कहते हैं, भारत में गड्ढों के बिना सड़कें अधूरी हैं. कभी-कभी तो लगता है कि सड़कें एक ही मक़सद से बनाई जाती हैं, बरसात में गड्ढे बनने के लिए.

बिना किसी ज़िम्मेदारी के बनाई सड़कों पर चलना हम भारतीयों की मजबूरी है. कहीं-कहीं सड़कें तो दिखाई ही नहीं देती हैं, सिर्फ़ गड्ढे दिखाई देते हैं.

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हर साल कई भारतीय इन गड्ढों का ख़ामियाज़ा भुगतते हैं. TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2017 में सड़क पर बने गड्ढों के कारण 3,597 भारतीयों ने अपनी ज़िन्दगी गंवाई, रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि 2016 के मुकाबले 2017 में इस संख्या में 50 प्रतिशत इज़ाफ़ा हुआ है.

अधिकारियों के ग़ैरज़िम्मेदाराना रवयै का खामियाज़ा कई मासूमों ने अपनी जान गंवा कर चुकाया.

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उत्तर प्रदेश के दादरी की 55 वर्षीय राजेश देवी के साथ भी कोई दुर्घटना घट सकती थी. राजेश देवी के घर तक का रास्ता भी गड्ढों से भरा हुआ था. घर तक जाने के रास्ते में उनके साथ भी दुर्घटना घटी और उनके सिर पर चोट लगी.

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अधिकारियों ने जब कोई कदम नहीं उठाया, तो राजेश देवी और उनके परिवार ने ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेने का फ़ैसला किया. स्थानीय निवासी भी सड़क की मरम्मत की मांग करते-करते थक गए थे.

राजेश देवी अपने पति ओमवीर(60), अपने बेटे(सुधीर), उसकी पत्नी और तीन बच्चों के साथ एक मंज़िला मकान में रहती हैं. गांव में कंक्रीट सड़क बनाने के लिए इस परिवार ने अपनी प्रॉपर्टी का एक हिस्सा बेचने का निर्णय लिया है.

TOI से राजेश देवी ने ये कहा,

मैं अधिकारियों के रवैये से तंग आ चुकी थी. अधिकारियों का अमीर और ग़रीबों के प्रति अलग रवैया है. हम कई ब्लॉक मीटिंग्स में गए, हमने कई बार अर्ज़ी डाली लेकिन कुछ हुआ नहीं है. अमीरों के घरों की तरफ़ सड़कें बनती रहती हैं लेकिन हमारी तरफ़ ध्यान नहीं दिया जाता.
मैंने अपने घर के आस-पास का कुछ हिस्सा बेच दिया है और 1 लाख जमा किए हैं. मैं नहीं चाहती कि जो दर्द मैंने सहा है वो और कोई सहे.

राजेश देवी का बेटा, सुधीर सड़क बनवाने के लिए कॉन्ट्रैक्टर से बातचीत कर रहा है.

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गांववालों का इस पूरे विषय पर कुछ और ही कहना है. गांववाले एक बेहतर Drainage System की मांग कर रहे हैं. महिंद्र सिंह ने TOI को बताया,

जो भी सड़कें बनती हैं उनमें नालियां नहीं होती और इस कारण बारिश का पानी जमा होता रहता है. इस वजह से गांव की सड़कों पर हमेशा पानी जमा रहता है.

इसी तरह सड़कों के गड्ढों को भरने की ज़िम्मेदारी ली है हैदराबाद के गंगाधर तिलक ने. गंगाधर ने सड़क के गड्ढों को भरने के लिए अपनी नौकरी तक छोड़ दी और वो इस तरह कई मासूम ज़िन्दगियां बचा रहे हैं.

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‘मुंबई के Pothole दादा’ दादाराव बिलहोरे ने भी कुछ ऐसा ही काम शुरू किया है. अगस्त 2015 से अब तक उन्होंने 554 गड्ढे भरे हैं. दादाराव के बेटे प्रकाश की सड़क के गड्ढे की वजह से ही मृत्यु हो गई थी. अधिकारियों पर गुस्सा निकालने के बजाए उन्होंने ये नेकी का काम शुरू किया.

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जब अधिकारियों के कान पर जू न रेंगे, तो देशवासियों को ही पहल करनी पड़ती है.