वेदों में कहा गया है कि ‘जहां नारी पूजी जाती है, वहां देवता निवास करते हैं’. अगर इसे सच माना जाए, तो पूरा यकीन है कि हमारे देश में देवता कभी नहीं रह सकते. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत में अधिकांश महिलाओं की स्थिति जानवरों से भी बदतर है. बलात्कार, घरेलू अत्याचार, छेड़खानी के मामले, तो यहां आम हो गए हैं.
भारत में गौरक्षा के नाम पर रोज़ नये क़ानून बनते रहते हैं, लेकिन महिलाओं को उनके हक़, उनकी सुरक्षा के लिए पुरुषों का मुंह ताकना पड़ता है. इसी बात को समाज को समझाने के लिए 23 वर्षीय कलाकार सुजात्रो घोष ने एक प्रोजेक्ट शुरू करने का फै़सला किया, जिसमें उन्होंने सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को गाय का मुखौटा पहनने के लिए कहा, ताकि गाय के साथ-साथ लोग महिलाओं की सुरक्षा की भी सुध ले सकें.
घोष ने Buzzfeed को बताया,
‘दादरी और गाय मारे जाने वाली दूसरी घटनाओं ने मुझे इस बारे में सोचने पर मज़बूर किया कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए मैं क्या कर सकता हूं?’
घोष ने बताया कि उन्होंने ‘अपनी कला और सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने संदेश को स्पष्ट करने के लिए किया है, क्योंकि वो शारीरिक लड़ाई को सही नहीं मानते हैं.’
हालांकि, लोगों ने उनकी मदद के लिए शुरुआत में इस चीज़ का विरोध किया, लेकिन जल्द ही भारत के बाहर की महिलाएं उनके पास मदद के लिए पहुंची.
घोष के प्रोजेक्ट में साथ देने वाली रित्वीजा चक्रवर्ती का कहना है कि
‘वो गाय के मुखौटे में ज़्यादा सुरक्षित तो महसूस नहीं करती, लेकिन उन्हें भीड़ में इस मुखौटे के साथ अच्छा लगता है. जब वो गाय का मुखौटा पहनकर भीड़ वाली किसी गली में या किसी पर्यटन स्थल पर जाती हैं, तो उन पर ज़्यादा ध्यान दिया जाता है, जिससे लोगों को लगता है कि मुझमें बहुत हिम्मत है.’
ये बात कई जगहों से सामने आ रही है कि भारत में महिलाओं की सुरक्षा से ज़्यादा गायों की सुरक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है. यहां तक कि फ़्रांस की एक पत्रिका ‘Causette’ में गाय और महिला पर बनाया गया एक कार्टून भी काफ़ी वायरल हो रहा है.
गाय को माता कहने वाले ख़ुद अपनी मां की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं. इसीलिए सुजात्रो घोष लोगों से इसी बात का जवाब जानना चाहते हैं कि अगर हम गायों की सुरक्षा कर सकते हैं, तो महिलाओं की क्यों नहीं?