भारतीय लोगों में जितनी भी एकता हो, खाने की मेज़ पर दो गुट वेजीटेरियन और नॉन-वेजीटेरियन के बन ही जाते हैं. दुनियाभर में मीट का सेवन बहुत अधिक होता है. जो लोग नॉन वेज से बचते हैं, वो या तो अपने धर्म या जीव प्रेम के कारण नहीं खाते. अगर आपको मीट छोड़ने का इससे कोई बेहतर कारण चाहिए तो हमारे पास पांच हैं.

अगर आप मीट खाना छोड़ते हैं तो

सूजन में कमी आएगी-

Chronic Inflammation यानि पुरानी सूजन से कई बीमारियां जुड़ी होती हैं, जैसे डायबटीज़, हृदय रोग, स्व-प्रतिरक्षित रोग, हार्ट स्ट्रोक और Atherosclerosis. अगर व्यक्ति ज़्यादा पका हुआ खान खाता है, जिसमें मीट शामिल हो, तो शरीर में सूजन का स्तर बढ़ जाता है. इसके अलावा अगर व्यक्ति फल, अनाज, सब्जियां, फलियां, आलू, गाजर, बीट्स आदि खाए, तो सूजन में कमी आती है. ज़्यादा मात्रा में एंटीआॅक्सिडेंट, फ़ाइबर, न्यूट्रिएंटस से सूजन में कमी आती है.

शरीर में फ्रेंडली बैक्टीरिया बनते हैं-

हमारे शरीर के अंदर खरबों सूक्ष्मजीव रहते हैं, इनमें से कई हमारे बेहतर स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी होते हैं. फ्रेंडली बैक्टीरिया हमारे बेहतर स्वा​स्थ्य के अलावा पाचन में मदद करते हैं, इम्यून सिस्टम को बेहतर करते हैं. साथ ही साथ स्वस्थ टिशूज़ को संरक्षित करने में और कैंसर से बचाव में भी मदद करते हैं. साग, सब्ज़ियां से ये सभी फ़ायदे मिलते हैं. इसके अलावा कम फाइबर वाले खाने से सूक्ष्मजीवों पर असर होता है. मीट से निकले विषैले बाय-प्रोडक्ट्स से ज़्यादा कोलेस्ट्रॉल, हार्ट स्ट्रोक या अटैक का खतरा बढ़ जाता है.

डायबटीज़ का ख़तरा कम हो जाता है-

Annals of Nutrition and Metabolism में छपी ​एक 17 साल की रिसर्च में पाया गया है कि मीट के सेवन में और बढ़ते डायबटीज़ के रिस्क में कुछ समानताएं हैं. इनमें से कुछ हैं-

जब वेज खाने वाले और सप्ताह में कभी-कभी नॉन वेज खाने वाले लोगों में डायबटीज़ का सर्वे हुआ, तो पाया गया कि मीट खाने वालों में 29% ज़्यादा लोग उसके शिकार थे.

निरंतर मीट खाने वालों में डायबटीज़ का खतरा 38% तक बढ़ जाता है.

17 साल की रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों की डाइट में हफ़्ते में एक बार मीट होता है, उनमें शाकाहारियों के मुकाबले 79% ज़्यादा खतरा होता है.

जो मीट खाते हैं, उनमें डायबटीज़ का खतरा जानवारों के Fat से, नाइट्रेट प्रिज़रवेटिव से, बढ़ी हुई सूजन, मोटापे और इंसुलिन फंक्शन में दबाव के कारण बढ़ता है.

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बिना मीट के भी प्रोटीन मिल सकता है-

लोगों में ये धारणा होती है कि सिर्फ़ मीट से ही उन्हें शरीर के लिए ज़रूरी प्रोटीन मिलेगा. जबकी ऐसा नहीं है, National Center for Health Statistics के अनुसार, मीट खाने वाला एक औसत व्यक्ति ज़रूरत से 150% ज़्यादा प्रोटीन लेता है, जिसका स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है. साथ ही डायबटीज़, सूजन, कैंसर, दिल के रोग, अधिक वज़न जैसी परेशानियां बढ़ जाती हैं.

आप पर्यावरण के लिए अपना योगदान दे रहे हैं-

पशु कृषि से पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैस का 15% योगदान होता है. ये कुल ट्रांस्पोर्ट सिस्टम से निकल रही ग्रीनहाउस गैस से अधिक है. ग्लोबल वॉर्मिंग के अलावा जितना ज़्यादा मीट का प्रोडक्शन बढ़ रहा है, उतना ज़्यादा वनों की कटाई, एनिमल हैबिटेट का विनाश और कई प्रजातियों के विलुप्त होने की नौबत आ चुकी है.