कुछ लोगों को आंसू नहीं आते और कुछ लोग इसे बैज के तौर पर पहनकर घूमते हैं. और कुछ लोगों को बात-बात पर रोना आ जाता है, कोई गाना सुनकर, फ़िल्में देखकर या फिर भूख लगने पर कुछ अच्छा खाने को न मिलने पर भी.
और कुछ लोग ग़ुस्से में भी फूट-फूटकर रोने लगते हैं. आपके भी ग्रुप में ऐसे लोग होंगे, आज जान लीजिये क्यों.
ग़ुस्सा एक बहुत ही कॉम्प्लिकेटेड भाव है.
ग़ुस्से में कुछ लोग एक्सप्लोसिव नैचर के हो जाते हैं, वहीं कुछ लोग ग़ुस्से में रोने लगते हैं. हर शख़्स अपना ग़ुस्सा अलग-अलग तरीके से दिखाता है. और अगर आपको लगता है कि ग़ुस्से में रोने से आप कमज़ोर हो जाते हैं तो आज के आज ही इस विचार को दिमाग़ से निकालकर गड्ढे में डाल दीजिए.
कुछ लोग ग़ुस्से में चीज़ें तोड़ने-फोड़ने लगते हैं, बुरी बातें कहते हैं, चिल्लाते हैं और कुछ लोग चिल्लाने के बजाये गुस्से में भावुक हो जाते हैं.
विज्ञान अभी तक इसके पीछे के कारण का पूरी तरीके से पता नहीं लगा पाया है पर कुछ थ्योरिज़ ज़रूर हैं.
रोना एक ऐसा रिएक्शन है जिस पर लोगों का अक़सर कन्ट्रोल नहीं होता. रोना एक Physiological Reaction है. इसको फ़्लशिंग या स्वेटिंग की तरह ही देखा जा सकता है.
कुछ शोधार्थियों का मानना है कि रोकर इंसान अपने आप को मुश्किल से मुश्किल वक़्त में शांत करते हैं. दुख में हम रोते हैं क्योंकि दुख का वो पल हमारे लिए बहुत इंटेंस होता है, दुख एक इंटेंश इमोशन है. ग़ुस्सा और फ़्रशट्रेशन भी इंटेंस इमोशन्स हैं और ग़ुस्से में रोना एक Physiological Reaction है.
स्ट्रॉन्ग सकारात्मक जैसे कि अति ख़ुशी में भी लोगों को आंसू आ जाते हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार, मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि हम ग़ुस्से में इसलिये रोते हैं क्योंकि गडुस्से की भावनाओं की परतों के नीचे हम दुखी होते हैं. हम ग़ुस्सा तभी होते हैं जब हम किसी से आहत होते हैं, किसी के व्यवहार, एक्शन से हमें ठेस पहुंचती है.