S Mahendran: किसी भी चौराहे पर ट्रैफ़िक पुलिस तो देखी ही होगी. एक ट्रैफ़िक पुलिस वाला ट्रैफ़िक को मैनेज करने का काम करता है. चेन्नई में भी एक ऐसे ही ट्रैफ़िक पुलिसवाले हैं, जिनका नाम एस महेंद्रन (S Mahendran), जो चेन्नई के ट्रैफ़िक को अच्छी तरह से मैनेज करते हैं, लेकिन आजकल एस महेंद्रन ट्रैफ़िक ही नहीं, बल्कि ग़रीब-बेसहारा बच्चों की ज़िंदगी को भी पटरी पर लाने का काम कर रहे हैं. महेंद्रन अपनी ड्यूटी के समय ही थोड़ा समय इन बच्चों के लिए निकालते हैं और पढ़ाते हैं. इन्हीं बच्चों में से एक है सांतवी क्लास की छात्रा दीपिका, जो बहुत ही ग़रीब परिवार से है और महेंद्रन उसे शिक्षा जैसा अनमोल धन देने का सराहनीय काम कर रहे हैं.

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दीपिका की मां फल बेचती है और पिता शोक सभाओं में गाना गाते हैं

दीपिका की मां सुधा घर चलाने के लिए शहर के फ़्लॉवर मार्केट पुलिस स्टेशन के पास फल बेचती है और उसके पिता रंजीत शोक सभाओं में गाना गाते हैं. इन दोनों की जी तोड़ मेहनत के बाद भी 6 बेटियों का पालन करना मुश्किल हो जाता है. दीपिका इनकी पांचवें नम्बर की बेटी है. महेंद्रन को दीपिका फ़्लॉवर बाज़ार पुलिस स्टेशन के पास मिलती है. वैसे तो  कुंद्राथुर के रहने वाले एस महेंद्रन (S Mahendran) शहर के दो ट्रैफ़िक सिग्नलों पर ट्रेफ़िक कंट्रोल करते हैं. उनके दो एरिया में फ़्लॉवर बाज़ार पुलिस स्टेशन भी आता है.

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बच्चों को पढ़ते समय मिली दीपिका

एस महेंद्रन (S Mahendran) ने बीएसएसी में गणित ली थी वो मैथ में ग्रेजुएट हैं. इसीलिए वो स्कूल के बच्चों को अपनी ड्यूटी से समय निकालकर गणित, तमिल और अन्य विषय पढ़ाते हैं. इन बच्चों को महेंद्रन कभी अपने घर तो कभी पुलिस चौकी के पास पढ़ाते हैं. ऐसे ही एक दिन जब वो बच्चों को पुलिस चौकी के पास पढ़ा रहे थे, तो उनकी मुलाकात दीपिका से हुई. 

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New Indian Express से बात करते हुए दीपिका ने महेंद्रन से पहली बार मिलने के बारे में बताया,

वो दूसरे बच्चों को पढ़ा रहे थे उन्हें पढ़ाता देख वो भी वहां पहुंच गई और उन्हीं बच्चों के साथ उस ग्रुप में शामिल हो गई. 

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महेंद्रन ने बताया,

उन्होंने दीपिका की मां को अक़्सर फ़्लॉवर बाज़ार पुलिस स्टेशन के पास फल बेचते देखा है. इसके अलावा ये पूरा परिवार  रात को यहीं थाने से सचे पार्किंग एरिया में सोता भी है. हालांकि, इन्हें सरकार द्वारा एर्नावुर में घर दिया गया है, लेकिन इनकी रोज़ी-रोटी यहां होने की वजह से ये लोग यहां पर इस तरह से रहने को मजूबर हैं. दीपिका की सबसे बड़ी बहन 10वीं में पढ़ती है और तीसरे नम्बर की बहन मानिसक बीमारी से ग्रस्त है.
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वहीं, दीपिका के पिता रंजीत का कहना है, 

बच्चों की पढ़ाई और उनकी पत्नी के व्यवसाय के चलते एर्नावुर में रहना संभव नहीं है. उनको जो घर मिला है वो एर्णावुर शहर से लगभग 14 किमी दूर जाकर है. इसीलिए इन सब बातों का ध्यान रखते हुए एर्नावुर में रहने की बजाय वो इस तरह से रहते हैं. रात में पार्किंग एरिया में सोते हैं और नहाने और बाकी क्रियाओं के लिए पास में ही बनी सार्वजनिक सुविधा का इस्तेमाल करते हैं.
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एस महेंद्रन (S Mahendran) से मिलने की बात पर उन्होंने कहा,

महेंद्रन ने कई बार दीपिका को फ़ुटपाथ पर बैठकर होमवर्क करते देखा है. उसको मन लगाकर पढञते देख एक बार उन्होंने उसकी कॉपी देखी तो दीपिका की राइटिंग से बहुत प्रभावित हुए और दोनों दोस्त बन गए फिर शिक्षक और छात्रा. 

आपको बता दें, दीपिका की मां जो फल बेचती हैं उससे थोड़ा फ़ायदा होता है, जो रोज़ी-रोटी चलाने भर का हो जाता है, लेकिन इससे ज़्यादा वो नहीं कमा पाती हैं. बच्चों के अंदर पढ़ाई की लालसा को देखकर ही एस महेंद्रन ने दीपिका को पढ़ाने का ज़िम्मा उठाया है. दीपिका भी महेंद्रन से मिलने के बाद उन्हीं की तरह टीचर बनना चाहती है.