दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है. इस पूजा की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण ने की थी. चलिए जानते हैं क्या है इस पूजा का महत्व और क्यों इसे मनाया जाता है?

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दिवाली के अगले दिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हर साल गोवर्धन पूजा की जाती है. मूलत: ये प्रकृति की पूजा है. इस दिन प्रकृति के आधार के रूप में गोवर्धन पर्वत और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है. इस दिन को कई लोग अन्नकूट के नाम से भी मनाते हैं. कहतें है कि ये पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है.

गोवर्धन पूजा की कहानी 

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पूजा के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है. फिर उसकी आरती कर परिक्रमा की जाती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, ब्रजवासी पहले इस दिन इंद्र देवता की पूजा किया करते थे. लेकिन कृष्ण जी ने उन्हें समझाया है कि इंद्र देवता की पूजा करने से कोई लाभ नहीं. वर्षा करना उनका धर्म है. इसकी जगह उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, जो उनकी गायों का संवर्धन और संरक्षण करते हैं. साथ ही पर्यावरण को भी शुद्ध रखते हैं.

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उसी दिन से सभी ब्रजवासी गोवर्धन की पूजा करने लगे. इससे इंद्र देवता क्रोधित हो गए और उन्होंने मूसलाधार बारिश करना शुरू कर दी. तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी. जब इंद्र को मालूम हुआ की कृष्ण भगवान विष्णु का ही अवतार हैं, तो उन्होंने श्री कृष्ण से माफ़ी मांगी. इंद्र के मनाने पर ही श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा. इसके बाद से ही गोवर्धन पूजा मनाई जाने लगी.

क्या न करें इस दिन 

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-बंद कमरे में गोवर्धन पूजा न करें. 

-परिवार के सभी लोगों को अलग-अलग पूजा नहीं करनी चाहिए. 
-परिक्रमा करते समय चप्पल-जूते न पहनें. काल कपड़े भी नहीं पहनने चाहिए. 
-परिक्रमा को कभी अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए. 

हैप्पी गोवर्धन पूजा. 

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