लैंगिक समानता(Gender Equality) के मुद्दे पर दुनियाभर में बहस होती रहती हैं, लेकिन इसका नतीजा सिफ़र ही रहता है. इसे आप अपने आस-पास मौजूद चीज़ों से आसानी से समझ सकते हैं. रोज़मर्रा के जो सामान कंपनियां हमारे लिए बनाती हैं, उनमें भी लड़के-लड़की का भेदभाव साफ़ नज़र आता है. अगर फिर भी यकीन न हो, तो गूगल पर लेडीज़ हेलमेट सर्च कर देख लीजिएगा.
रिज़ल्ट में कुछ ऐसी फोटोज़ सामने आएंगी.

वहीं मेन्स हेलमेट का रिज़ल्ट कुछ ऐसा होगा.

फर्क समझ में आया? दरअसल, इन दोनों हेलमेट्स में ज़मीन-आसमान का अंतर है. मेन्स हेलमेट चेहरे को पूरी तरह प्रोटेक्ट करता है, जबकि लेडीज़ हेलमेट आधा.
महिलाओं के हेलमेट में जबड़े को प्रोटेक्ट करने वाला हिस्सा गायब क्यों कर दिया गया? इसी सवाल ने रेडिट पर एक बहस छेड़ दी है. लोग मज़े लेकर कह रहे हैं कि क्या महिलाओं का जबड़ा स्टील का बना होता है?

रेडिट के इस थ्रेड पर लोग महिलाओं के लिए हेलमेट बनाने वाली कंपनियों को लैंगिक भेदभाव करने के लिए कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने इस तरह के हेलमेट पहने के ख़तरों के बारे में भी बताया है, आप भी देखिए…





एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर वर्ष तकरीबन 1 लाख लोगों की मौत रोड़ एक्सिडेंट में हो जाती है. अब सवाल ये उठता है कि जब हमारे देश की सड़कें इतनी असुरक्षित हैं, तो कैसे प्रशासन ऐसे हेलमेट्स को पास कर सकता है?

एक दो पहिया वाहन चालक का जब एक्सिडेंट होता है, तब उसके जबड़े के डैमेज होने के अधिक चांस होते हैं. तो इस बात की क्या गारंटी है कि इस महिलाओं के साथ ऐसा नहीं होगा?
हेलमेट बनाने वाली तमाम कंपनियों को सोचना चाहिए कि सेफ़्टी पहले है और फ़ैशन बाद में. क्या हम उनसे इस तरह के हेलमेट्स बैन करने की उम्मीद रख सकते हैं?
