आपने इन्हें कई जगह देखा होगा.
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कभी किसी ट्रेन में
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तो कभी यूं ही बाज़ार में
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एक सवाल पूछना चाहूंगी कि आपने इन्हें आम नज़रों से कभी देखा है? क्या आप इन्हें उन्हीं नज़रों से देखते हैं जिन नज़रों से आप किसी दूसरे राह चलते इंसान को देखते हैं? अगर नहीं तो आपको मालूम चल गया है कि बदलाव कहां लाना है.
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किन्नरों को कई लोग ओछी नज़रों से देखते हैं. उनके आस-पास होने से भी असहज महसूस करते हैं. ख़ैर आज हम उनके अधिकारों और उन पर हो रहे अत्याचारों पर बात नहीं कर रहे.
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आख़िर किन्नर क्यों बजाते हैं अनोखी, अलग किस्म की ताली?
The Hindu के इस लेख के मुताबिक, लोगों का ध्यान खींचने के लिए किन्नर ताली बजाते हैं. ज़्यादातर किन्रर निम्न आय वर्ग से आते हैं. अगर वे उच्च आय वर्ग से भी हों, तो भी उन्हें किसी का समर्थन नहीं मिलता. उनके परिवारवाले उन्हें ‘असल रूप’ में अपनाने से इंकार कर देते हैं. मकान मालिक उन्हें किराये पर मकान नहीं देते, स्कूल उन्हें Cross Dressing करने के लिए निकाल देता है और उन्हें कोई अच्छी नौकरी भी नहीं मिलती है. समाज की बेइज़्ज़ती से बचने का उनके पास कोई उपाय नहीं होता. वे समाज के हाशिये पर अपने जैसों के संग रहने पर मजबूर होते हैं.
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International Journal of Humanities And Social Science के मुताबिक हिजरों की ताली का मतलब है
इस बार अर्ध्य कुंभ में किन्नड़ अखाड़ा ने अमरत्व स्नान किया. किन्नर अखाड़े की प्रमुख, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी का ताली के विषय में ये विचार है,
कुछ लोगों का मानना है कि किन्नरों की ताली कोई बुरी ख़बर लेकर आएगा या उसे सुनने से किसी भी व्यक्ति का बुरा होगा पर ये हक़ीक़त नहीं है. ताली महज़ बातचीत करने का एक ज़रिया है.