लोकतंत्र से पहले भारत में साम्राज्यवाद था. अंग्रेज़ सरकार ने कई सालों तक हम पर राज किया. अंग्रेज़ों से पहले (अंग्रेज़ों के वक़्त भी) हिन्दुस्तान में राजतंत्र था. हमारा देश बहुत सारे प्रांतों में बंटा हुआ था, कुछ हद तक ये विभाजन भी साम्राज्यवाद का कारण था.
अंग्रेज़ों के अलावा भी बहुत से विदेशी राजाओं ने भारत के धन-दौलत का लाभ उठाया.
गुज़रते वक़्त के साथ आज़ादी मिली और भारत में भी लोकतंत्र आया. संविधान की रचना के साथ ही नेताओं ने देश को विकसित करने की सौगंध खाई.
अब यहां एक सवाल ये आता है कि आख़िर सैंकड़ों राजाओं और राजघरानों के वंशज कहां गये? ऐसा तो नहीं है कि अंग्रेज़ों ने हर राजा को मौत की नींद सुला दिया था? जिनको अंग्रेज़ों ने मार दिया था उनके भी कुछ वंशज तो आज भी ज़िन्दा होंगे. तो फिर आज 21वीं सदी में वो क्या कर रहे हैं? कहां हैं?
भारत में मौजूद राजघरानों की शान-ओ-शौक़त और दौलत में अंग्रेज़ों के आने के बाद बहुत गिरावट आई. तमाम महाराजा, महारानी, नवाब, बेग़म, निज़ाम, राजकुंवर आदि सभी की न सिर्फ़ दौलत बल्कि उनकी पदवी और रुतबे को भी अंग्रेज़ों ने छीन लिया.
इनमें से कुछ राजघराने के लोग तो बड़े उद्योगपति, नेता बन गये लेकिन बहुत से राजघराने के वंशज आज ग़रीबी में दिन काट रहे हैं. न तो उनके सिर पर छत है और न ही समाज में कोई सम्मान. इतिहास में जिनके पूर्वज हो गये हैं अमर वो आज डूबे हैं कर्ज़ में, जी रहे हैं गुमनामी के अंधेरों में.
गुमनामी में जी रहे देश के कुछ राजपरिवारों के वंशज की कहानियां:
1. Ziauddin Tucy, बहादुर शाह ज़फर के वंशज
आख़री मुग़ल शासक बहादुर शाह ज़फर की 6वीं पीढ़ी के वंशज हैं ज़ियाउद्दीन. किराये के मकान में रहने वाले ज़ियाउद्दीन को आज भी उम्मीद है कि सरकार उनके पुरखों की ज़मीन-जायदाद, दौलत लौटा देगी. ज़ियाउद्दीन के पड़ोसियों को भी इस बात इल्म नहीं है कि उनके पड़ोस में मुग़लों का वारिस रहता है. ज़ियाउद्दीन अपने बच्चों के लिए एक अच्छा भविष्य चाहते हैं. अपनी गुहार लेकर वो राष्ट्रीय मानवाधिकार कमीशन के दरवाज़े पर भी दस्तक दे चुके हैं, पर उन्हें कोई मदद नहीं मिली.
2. सुल्ताना बेग़म, बहादुर शाह ज़फर के पड़-पोते की बीवी
सुल्ताना बेग़म के पति, राजकुमार मिर्ज़ा बेदर बख़्त बहादुर शाह के पड़-पोते थे. 1980 में पति की मृत्यु के बाद सुल्ताना का गुज़ारा सरकार द्वारा दिये जाने वाले 6000 रुपये मासिक भत्ते से चलता है.
हावड़ा में 2 कमरे के किराये के मकान में रहती हैं सुल्ताना. सुल्ताना के 6 बच्चे हैं और सबकी ज़िम्मेदारी उन्हीं पर है.
सुल्ताना के पास ऐसी बहुत सी तस्वीरें हैं, जो उनकी बात को सच साबित करते हैं.
3.मुकर्म जाह, उस्मान अली ख़ान, हैदराबाद के आख़री निज़ाम
निज़ाम के आख़री वारिसों में से एक हैं मुकर्रम जाह, जो इस्तानबुल में रहते हैं. उनके बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, सिवाय इसके कि वो बहुत ग़रीबी में दिन गुज़ार रहे हैं.
उस्मान अली ख़ान हैदराबाद के आख़री निज़ाम थे. किसी ज़माने में वो दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे (1937 Time Magazine के अनुसार). निज़ाम बड़े रंगीन मिजाज़ी थे. लगभग 86 औरतों से उनके प्रेम संबंध थे और तकरीबन 100 नाजायज़ संतानें थीं. इस एक आदत के कारण 1990 तक उनकी दौलत के वारिसों की संख्या 400 के पार पहुंच गई.
निज़ाम की पत्नियों और 14,718 दरबारियों ने उनकी दौलत को बर्बाद कर दिया. इसके अतिरिक्त हमारे पास निज़ाम की वंशावली के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है.
4. अवध राजवंश का आख़िरी राजकुमार
अवध राजवंश के आख़िरी राजकुमार, अलि रज़ा की पिछले साल सितंबर में मृत्यु हो गई. रज़ा, उनकी बहन सकीना और मां बेग़म विलायत महल दिल्ली के मालचा महल में रहते थे.
1970 के आस-पास ये परिवार सुर्खियों में आया. नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के एक फ़र्स्ट क्लास लाउंज में एक महिला, अपने दो बच्चों, शिकारी कुत्तों के एक झुंड और कुछ नौकरों के साथ पहुंची और भारत सरकार से अपनी दौलत वापस करने को कहने लगी. बहुत शोर-शराबे और मीडिया कवरेज के बाद बेग़म को लखनऊ में एक बंगला दिया गया.
बेग़म को डीडीए फ़्लैट देने की सिफ़ारिश की गई, पर वो महल में रहना चाहती थीं. सरकार ने उन्हें 14वीं शताब्दी का एक महल रहना को दिया, बाद में यही ‘मालचा महल’ के नाम से जाना जाने लगा. ये परिवार किसी से मिलता-जुलता नहीं था. लोगों के बीच एक अफ़वाह भी उड़ाई गई कि ये महल भूतहा है. 1993 में बेग़म ने आत्महत्या कर ली. 4 साल पहले सकीना की मृत्यु हुई.
इस वंश का आख़री हिस्सा अलि रज़ा की भी मृत्यु सितंबर 2017 में हुई. दुनिया को रज़ा की मौत की ख़बर नवंबर 2017 में मिली.
5. टीपू सुल्तान के वंशज
मैसूर के शेर कहे जाने वाले टीपू सुल्तान के 12 बेटे थे. किसी समय अपने युद्ध कौशल के लिए विश्व भर में मशहूर टीपू सुल्तान के बेटों का वंश आज गुमनामी की ज़िन्दगी जी रहा है. इंडिया टुडे के एक लेख के मुताबिक, टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने उनके बेटों को कोलकाता के टॉलीगंज की एक हवेली में रहने भेजा. टीपू के 7 बेटों का कोई भी जीवित पुत्र नहीं है. बाकी 5 में से सिर्फ़ मुनीरुद्दीन और ग़ुलाम मोहम्मद के विषय में जानकारी उपलब्ध है. ग़ुलाम मोहम्मद ने 1872 में एक Trust की स्थापना की थी. वक़्त का सितम कुछ यूं हुआ कि वही ट्रस्ट आज ग़ुलाम मोहम्मद के वंशजों को आर्थिक सहायता देने में असमर्थ है.
गुज़र-बसर करने के लिए टीपू के वंशज छोटे-मोटे काम करने पर मजबूर हैं.
6. राजा ब्रजराज क्षत्रिय बिरबर चामुपति सिंह, ओडिशा के आख़िरी राजा
किसी ज़माने में भारत के राजसी ठाठ-बाट का केंद्र-बिंदू थे तिगीरिया के महापात्र, राजा ब्रजराज. उनके पास 25 महंगी गाड़ियां थी. 13 बाघ और 28 चीते मारकर उन्होंने देशभर में एक अच्छे शिकारी का रुतबा हासिल किया था.
राजा ब्रजराज की उम्र अब 90 से ज़्यादा हो चुकी है. उनके घरवाले भी उन्हें छोड़कर जा चुके हैं. किसी ज़माने जो राजा के रहमो-करम पर जीते थे, आज उन्हीं की सहायता से ये राजा अपना जीवनयापन कर रहे हैं.
7. कश्मीर के राजा हरि सिंह के वंशज
भारत की आज़ादी के वक़्त जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह थे. हरि सिंह ने भारत के साथ अपना राज्य मिलाने का निर्णय लिया. उस निर्णय के बाद से अब तक कश्मीर में शांति स्थापित नहीं हो पाई है.
हरि सिंह की चार पत्नियां थीं. सबसे छोटी पत्नी, महारानी तारा देवी के बेटे करन सिंह, अभी राज्यसभा के सदस्य हैं. करन, कश्मीर के आखरी राजा के उत्तराधिकारी हैं.
8. सिंधिया राजवंश, ग्वालियर
ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के वंशज आज भारत की राजनीति में अहम पदों पर तैनात हैं. राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया राजवंश से ही हैं.
ज्योतिरादित्यराव माधवराव सिंधिया इस राजवंश के आख़री राजा, जीवाजीराव सिंधिया के पोते हैं. ज्योतिरादित्यराव अभी मध्य प्रदेश के गूना ज़िले से लोक सभा सांसद हैं.
दक्षिण के चोला, पांड्या राजवंशों के बारे में बहुत खोजने पर भी ज़्यादा जानकारी नहीं मिली. जितने मुंह, उतनी बातें वाली बात हो रही थी इस विषय पर.
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