10 अलार्म लगा लिए, दफ़्तर जाने के कपड़े सही से रख लिये, स्नैक्स वगैरह पैक कर लिये, रात में वक़्त पर सोने चले गये. इतनी तैयारियां करने के बावजूद सुबह आंख देर सी ही खुली. यही नहीं, जल्दी पहुंचने के लिए मेट्रो ली, पर मेट्रो तक रुक-रुक कर चली.
ऑफ़िस ही क्यों, किसी पार्टी में पहुंचना हो या डेट पर या फिर ट्रेन लेनी हो, आप ज़्यादातर लेट ही होते हैं. कई बार आप ख़ुद की वजह से नहीं, दूसरों की वजह से लेट होते हैं पर होते ज़रूर हैं.
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के 2 मनोवैज्ञानिकों, Emily Ealdun और Mark McDaniel ने 2016 में इस विश्वव्यापी समस्या पर रिसर्च किया और पाया कि इसकी वजह Time Based Prospective memory (TBPM) हो सकती है. शोधार्थी लैब में Time Based Prospective memory (TBPM) टेस्ट करने के लिए रिसर्च में हिस्सा लेने वाले लोगों (पार्टिसिपेन्ट्स) को कुछ काम देते हैं जिसे तय समय में ख़त्म करना होता है. शोधार्थी पार्टिसिपेन्ट्स को घड़ी शुरू करने का ऑप्शन देते हैं. आप सोच रहे होंगे कि सभी ये ऑप्शन चुन लेंगे और सबके दिमाग़ टाइम पर होगा पर पार्टिसिपेन्ट्स अपने काम को लेकर इतना रम जाते हैं कि कई बार वक़्त की बात दिमाग़ से ध्यान निकल जाती है.
कुछ मनोवैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि कुछ लोग ‘देर हो रही है’ ‘देर हो रही है’ इतना ज़्यादा करते हैं कि उन्हें न चाहते हुए भी देर हो ही जाती है क्योंकि कहीं न कहीं उनके मन में लेट होने का डर बैठ जाता है.
अंत में बात तो यही है कि एक ही लाइफ़ है ब्रो, जैसे जीना है जियो.