‘बे#@द, गाड़ी हटा सामने से.’

‘गां# में डाल ले’
‘तेरी मां की…’

फ़िल्मों से लेकर सीरियल्स तक, दफ़्तर से लेकर घर तक, क्लब से लेकर सब्ज़ी मंडी तक वो एक चीज़ जो पूरे देश को जोड़कर रखती है वो है गाली. हां-हां बाक़ी चीज़ें भी हैं पर सोच कर देखिये, अमीर हो या ग़रीब, कोई भी धर्म हो, कोई भी जाति हो वो एक चीज़ जो सब करते हैं वो है गाली देना. ‘गाली मत देना’ राइटर को उसे पता है कि और चीज़ें भी हैं. 

सोचिए न कोई भी नई भाषा सुनते हैं तो आमतौर पर इंसान उस भाषा की चुनींदा गालियां ही सीखना चाहता है, है कि नहीं? 


गालियां देते सब हैं, पर क्यों?  

Science Alert

गालियां कैसे बनती हैं? 

वैसे तो ये लिखने की ज़रूरत नहीं, हमारे पाठकगण असीम ज्ञानी हैं. फिर भी लेख की मर्यादा को बनाये रखना अनिवार्य है. Timothy Jay के एक लेख के मुताबिक़, गालियों में सेक्स से जुड़ी बातें, जानवरों के नाम, गंदी चीज़ों के नाम, नस्ल, लिंग, परिवार से जुड़ी बातें होती हैं. ऐसी बातें जिससे सामने वाले को वो बात सीधे तौर पर लगे. 

कौन सी गाली देनी है ये कैसे डिसाइड करते हैं? 


कब, कहां, किसे और कौन सी गाली देनी है ये इस बात पर निर्भर करता है कि हम किसके साथ हैं. अब मम्मी-पापा के सामने भद्दी-भद्दी गालियां तो देंगे नहीं और अगर दोस्तों के बीच हों तब तो कुछ भी गाली देंगे. भीड़-भाड़ वाली जगह पर भी लोग कुछ भी गाली बकते हैं. 

Jay का मानना है कि गालियां गाड़ी के हॉर्न की तरह है. जिस तरह हॉर्न अलग-अलग भावनाओं के साथ बजाया जाता है वैसे ही गाली भी भांति-भांति की भावनाओं के साथ दी जाती है. 

Super Unleader

आख़िर गाली देते क्यों है? 


दुनिया में ज़्यादातर लोग गाली देते हैं और ज़िन्दगीभर देते हैं. Jay के मुताबिक़, लोग अपनी ज़िन्दगी का 0.3%- 0.7% वक़्त गालियां देने में ख़र्च करते हैं, काफ़ी कम पर काफ़ी ज़रूरी. 

गाली को कई लोग एक ख़ास आर्थिक तबके के लोगों के साथ जोड़ देते हैं, जो कि ग़लत है. गाली का आर्थिक हालात से कोई लेना-देना नहीं है. 

एक रिपोर्ट के अनुसार, गाली देने से लोगों को अच्छा महसूस होता है. गाली देने के अलग फ़ायदे भी हैं. आप कम्फ़र्ट ज़ोन में होने पर गाली देते हैं. कुछ ख़ास लोगों के बीच में आप भद्दी से भद्दी गालियां देते हैं, जज किए जाने के डर के बिना.