दुनियाभर में प्लास्टिक वेस्ट की समस्या एक विकराल रूप धारण कर चुकी है. दुनियाभर के वैज्ञानिक इस समस्या से निजात पाने के लिए नई-नई रिसर्च कर रहे हैं. कई उपाय भी निकाले गए हैं लेकिन प्लास्टिक वेस्ट की इस भयानक समस्या का 1 प्रतिशत भी हम कम नहीं कर पाए हैं. भारत में भी इस समस्या का हल करने के कई तरीके अपनाये जा रहे हैं.
गौरतलब बात है कि साल की शुरुआत में पीएम नरेंद्र मोदी ने देश में बेहतर कचरा प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए 3Rs – Reduce, Reuse और Recycle के ‘गोल्डन प्रिंसिपल’ के कार्यान्वयन की आवश्यकता के बारे में बात की थी.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने प्लास्टिक सहित रिसाइकिल किये जा सकने वाले कचरे के बेहतर निपटान किया है. मगर ये भी सच है कि ‘ठोस प्लास्टिक की मात्रा, जिसका उत्पादन किया जा रहा है और कितना वेस्ट इकठ्ठा किया जा रहा है और कितना रीसाईकल हो रहा है’, के बीच काफ़ी बड़ा अंतर है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर दिन 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, इसमें से ज़्यादातर वो प्लास्टिक है जो केवल एक बार यूज़ करके फ़ेंक दिया जाता है और जो बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक नहीं है.
TOI की में छपी एक खबर के मुताबिक़, हर दिन इकट्ठे होने वाले प्लास्टिक वेस्ट का छठवां हिस्सा देश के प्रमुख 60 शहरों का योगदान है. वहीं दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों से 50% से अधिक प्लास्टिक कचरा आता है. मगर इसमें चिंताजनक बात ये है कि प्लास्टिक कचरे की मात्रा का ढेर बनता जा रहा है उसको इकठ्ठा नहीं किया जा रहा है. वो पूरे शहर में फैल रहा है.
CPCB के अनुसार, हर दिन उत्पन्न होने वाले 25,940 टन प्लास्टिक कचरे में से 10,376 टन यानि कि 40% कचरे को इकट्ठा नहीं किया जाता है और वो सड़कों पर फैला रहता है. और सबसे बड़ी चिंता का विषय तो यही है कि ये अनियंत्रित प्लास्टिक हवा के साथ हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में प्रवेश कर आने वाली कई सदियों तक वातावरण में बना रहेगा.
एक तरफ़, भारत अपने खुद के प्लास्टिक कचरे को संसाधित करने में असमर्थ है और दूसरी तरफ़ जब बात आती है पुनर्नवीनीकरण स्क्रैप के आयात की तो भारत दुनिया के दूसरे देशों में से एक है.
वित्तीय वर्ष 2016-17 में, भारत ने 12,000 मीट्रिक टन (MT) PET बोतल और फ़्लेक्स (Flakes) के स्क्रैप का आयात किया, जो वित्त वर्ष 17-18 में 290% बढ़कर 48,000 मीट्रिक टन हो गया. गौर करने वाली बात है कि वित्त वर्ष 18-19 के पहले तीन महीनों में, भारत पहले ही 25,000 मीट्रिक टन का आयात कर चुका है. इस हिसाब से अगर अनुमान लगाया जाए तो वित्त वर्ष 18-19 में भारत 1,00,000 मीट्रिक टन PET बोतल स्क्रैप और फ़्लेक्स का आयात करेगा. ये आंकड़ा वित्त वर्ष 17-18 से 130% अधिक होगा.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति मंच (PDUSM) के अध्यक्ष, विनोद शुक्ला, जो भारत में प्लास्टिक स्क्रैप के आयात को समाप्त करने के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं का कहना है कि ये केवल घरेलू स्तर पर उत्पन्न होने वाले कचरे को अनियंत्रित करने में ही काम करेगा क्योंकि बड़े-बड़े उद्योगों का झुकाव तो प्लास्टिक को आयात करने की ओर ही होगा क्योंकि वो सस्ता होता है.
मगर यहां सवाल ये उठता है कि जब हमारे देश में ही हर दिन टनों कचरा इकठ्ठा हो रहा है, जिसके पूर्णतया निपटारे का अभी तक हमारे पास कोई समाधान नहीं है तो हम क्या इस स्थिति में हैं कि दूसरे देशों के प्लास्टिक वेस्ट को आयात कर सकते हैं?