History OF Bose Curry: भारतीय खाने की ख़ुशबू देश में ही नहीं विदेशों में भी महकती है. विदेशियों के लिए भारतीय खाना हो या जगह दोनों ही आकर्षण का केंद्र होते हैं. ऐसा ही एक भारतीय करी व्यंजन है जो जापान में इतना फ़ेमस है कि जापानी उसे ‘बोस करी’ कहते हैं. इसका कनेक्शन फ़्रीडम फ़ाइटर सुभाष चंद्र बोस से नहीं बल्कि रास बिहारी बोस से जुड़ा है.

आइए जानते हैं कि, आख़िर कौन थे रास बिहारी बोस (Rash Behari Bose) जिनकी बोस करी (History OF Bose Curry) को जापान में इतना पसंद किया गया कि आज जापान के घर-घर में ये करी बनाई जाती है.

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क्रान्तिकारी नेता रासबिहारी बोस ने ब्रिटिश राज के विरुद्ध भारत की आज़ादी के लिए गदर षड्यंत्र और आज़ाद हिन्द फ़ौज़ के संगठन के कार्य में अहम् भूमिका निभाई थी. इनका जन्म 26 मई 1886 को बंगाल के बर्धमान ज़िले के गांव सुबालदह में हुआ था. बोस के पिता विनोद बिहारी बोस चंदननगर में नौकरी करते थे तो इनकी शुरुआती पढ़ाई वहीं हुई. इसके बाद, आगे की शिक्षा यहीं के डुप्लेक्स कॉलेज में हुई.

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कॉलेज के दौरान ही रास बिहारी जी अपने शिक्षक चारू चंद से काफ़ी प्रेरित थे, उनका क्रांतिकारी स्वभाव उन्हें काफ़ी पसंद था और उनसे ही प्रेरणा लेकर इन्होंने भी क्रांति की रहा पकड़ ली. कॉलेज पूरा होने के बाद, रास बिहारी डॉक्टरी और इंजीनियरिंग करने जर्मनी चले गए. जर्मनी से लौटने के बाद देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में क्लर्क की नौकरी कर ली.

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अपने शिक्षक से प्रेरित रास बिहारी बोस ने 1905 में बंगाल विभाजन के समय पूरी तरह से क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त हो गए. ऐतिहासिक तथ्‍यों की मानें तो, 23 दिसंबर 1912 में दिल्ली दरबार के दौरान वायसराय लॉर्ड हार्डिंग (Viceroy Lord Hardinge) पर बम हमला भी रास बिहारी बोस ने ही किया था. हमला करने के बाद रास बिहारी अपनी सरकारी नौकरी पर वापस चले गए. कहते हैं कि, जब इस हमले को लेकर बोस पस उंगलियां उठनी शुरू हुईं तो पुलिस ने बोस को पकड़वाने के लिए 1 लाख रुपये का इनाम रखा. इसी दौरान, बोस एक ट्रेन में पुलिस कमीश्नर के बगल में बैठे लेकिन वो उन्हें पहचान नहीं पाए.

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1913 में जतिन मुखर्जी ने उनके मन में दोबारा क्रांति की लौ जलाई और रास बिहारी बोस अब सब कुछ छोड़ कर क्रांतिकारी बन गए. प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान कई नेताओं के साथ मिलकर ‘सशस्त्र क्रांति’ की योजना बनाई, जिसमें रासबिहारी बोस की प्रमुख भूमिका थी. बस, इसके बाद ब्रिटिश पुलिस रास बिहारी बोस को चारों तरफ़ ढूंढने लगी इनसे बचने के लिए बोस नाम बदलकर राजा पी. एन. टैगोर के नाम से जून 1915 में जापान चले गए. ब्रिटिश सरकार ने इन्हें ढूंढना बंद नहीं किया और उन्हें पता चल गया कि वो टोक्यो में हैं.

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इंग्लैंड ने जापान से अपनी अच्छी दोस्ती को भुनाते हुए रास बिहारी को सौंपने की मांग की, लेकिन जापान के एक ताक़तवर लीडर ने उन्हें अपने घर में छुपा लिया. ब्रिटिश पुलिस ने रास बिहारी के इस ठिकाने का भी पता लगा लिया लेकिन वो वहां से भी उन्हें धोखा देकर भाग गए. इस दौरान, रास बिहारी बोस ने जापान में कुल 17 ठिकाने बदले थे.

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जापानी लीडर के घर से निकलने के बाद रासबिहारी बोस का नया ठिकाना नाकामुराया बेकरी थी जहां वो कई महीनों तक छुपे रहे. अंग्रेज़ों के डर से उन्हें बेकरी मालिक निकलने भी नहीं देता था ऐसें में वो बेकरी के अंदर ही रहते थे. सारा दिन उनके परिवार के साथ रहने की वजह से रास बिहारी उनसे काफ़ी घुल मिल गए और उनके कामों में भी हाथ बंटाने लगे.

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साथ ही जापानियों को भारतीय खाना भी बनाना सिखाने लगे. बस यहीं पर, इन्होंने जापान की डिश को भारतीय अंदाज़ में बनाया, जो करी सभी को बहुत पसंद आई. जापान में इस करी की रेसिपी को ‘नाकामुराया बोस’ या ‘बोस करी’ कहा जाता है.