विश्वास और अंधविश्वास के बीच तिनके भर का फ़र्क होता है. पढ़े-लिखे लोग भी ढोंगी, पाखंडियों की बातों में आकर कई बार ऐसे कृत्य कर बैठते हैं कि सोचकर रूह कांप जाती है.

रोज़ाना पाखंडी बाबओं के पर्दाफ़ाश की ख़बरें इस बात का सुबूत है कि किस तरह से सैंकड़ों लोग एक अज्ञानी के ऊपर बिना-सोचे समझे भरोसा कर लेते हैं. अंधविश्वास का शिकार पढ़े-लिखे लोग तो होते ही हैं, लेकिन सबसे ज़्यादा संवेदनशील होते हैं पिछड़े और कम पढ़े-लिखे लोग, जिन्हें समाज में उचित सम्मान और ज़रूरी सुविधाएं नहीं मिलती.

भूत-प्रेत, पिशाच, डायन का ज़िक्र हमें दादी-नानी की कहानियों में मिलता है. लेकिन बहुत से लोग इन पर विश्वास भी करते हैं. इन पर विश्वास करने वालों का ये भी मत है कि भूत और डायन किसी के शरीर पर कब्ज़ा कर के उनको अपनी हुक़्म का ग़ुलाम बना लेते हैं. इसके बाद ये लोग अपने नाते-रिश्तेदारों का इलाज करवाने के लिए ओझा, तांत्रिक और ढोंगी बाबाओं पास जाते हैं.

झाड़-फूंक का वार्षिक मेला भी कई इलाकों में लगाया जाता है. भारत में इश तरह के मेले यूपी, बिहार, राजस्थान के कुछ इलाकों में लगाए जाते हैं.

नेपाल में भी भूत और डायन उतारने का वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है. नेपाल के धनुषा ज़िले में कमला नदी के किनारे भूत उतारने का मेला लगता है, यहां के स्थानिय निवासियों का कहना है कि ये मेला सैंकड़ों सालों से कमला नदी के किनारे लगता आया है.

यहां औरतों के शरीर से बुरी आत्माओं को उतारने के लिए उन्हें डंडों से पीटा जाता है. यहां ओझा, पल्टन मुखिया एक औरत, रिंकू यादव के शरीर से भूत उतार रहा है.

उसकी सहायिका इलाज के दौरान ‘मरीज़’ के कान में सरसों का तेल डालती है.

इसके बाद पीड़ित महिला को ज़बरदस्ती पानी में डुबोया जाता है ताकि उसके शरीर से बुरी आत्मा निकल जाए.

इलाज के दौरान महिला स्वीकार करती है कि उसमें बुरी आत्मा है और अब वो उसके शरीर को छोड़ रही है.

इस महिला को इसके ससुरालवाले इस मेले में लाए हैं, उन्हें शक था कि महिला पर बुरा आत्मा का साया था. इस मेले में इलाज के लिए हर महिला 1500 पोंड यानि 2 लाख से भी ज़्यादा नेपाली रुपये अदा करते हैं.

हो सकता है कि उस महिला को कोई बीमारी हो, लेकिन जानकारी के अभाव में हर बीमारी को भूत-प्रेत, पिशाच, अंधविश्वास आदि का ही नाम दे दिया जाता है. अगर ऐसे ही घटनाएं घटती रही तो समाज का कभी विकास नहीं हो सकता. 

Source- The Sun