तारिख़ 31 मई, 1970. सबके घरों में टीवी पर फ़ुटबाल मैच देखा जा रहा था. पेरू के लोग उस दिन भी बहुत ख़ुश थे. मैच भी तो ख़ास था, इटली और ब्राज़ील के खिलाड़ी एक दूसरे के आमने-सामने थे. मैच का रोमांच अपने उफान पर था. लेकिन उसी वक़्त प्रकृति के भीतर भी कोई खेल चल रहा था. कौन जानता था कि घड़ी की सुइयां, जैसे ही दोपहर के 3:23 बजाएंगी, शहर में कोई मैच का नतीजा जानने के लिए ज़िंदा नहीं बचेगा.
एक शहर के बनने में सैकड़ों साल लग जाते हैं, लेकिन ख़त्म होने में एक लम्हा भी नहीं लगता. नागासाकी और हिरोशिमा की तरह, पेरू के छोटे से टाउन Yungay पर किसी देश ने परमाणु बम नहीं बरसाया था. न ही किसी बाहरी देश की सेना ने इस शहर को तबाह किया था. यहां एक ऐसा भयंकर भूकंप आया कि पूरा शहर एक मलबे में तब्दील हो गया. ये प्रकृति की मार थी जिसे कोई झेल नहीं सका.
8.0 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाले इस भूकंप ने, यहां रहने वाले 25,000 लोगों की ज़िंदगियों को निगल लिया था. इस भूकंप का रेडियस लगभग 83,000, मील तक फैला था. एक जीता जागता शहर, कुछ मिनटों में ही कब्रगाह में बदल गया.
यहां अब इंसान नहीं सिर्फ़ कब्रें बची हैं. हर तरफ़ ऐसा सन्नाटा पसरा रहता है कि जैसे, अब कोई यहां कभी नहीं आएगा. यहां आए भूकंप ने Yungay के पास की चोटियों पर बसे ग्लेशियर को भी तोड़ दिया था, जिसकी वजह से यहां जमने वाली बर्फ़ 120 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से फैलने लगी. इस छोटे से टाउन में लैंड स्लाइडिंग की वजह से, यहां बसने वाले सारे लोग ज़मीन में दफ़्न हो गए.
इस शहर में केवल पाम के कुछ पेड़ बचे थे. इनकी पत्तियां भी शहर की तबाही देखकर रो पड़ी होंगी.
इस उजड़े कस्बे को देखकर, अब कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता कि कभी यहां लोग बसते थे. अब वीरान Yungay, पेरूवियन पर्वत का उजड़ा हिस्सा भर है.
ये इंसान नहीं कब्रों का शहर है
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इस ख़ूबसूरत घाटी में इंसानों की चीखें दफ़्न हैं
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ये है उस वक़्त की बस का हाल
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इन्होंने शहर की तबाही देखी है
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चर्च का टूटा हुआ हिस्सा, जो आज भी दिखता है.
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ज़मीन के अन्दर आधा घुसा ये चर्च है
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ये चर्च का मुख्य द्वार था
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कभी इस तरह दिखता था ये चर्च
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यहां इतिहास दफ़्न है
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जो लोग चले गए उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए शहर भर में गुलाब लगाए गए हैं
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मृतकों की याद में
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इसे उन 25,000 लोगों की याद में बनाया गया है, जो यहां की मिट्टी में हमेशा के लिए दफ़्न हो गए हैं.
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यहां अब फिर से गुलाब उग रहे हैं. हरियाली ने डेरा डाल दिया है. मौत की घाटी फूलों की घाटी में तब्दील हो गई है. शायद हरिवंश राय बच्चन ने ऐसे ही किसी वक़्त को सोचकर ये कविता लिखी होगी,
नीड़ का निर्माण फिर फिर
नेह का अह्वान फिर फिर.
अर्थात विनाश के बाद भी सृजन की प्रक्रिया चलती रहती है, कितना भी बड़ा विध्वंस क्यों न हो, दुनिया में कुछ न कुछ निर्माण होता रहता है.