 इमारतों की जगह हमने बनाई आज के हिसाब से कुछ नई चीज़ें. परिणाम आप ख़ुद देख सकते हैं:

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आज जो भी हो रहा है उसे राहत इंदौरी के ये लफ़्ज़ बख़ूबी समझाते हैं-

सभी का ख़ून है शामिल यहां कि मिट्टी में,किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है.

Concept by: Akanksha Thapliyal