‘अब तो जेल में जाना पड़ेगा, जेल की रोटी खानी पड़ेगी… जेल का पानी पीना पड़ेगा.’
बचपन की ये लाइनें याद हैं? उस वक़्त शायद हमें इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि जेल क्या होती है. इसके बाद जब बड़े हुए, तो पता चला कि जेल का असली मतलब होता क्या है. अभी तक हमनें जेल के बारे जितना भी जाना-सुना है, उसका ज़रिया मीडिया या फ़िल्में रही हैं. पर क्या सच में एक कैदी की ज़िंदगी बिल्कुल वैसी होती है, जैसे हम सुनते आ रहे हैं.
इस सवाल का जवाब एक कैदी ने सवाल-जवाब की वेबसाइट Quora पर दिया है. आइए जानते हैं कि असल ज़िंदगी में एक कैदी को किन-किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है.
नॉर्थ इंडिया का रहने वाला ये शख़्स एक उद्योगपति था, जिसने 2005 से लेकर 2008 तक यानि पूरे 3 साल भारतीय जेल में बिताए. इस शख़्स ने बताया कि सभी कैदियों को सुबह करीब 5 से 5.30 के बीच उठना होता है. इसके बाद 6.30 बजे के करीब उन्हें नाश्ता दिया जाता था. सप्ताह में एक बार दो लोग मिलने के लिए आते थे, लेकिन बस वो जेल के अंदर का हाल देखना उचित नहीं समझते थे.
इसके अलावा जेल के अंदर दो तरह के कैदी होते हैं. एक होते हैं आम, तो दूसरे ख़ास यानि सेलेब्स.
नेताओं और उनके रिश्तेदारों को ख़ास तरह का ट्रीटमेंट दिया जाता था. उनके लिए एक अलग कमरा, चेयर, अच्छा खाना से लेकर टीवी तक सारी सुख-सुविधाएं होती हैं. साथ ही कुछ लोगों को कोर्ट से घर का खाना खाने की परमिशन भी होती है. यहीं नहीं, उनके कमरे में एसी के साथ-साथ मच्छरदानी, चटाई, बेड और टेबल भी होता है.
इन लोगों को फ़ोन पर बात करने की भी आज़ादी होती है और उन्हें कपड़े भी धुले-धुलाए ही मिलते हैं. इसके साथ-साथ उनकी यौन इच्छाओं की पूर्ति भी की जाती है. वहीं अगर इन लोगों से कोई भी पंगा लेने की कोशिश करता है, तो उसे अच्छे से सबक सिखा दिया जाता है. इस शख़्स ने ये भी बताया कि मीडिया में अकसर जेल के बारे में झूठी ख़बरें दिखाई जाती हैं.
वहीं आम कैदियों को किसी भी तरह की कोई छूट नहीं होती है, उन्हें वही जेल का गंदा खाना खाना पड़ता है. छोटे से कमरे में बिना मच्छरदानी के गुज़र-बसर करना होता है. गंदे शौचालय और बिना धुले कपड़ों के साथ ज़िंदगी नर्क सी लगती है. हमें अधिकारियों के प्रति सम्मान और ढंग से रहना सिखाया जाता है. अगर ज़रा सी बदतमीज़ी की, तो आपको तुरंत सज़ा दी जायेगी.
कई बार वीआईपी लोग बीमारी का प्रमाणपत्र लेकर अस्पताल पहुंच जाते हैं और 9-10 महीने तक वहीं आराम से ज़िंदगी बिताते हैं. शुरू के 15 महीने मैंने भी बहुत दिक्कतें झेली, लेकिन इसके बाद मैंने एक नेता के दूर के रिश्तेदार को दोस्त बना लिया, जिसके बाद मुझे बहुत सी चीज़ों का आराम हो गया. यही नहीं, 10 महीनों बाद मुझे दूसरी जेल में भी भेज दिया गया.
इस बात को पांच साल हो गए और आज भी उस दौर को सोच कर भी मैं कांप जाता हूं. भारतीय जेल में भी बिलकुल भारतीय समाज की तरह भेदभाव किया जाता है. ऐसा समझ लो पैसा और पावर है, तो सब है वरना ज़िंदगी नर्क है.
Feature Image Source : The Better India