बच्चों को उनकी ग़लती का एहसास दिलाने के लिए माता-पिता ऊंची आवाज़ में डांट देते हैं या फिर एक-आध थप्पड़ लगा देते हैं.

बहुत से घरों में बच्चों को थप्पड़ नहीं लगते, बाक़ायदा कूटा जाता है. मज़ाक लग रहा होगा न? हर ग़लती, बात-बेबात जिन्हें कुछ भी उठा कर पीट दिया जाता हो, ज़रा सोचिए कैसी होती होगी उनकी ज़िन्दगी?

Humans of Bombay फ़ेसबुक पेज पर एक लड़की की कहानी साझा की गई है, मां के हिंसात्मक रवैये के बावजूद ये लड़की आज एक अच्छी ज़िन्दगी जी रही है.

‘मैं एक सम्मानित, पढ़ी-लिखी, Upper Middle Class परिवार से हूं. बाहर से हमारा परिवार Perfect लगता है लेकिन अंदर इस परिवार की कहानी कुछ और ही है. मेरी मां काफ़ी हिंसक प्रवृत्ति की हैं. मेरी एक जुड़वा और एक छोटी बहन है और हम सभी बचपन से ही हिंसा का शिकार होते-होते बड़े हुए हैं. शुरुआत गाली-गलौज से हुई थी और बाद में बात मारने-पीटने तक जा पहुंची.

मेरी मां अवसाद ग्रसित हैं. Mood Swings के दौरान वो हमें कुछ भी फेंक कर मारती थी. एक बार उसे इतना गुस्सा आया कि उसने गैस पर चढ़ाया हुआ, दाल से भरा प्रेशर कुकर फेंका था. मेरी बहन को काफ़ी चोट लगी थी. एक बार उसने मुझे कपड़े सुखाने को कहे और वो प्याज़ काट रही थी. जब वो जैसा चाहती थी मैंने वैसा नहीं किया, तो उसने मेरी तरफ़ चाकू फेंका. चाकू मुझे लगा और ख़ून बहने लगा.

ऐसे भी कुछ पल आते हैं, जब वो बिल्कुल मम्मी जैसा Behave करती है लेकिन वैसे पल काफ़ी कम आते हैं. भारतीय समाज में माता-पिता को ऊंचा दर्जा दिया जाता है और बच्चों को उनका सम्मान करना सिखाता है, उनके खिलाफ़ बोलना ग़लत माना जाता है. इसीलिए हमें भी समझ नहीं आया कि हमारे साथ क्या ग़लत हो रहा था.

हमें लगता था कि जो हमारे साथ हो रहा था वो Normal था. हम जिस Counselor के पास गए थे उसने भी हमशे यही कहा था, ‘वो तुम्हारी मां है न.’ हमारे पिता काम के सिलसिले में बाहर ही रहते थे लेकिन वो भी मां की हरकतों पर कुछ नहीं कहते थे. ऐसा नहीं था कि वो ध्यान नहीं देते थे लेकिन वो झगड़ों के बीच फंस जाते थे.

इन सबका मुझ पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ने लगा. जब मैं कॉलेज में पहुंची तो मेरे मार्क्स, एटेंडेंस सब बिगड़ने लगे. मुझे पहले साल की परीक्षा में बैठने नहीं दिया गया. मैं डिप्रेशन में चली गई, मैं घंटों रोती और सोचती ‘मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?’ जब भी हम Parental Violence पर बात करते, कोई भी हमारी बात नहीं सुनता था. मेरी बहनों ने एक-दूसरे में ही अपनापन ढूंढा. हम एक-दूसरे को Support करने लगे और एक-दूसरे का सहारा बन गए.

मेरी मां का बचपन काफ़ी दर्दनाक था और यही उनके बुरे व्यवहार का कारण था. हमारे साथ जो भी हुआ, उसने हमें आक्रामक बनाने के बजाये और ज़्यादा सहनशील और अपनी मां के प्रति संवेदनशील बनाया. हमें पता है कि जिस दिन हमारा अपना परिवार होगा, हम उसे भी प्यार करेंगे.

अब हम अच्छी जगह पर हैं. मेरी बहनों ने मास्टर्स कर लिया है और मैं काफ़ी अच्छी नौकरी में हूं. हमारे पास घर छोड़ने का ऑपशन था लेकिन हमने अपनी मां को अकेले न छोड़ने का निर्णय लिया. हम साथ रहते हैं और हिंसा के किसी भी संकेत का डटकर सामना करते हैं. मैंने अपनी मां को माफ़ कर दिया है और मैंने कसम खाई है कि इस सबका ज़िम्मेदार अपनी मां को कभी नहीं ठहराऊंगी.’

बहुत से लोगों का बचपन इस तरीके से बीता होगा. जन्मदाता, पालनकर्ता माता-पिता कई बार भूल जाते हैं कि मार-पीट, हिंसा किसी भी बच्चे को सुधार दे ये ज़रूरी नहीं है. भारतीय घरों में ‘छड़ी की संस्कृति’ को काफ़ी प्रोत्साहन दिया जाता है.