गांव का सादा जीवन, हम शहरवासियों को काफ़ी आकर्षित करता है. गांव का जीवन सादा तो होता है लेकिन यहां उतनी ही मुश्किलें भी होती हैं.

सपनों को पूरा करने के लिए और ज़्यादा पैसे कमाने के लिए ही लोग गांव छोड़, शहर की ओर जाते हैं. इस विस्थापन में भी पुरुषों की संख्या अधिक होती है.

इन सब के बीच में कुछ ऐसे सूरमा भी होते हैं, जो हर मुश्किल से लड़कर जीतते हैं और एक ख़ुशहाल ज़िन्दगी जीने के अपने सपने को साकार करते हैं. 17 वर्षीय शबनम बेगम की कहानी इस बात पर मुहर लगाती है.

उत्तर प्रदेश के ज़िला, बहराइच के पठाननपुरवा गांव की शबनम का अपना टेलरिंग सेंटर है. शबनम न सिर्फ़ दूसरों के कपड़े सिलती हैं, बल्कि दूसरी लड़कियों को सिलाई सिखाती भी हैं.

पिछले कुछ सालों में सिलाई करके उसने लगभग 1 लाख रुपये कमा लिए और 17000 रुपये की बचत भी कर ली.

शबनम के पिता, पान के पत्तों के रिटेलर हैं और उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है. The Better India से बातचीत में उन्होंने कहा,

मेरी बच्ची मेरे से ज़्यादा कमा रही है.

टेलरिंग से हर महीने शबनम 2-3 हज़ार रुपये कमा लेती है. त्यौहारों के दौरान उसकी कमाई 4-5 हज़ार तक बढ़ जाती है.

शबनम की ज़िन्दगी बदल दी, Aga Khan Foundation (AFK) के Community Volunteers और Adolescent Programme Coordinator ने.

मिडल स्कूल तक की पढ़ाई करने के बाद, शबनम आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख सकती थी. उसके गांव में कोई स्कूल नहीं था और उसके पिता 3 किमी दूर रायपुर में स्थित स्कूल में आगे की पढ़ाई के लिए भेजना नहीं चाहते थे.

AFK की निशा और रेखा ने शबनम के माता-पिता से बात की और शबनम को रायपुर स्थित निशार शरीफ़ एहमद इंटरकॉलेज में भर्ती करने के लिए राज़ी किया.

इसी के साथ ही शबनम ने AKF के स्टिचिंग सेंटर में भी दाखिला ले लिया. शबनम ने यहां से 3 महीने का टेलरिंग कोर्स किया. कुछ दिनों बाद गांव की 2 अन्य लड़कियों ने भी शबनम के साथ क्लास जाना शुरू कर दिया.

शबनम, इंटरकॉलेज के आख़िरी साल में हैं और उसके हाथों में जादू है. वो आसानी से महिलाओं और बच्चों के कपड़े सिलती हैं. शबनम के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए गांव की 12 लड़कियों ने टेलरिंग के कोर्स में दाखिला ले लिया.

2014 में AFK ने श्रावस्ती, बहराइच में Adoloscent Programme शुरू किया. इस प्रोग्राम के तहत 728 लड़कियों ने टेलरिंग और 95 ने बेसिक कंप्यूटर शिक्षा प्राप्त की है. 96 लड़कियां अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं और अपने दम पर पैसे कमा रही हैं.

शबनम अपने कॉलेज की 2500 की सालाना फ़ीस ख़ुद के पैसों से भरती है. 2 साल पहले उसकी शादी होते रह गई क्योंकि Life-Skills क्लासेज़ की बदौलत वो ये जान चुकी थी कि शादी के लिए क़ानूनी तौर पर 18 वर्ष ही शादी की सही उम्र है.

शबनम के पास बेसिक कंप्यूटर शिक्षा है जिससे वो नेट से नए-नए डिज़ाइन सिखती हैं.

धर्मनपुर गांव की श्रद्धा मिश्रा की कहानी भी शबनम जैसी ही है. 2015 में उसने AFK की टेलरिंग कोर्स किया. सिर्फ़ 18 साल की उम्र में वो अपने गांव का गौरव बन गई है. पिछले डेढ़ साल से वो उषा सिलाई स्कूल चला रही है और अब तक 40 लड़कियों को सिलाई सिखा चुकी है.

श्रद्धा ने कंप्यूटर पर भी अलग-अलग डिज़ाइन बनाना सीख लिया है. इसके साथ ही वो ग्रेजुएशन भी कर रही है. अपने सिलाई सेंटर को विकसित करने के लिए श्रद्धा अपने ही पैसों से निवेश करती है. उसने 1 सिलाई मशीन से सेंटर शुरू किया था और अब उसमें 3 मशीनें हैं.

सेंटर शुरू होने के डेढ़ साल में उसने 40000 कमा लिए और 17000 की बचत कर ली. यही नहीं, उसने अपने घर के लिए एक भैंस भी ख़रीद ली. श्रद्दा का सपना है कि वो बहराइच शहर में अपना बुटीक खोल सके.

AFK का Adolescent Programme, Self Help Groups द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए भी काम करता है. बहराइच के सामूह गांव का रेणु बचत समूह नामक Self Help Group पुरुष कृषकों को खुली चुनौती दे रहा है. इस SHG ने लीज़ पर ज़मीन ले ली है और इस पर चावल और गेहूं की खेती की जाती है. 1.5 बीघा ज़मीन पर 6 क्विंटल गेहूं उपजा कर इस ग्रुप की औरतें तजुर्बेदार पुरुष किसानों को Open Challenge दे रही हैं.

खेतों में मज़दूरी करने के कारण इन महिलाओं को खेती की पूरी जानकारी है. घर की ज़िम्मेदारियों के बीच ही इन महिलाओं ने खुद से खेती करने का करिश्मा कर दिखाया है. 6 क्विंटल की उपज को समान रूप से ग्रुप की सभी महिलाओं में विभाजित किया जायेगा.

ये महिलाएं आराम करने के मूड में बिल्कुल भी नहीं है. ग्रुप की महिलाएं एक बिघा ज़मीन फिर से लीज़ पर लेने की सोच रही हैं. इस समूह की महिलाएं अपनी क्षमता के अनुसार 100 से 500 रुपये तक बचत कर ग्रुप में देती हैं. इस समूह के पास 49,740 रुपये जमा हो गए हैं.

ज़रा सी दृढ़ इच्छाशक्ति और लड़कियों और महिलाओं का कमाल क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.