‘पहले दायें मुड़िए, फिर बायें, फिर दायें, फिर बायें, फिर सीधे जाकर दायें, फिर बायें फिर 2 कदम आगे फिर आप अपनी मंज़िल तक पहुंच जाएंगे.’
समझ गये? बात रास्तों की हो रही है. चाहे बाबा गूगल के मैप की बात की जाए या फिर अपने देसी मैप की (पनवाड़ी वाले), डायरेक्शन्स में कन्फ़्यूज़न ही कन्फ़्यूज़न सॉल्यूशन कुछ पता नहीं तो होता ही है.
सच कहें तो लोग आपको रास्ते भूलने के लिए काफ़ी ब्लेम करते होंगे पर आपको उन पर गु़्स्सा करने या ख़ुद पर सवाल करने की कोई ज़रूरत नहीं है.
एक रिपोर्ट की मानें तो सही डायरेक्शन्स देना या रास्ता बताना आसान नहीं है. इसी रिपोर्ट के मुताबिक़, ठीक-ठाक डायरेक्शन्स न दे पाने की वजह है ‘Curse of Knowledge’
Psychology के अनुसार, जैसे ही हम कुछ नया सीखते हैं, हम ये मान लेते हैं कि दुनिया को भी वो पता होगा. कुछ नया जानने के बाद ज़्यादातर लोग ये मान लेते हैं कि सामने वाले को भी उस बात की सही और सटीक जानकारी होगी ही.
एक बार किसी जगह घूम-फिर आने के बाद हमें ‘पीले दरवाज़े से 10 कदम दूर’ ‘अग्रवाल स्वीट्स से बायें मुड़ जाना’ जैसे ‘डिटेल्ड डायरेकशन्स’ की ज़रूरत नहीं होती. अगर कोई बंदा पहली बार किसी जगह जा रहा हो तो उसे ऐसे ही या इससे ज़्यादा डीटेल्स की ज़रूरत होती है.
सोचिए अगर आप किसी दोस्त के घर पर गये हों और आपसे अपने घर पर कोई चीज़ मांगे, जैसे- ‘वो नीला वाला कप निकाल दे.’ उस दोस्त के लिए नीला कप ढूंढना बायें हाथ का खेल है पर आपके लिए नहीं. यही है Curse of Knowledge.
Curse of Knowledge बहुत बड़ा इश्यू नहीं है. ये बस साइड-इफ़ेक्ट है एक-दूसरे से अलगाव का.
हम सभी के सोच-विचार अलग होते हैं. हर एक शख़्स अलग होता है. किसी को डायरेक्शन देते समय भी सामने वाले के विचार और ख़ासतौर पर ये बात कि उसे उस जगह का आईडिया नहीं है, ध्यान में रखना चाहिए.
यही प्रोसेस उस सिचुएशन में भी काम करता है जब एक जोक आपको मज़ेदार लगता है पर दूसरों को नहीं. हो सकता है सामने वाले को उस जोक से न सिर्फ़ हंसी नहीं आई बल्कि उसे बुरा भी लगने की संभावना है.