रूस की सरकार ने जिस महिला को दुनिया की सबसे उम्रदराज़ महिला माना था, उसने 27 जनवरी को दुनिया को अलविदा कह दिया.  

Stalin के दमन के रिकॉर्ड्स के अनुसार, जून में Koku Istambulova 130 की हो जाती. Koku ने पिछले साल कहा था कि अपनी पूरी ज़िन्दगी में वो बस एक दिन ख़ुश रह पाई हैं और उनकी ज़िन्दगी ऊपरवाले का श्राप है. 

Koku के पोते Iliyas Abubakarov ने Daily Mail को बताया,

‘वो हंसी-मज़ाक कर रही थी, बातें कर रही थी. अचानक उनकी तबियत बिगड़ी और उन्होंने सीने में दर्द की शिकायत की. डॉक्टर को बुलाया गया. डॉक्टर ने कहा कि उनका BP कम है. उन्हें बचाने की कोशिश की गई पर बचाया न जा सका. प्रार्थना करते-करते उनकी मृत्यु हुई.’

Koku को उसके गांव Bratskoe में दफ़नाया गया.

दावा किया जा रहा था Koku का जन्म 1 जून, 1889 को हुआ था पर उनके पासपोर्ट में सिर्फ़ जन्म का साल लिखा हुआ था. 

पिछले साल Koku ने भावुक होकर बताया था कि 75 साल पहले किस तरह स्टालिन ने उन्हें और अन्य Chechen लोगों को Kazakhstan भेज दिया था. लोग किस तरह बेमौत मरे थे इस सब की दास्तां Koku ने सुनाई. Koku ने ये भी बताया कि मृतकों के शव कुत्तों को खिला दिए जाते थे. 

Koku ने Chechan भाषा में पत्रकारों को बताया था,

‘लड़कियां Bladder फटने से मारी जा रही थी क्योंकि भीड़-भाड़ वाली जगह में उन्हें पेशाब करने में शर्म आती थी. बूढ़ी औरतें उन्हें घेरकर खड़ी होती ताकी उन्हें दैनिक कर्म करने में ज़रा सहजता महसूस हो लेकिन ये कुछ भी नहीं. मृतकों को दफ़नाने की आज्ञा नहीं थी. लाशों को सिर्फ़ ट्रेनों से फेंक दिया जाता. मेरे ससुर की लाश को भी ट्रेन से फेंका गया था.’

स्टालिन की सोच थी कि Chechans नाज़ियों का साथ दे रहे हैं. Koku ने बताया,

‘हमसे कहा जाता कि हम बुरे हैं इसलिए हमें देशनिकाला दिया जा रहा है. मुझे तो पता ही नहीं कि हमें किस बात की सज़ा मिली.’

Kazakhastan में भी Koku को काफ़ी दुख झेलने पड़े. उसने अपने दो बेटों को खो दिया. 

‘मेरी सिर्फ़ एक बेटी थी Tamara.’   
स्टालिन के पतन के बाद उन्हें रूस लौटने की इजाज़त तो मिल गई लेकिन कई Chechans के घरों पर अमीर रूसियों ने कब्ज़ा कर लिया था.