उरी हमला तो याद ही होगा आपको. एलओसी को पार कर कि गई इस सर्जिकल स्ट्राइक को भारतीय सेना के पैराट्रूपर्स ने अंज़ाम दिया था. भारतीय सेना के इन पैराट्रूपर्स की गिनती दुनिया की बेस्ट स्पेशल फ़ोर्सेस में की जाती है. इन्हें किसी भी परिस्थिति में अपने मिशन को पूरा करने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है. चलिए इसी बात पर आपको बताते हैं कि इंडियन आर्मी के ये पैराट्रूपर्स कैसे तैयार होते हैं.
Paratroopers (Airborne)Elite Troops होते हैं. केवल पैराट्रूपर्स ही पैरा कमांडो बनने के लिए आवेदन कर सकते हैं. इसका सेलेक्शन प्रोसेस बहुत कठिन है. Para Commandos(Para SF) भारतीय सेना की पैराशूट रेजिमेंट की स्पेशल फ़ोर्स यूनिट है.
सेलेक्शन प्रोसस होता है कठिन
एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सेना में करीब 7500 पैराट्रूपर्स और 2500 Special Para Commandos हैं. इनमें से कुछ का चयन भारतीय सेना नई भर्तियों में से करती है, तो कुछ अपनी इच्छा से इसमें शामिल होते हैं. यहां आपको ये बताना ज़रूरी है कि पैराट्रूपर्स के लिए चुना जाना भी बहुत कठिन होता है.
इसमें शामिल होने वाले जवान को फ़िजिकली फ़िट होने के साथ ही मानसिक तौर पर भी काफ़ी मज़बूत होना जरूरी है. इसके अलावा उसमें सेल्फ़ मोटिवेशन और कुछ कर गुज़रने का जज़्बा भी होना चाहिए.
पहले चरण को सिर्फ़ 10 फ़ीसदी जवान पास कर पाते हैं
पहले चरण की प्रक्रिया में इन्हें 3 महीने की कड़ी ट्रेनिंग से गुज़रना पड़ता है, जिसमें कई चरणों में शारीरिक और मानसिक परीक्षण होते हैं. इसके बाद इन पैराट्रूपर्स को पैराशूट ट्रेनिंग सेंटर (पीटीएस) आगरा भेजा जाता है. यहां सिर्फ़ 10 फ़ीसदी जवान ही पास हो पाते हैं.
इसे पास करने वाले जवानों को पैरा विंग्स दिए जाते हैं. सेलेक्ट हुए जवानों को 23 किलोग्राम वज़न लेकर करीब 70-100 किलोमीटर तक दौड़ने के लिए ट्रेंड किया जाता है. ये ट्रेनिंग के लंबे और कठिन चरणों में से एक है. इस दौरान उन्हें अपमान, थकावट, मानसिक और शारीरिक यातना आदि से निपटने की कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है.
‘Hell’s Week’
कुछ रिपोर्ट्स का कहना है कि ट्रेनिंग के इसी चरण के दौरान कई जवानों की मौत भी हो जाती है. तीन महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद उन्हें पांच सप्ताह की ट्रेनिंग जिसे ‘Hell’s Week’ कहा जाता है, के लिए भेजा जाता है.
यहां पर जवानों को अत्यधिक कठिन टास्क दिए जाते हैं. उन्हें नींद से भी वंचित रखा जाता है. ऐसा तनाव से लड़ने और शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है. यहां पर उन्हें किसी भी परिस्थिति में टूटने से बचने और किसी भी तरह के भटकाव से बचने की ट्रेनिंग दी जाती है.
अकेले जंगल में सर्वाइव करने के लिए किया जाता है ट्रेन
यहां पहले चरण में उन्हें जंगल में जीवित रहने की ट्रेनिंग दी जाती है. दूसरे चरण में उन्हें आपात स्थिति में कैसे मदद मांगनी और कैसे खु़द को कैद होने से बचाना है के लिए तैयार किया जाता है. और तीसरे चरण में उन्हें कैदी बनाए जाने के बाद किस तरह से दुश्मन की यातनाओं का सामना करना है, ये सिखाया जाता है.
इस तरह कई चरणों में Paratroopers की ट्रेनिंग करीब 3.5 सालों तक चलती है, जो विभिन्न देशों में जवानों को दी जाने वाली सबसे कड़ी ट्रेनिंग में से एक है. ट्रेनिंग के दौरान इन पैराट्रूपर्स को हवा में, पानी में और जंगल में घात लगाकर मारने की तकनीक सिखाई जाती है.
इस दौरान न जाने कितने ही जवान ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ देते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, 1000 आवेदकों में से पैराट्रूपर्स बनने वाले सिर्फ़ 80-100 लोग ही होते हैं. कहते हैं कि एक पैराट्रूपर बैठे हुए, लेटकर, दौड़ते हुए यहां तक कि शीशे में देखकर भी निशाना लगा सकते हैं.
पैराशूट रेजीमेंट के प्रकार
पैराशूट रेजीमेंट को दो भागों में तैयार किया जाता है. इसमें एक भाग में पैराशूट 3, 4, 5, 6 और 7 पारंपरिक पैराशूट फ़ोर्स. दूसरे में 5 पैराशूट स्पेशल युनिट होती हैं: 1 पैरा (एस एफ़), 2 पैरा (एस एफ़), 9 पैरा (एस एफ़), 10 पैरा (एस एफ़) और 21वीं पैरा (एस एफ़).
इसमें 1 पैरा (एसएफ़) को पहाड़ी इलाके में लड़ने के लिए तैयार किया जाता है. 9 पैरा (एस एफ़) को जंगली इलाकों में युद्ध करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. वहीं 10 पैरा (एस एफ़) को सबसे मुश्किल ट्रेनिंग दी जाती है. इसे रेगिस्तान और उसके पार के सभी युद्धों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
अब तो आप समझ गए होंगे कि पैराट्रूपर्स बनने के लिए हमारे देश के जवानों को कितनी मेहनत करनी पड़ती है.