क्या कभी आपने गौर किया है कि आपका चेहरा सेल्फ़ी में अलग दिखता है और शीशे में ज़रा अलग? किया ही होगा, आजकल कौन है जो शीशे में चेहरा निहारे बिना और सेल्फ़ी लिए बिना रहता है? कई बार ऐसा होता है कि आप ख़ुद को शीशे में देख कर सोचते हैं कि अच्छे लग रहे हैं, क्यों न सेल्फ़ी ली जाये. सेल्फ़ी ली जाती है लेकिन अफ़सोस होता है, क्योंकि आप फ़ोटो में उतने अच्छे नहीं लग रहे होते.

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ऐसा क्यों होता है, इसके पीछे कुछ वजहें हैं.

दरअसल, जो आप शीशे में देख रहे होते हैं, फ़ोटो में उसका उल्टा दिखता है. इस तरह ख़ुद को देखने में आप चेहरे को ज़रा अलग पाएंगे, क्योंकि हमारा चेहरा दोनों तरफ़ से हूबहू एक जैसा नहीं दिखता है. चेहरा पूरी तरह Symmetrical नहीं होता और आईना पूरा सच नहीं बोलता.

एक कारण ये भी है कि हमने फ़ोटो से ज़्यादा अपना चेहरा शीशे में देखा होता है. एक थ्योरी के अनुसार, हम जो चेहरा ज़्यादा देखते हैं , वो हमें अच्छा लगने लगता है. इसलिए हमें शीशे में दिखने वाला चेहरा ज़्यादा पसंद आता है और फ़ोटो कभी-कभी निराश कर देती है.

न्यूयॉर्क के फ़ोटोग्राफ़र Michael Levy बताते हैं कि हम शीशे में ख़ुद को देखते वक़्त Subconsciously अपना चेहरा उस एंगल पर सेट कर लेते हैं, जो हमें सबसे ज़्यादा पसंद होता है. इसके अलावा, हम शीशे में ख़ुद को मोशन में देख रहे होते हैं, जबकि तस्वीर में स्थिर छवि दिखती है. उसमें आप ज़्यादा डीटेल में अपनी कमियां देख पाते हैं.

इसके कुछ टेक्निकल कारण भी होते हैं:

अलग-अलग कैमरों में अलग-अलग लेंस लगे होते हैं, जिनसे आप अलग दिख सकते हैं. लॉन्ग लेंस आपको पतला दिखाते हैं. लेंस जितना छोटा होता है, चेहरा उतना ही बड़ा नाज़र आता है.

इससे भी फ़र्क़ पड़ता है कि आप कैमरे के कितने क़रीब हैं. आपके चेहरे का जो हिस्सा लेंस के पास होगा, वो तस्वीर में ज़्यादा हाईलाइट होगा. यही वजह है कि तस्वीर में नाक कुछ बड़ी दिखती है.

ये समझ लीजिये कि हम तस्वीरों में वैसे ही नज़र आते हैं, जैसे बाकी लोगों को दिख रहे होते हैं. और ये अच्छी बात है, क्योंकि स्टडी में पता चला है कि लोगों को आपका वो वर्ज़न ज़्यादा पसंद होता है, जो उन्हें दिखाई देता है न कि वो जो आपकी नज़र में होता है.