भारत में आज मुर्गी पालन का व्यवसाय बड़े लेवल पर हो रहा है. भारत आज बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल समेत कई देशों में मांस का निर्यात कर रहा है. पिछले कुछ सालों में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मुर्गी पालन बेहद तेज़ी से लोकप्रिय हुआ है. इसका फायदा ये हुआ कि अंडे और मीट के उत्पादन में वृद्धि हुई है. भारत सरकार भी किसानों को रोज़गार देने के लिए पोल्ट्री फ़ार्मिंग का व्यवसाय अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. पोल्ट्री फ़ार्मिंग की शुरुआत करने के लिए किसानों को बंपर सब्सिडी भी दी जा रही है.

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भारत में अब तक आपने कड़कनाथ मुर्गे के बारे में ख़ूब पढ़ा और सुना होगा, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी देसी मुर्गी के बारे में बताने जा रहे है, जिसकी ख़ासियत जानकार आप हैरान रह जाएंगे.

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दरअसल, भारत में पिछले कुछ सालों से मांस उत्पादन के लिए देसी असील मुर्गियों (Asil Chicken) का उत्पादन बड़ी मात्रा में हो रहा है. अगर आप कम समय में बड़ी मात्रा में अंडों का उत्पादन करना चाहते हैं तो ये मुर्गी आपके काम की चीज़ नहीं है, क्योंकि ये साल में केवल 60 से 70 अंडे ही देती है. लेकिन इसके अंडों की क़ीमत बेहद ज़्यादा होती है. असील मुर्गी के 1 अंडे की क़ीमत में आप आम मुर्गी के 15-20 अंडे ख़रीद सकते हैं.

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100 रुपये में बिकता है 1 अंडा

असील मुर्गियों और मुर्गों का पालन ख़ासतौर पर मीट उत्पादन के लिए किया जा रहा है. लेकिन आज इनके अंडे चमत्कारिक साबित हो रहे हैं. सालाना केवल 60 से 70 अंडे देने की क्षमता होने की वजह से असील मुर्गियों के अंडे काफ़ी डिमांड में हैं. इसी वजह से इनकी क़ीमत भी काफ़ी ज़्यादा है. इसके 1 अंडे के लिए आपको 100 रुपये या उससे ज़्यादा भी ख़र्च करने पड़ सकते हैं. असील मुर्गी के अंडों का सेवन आंखों के लिए बेहद फ़ायदेमंद माना जाता है.

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असील मुर्गियां दिखने में होती हैं अलग

असील मुर्गियां अपने ख़ास आकर की वजह से भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी होती हैं. ये आम मुर्गियों से एकदम अलग दिखती हैं. इनका मुंह लंबा और बेलनाकार होता है, लंबे पंख और लंबी गर्दन इन्हें ख़ास बनाती हैं. इस नसल के मुर्गे का भार 4-5 किलो और मुर्गी का भार 3-4 किलो होता है. जबकि इनके कोकराल (युवा मुर्गे) का औसतन भार 3.5-4.5 किलो और पुलैट्स (युवा मुर्गी) का औसतन भार 2.5-3.5 किलो पाया जाता है.

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इन राज्यों में पाई जाती हैं असील मुर्गियां

भारत के कई राज्यों में आज भी मुर्गों की लड़ाई का चलन है. ऐसे में असील नस्ल के मुर्गों और मुर्गियों को ही लड़ाई में इस्तेमाल किया जाता है. इसकी नस्ल केवल दक्षिणी पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और आंध्र प्रदेश में पाई जाती है. इसके सभी नस्लों में रेजा (हल्की लाल), टीकर (भूरी), चित्ता (काले और सफ़ेद सिल्वर), कागर (काली), Nurie 89 (सफ़ेद), यारकिन (काली और लाल) और पीला (सुनहरी लाल) नस्लें बेहद मशहूर हैं.

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