चांद जैसी दिखती है वो टेस्ट है उसका लाजवाब

होली की शान है और गुजिया है उसका नाम.

होली(Holi) का त्यौहार हो और गुजिया(Gujiya) की बात ने हो ऐसा हो ही नहीं सकता. होली आते ही लोग इस स्वादिष्ट मिठाई को बनाने की तैयारी में लग जाते हैं. इसे बनाने भी एक कला है और बिना टीम वर्क करे इस मिशन को पूरा नहीं किया जा सकता. मगर जब ये बनकर तैयार होती है और आपके सामने प्लेट में सज कर आती है तो इसे खाए बिना कोई रह नहीं पाता.

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गुजिया खाते समय आपने ज़रूर कभी न कभी ये ज़रूर सोचा है होगा कि इसका इतिहास क्या है और होली पर ही इसे क्यों बनाया जाता है? आपके इन सभी सवालों के जवाब हम आपके लिए लेकर आए हैं.   

गुजिया के हैं अलग-अलग नाम  

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गुजिया(Gujiya) सिर्फ़ उत्तर भारत में ही नहीं बल्कि पूरे देश में बड़े चाव से खाई जाती है. इसलिए देशभर में इसके अलग-अलग नाम भी हैं. महाराष्ट्र-ओड़िशा में इसे करंजी, गुजरात में घुघरा, तमिलनाडु में गरिजालू, बिहार में इस मिठाई को पेड़ाकिया और  उत्तर भारत में से गुजिया और गुझिया नाम से जाना जाता है. वैसे एक फ़ैक्ट आपको ये भी बता दें कि गुजिया और गुझिया दोनों में फर्क होता है. 

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गुजिया को मैदे के अंदर खोया, ड्राई फ़्रूट्स और चीनी डालकर बनाया जाता है. वहीं जब इसी को चीनी की चाशनी में डुबोकर सर्व किया जाता है तो उसे गुझिया कहा जाता है. इसका एक गोल वर्ज़न भी आता है जो लोगों के बीच चंद्रकला के नाम से मशहूर है.   

गुजिया का इतिहास(History Of Gujiya)

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चलिए अब जानते हैं गुजिया के इतिहास के बारे में. इतिहासकारों की मानें तो गुजिया हमारे देश में मिडिल ईस्ट से आई थी. 13वीं शताब्दी में वहां पर गुजिया को एक अलग ढंग से बनाया जाता था. वहां इसमें खोए की जगह पर शहद और गुड़ भरा जाता था. मैदे की जगह आटे का इस्तेमाल होता था और इन्हें तेल में डीप फ़्राई नहीं बल्कि धूप में सुखाकर खाया जाता था. 

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इसके अवाला एक दूसरी थ्यौरी है जो भारत से जुड़ी है. इसके अनुसार, 17वीं शताब्दी में इसे उत्तर प्रदेश बनाया गया था. यहां से ये पूरे भारत में मशहूर हो गई. ये भी कहा जाता है कि गुजिया एक तुर्की डिश Apupa(चावल से बना केक) का दूसरा वर्ज़न है.   

कब शुरू हुआ होली में गुजिया बनाने का चलन  

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होली में गुजिया बनाने का ट्रेंड कब शुरू हुआ ये तो नहीं पता लेकिन ये बहुत पुरानी परंपरा है. इसकी शुरुआत सबसे पहले ब्रज में हुई थी. कहते हैं तब भगवान कृष्ण के भोग के लिए इसे विशेष रूप से बनाया गया था. तभी से होली में गुजिया बनाने का चलन ब्रज से होते हुए पूरे देश में फैल गया. वैसे इस मिठाई को बनाने के लिए किसी ख़ास त्यौहार की ज़रूरत नहीं है, लोग इसे कभी बनाकर खाने से चूकते नहीं हैं. रही त्यौहार की बात तो दिवाली और बिहार में छठ पूजा में भी इसे बनाकर लोग एक दूसरे में बांटते हैं.   

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चलते-चलते आपको ये भी बता दें कि इस स्पेशल मिठाई को बनाने के लिए पहले महिलाएं अपने नाख़ून बढ़ाती थी. बड़े नाख़ूनों से गुजिया को गोंठना यानी बंद करना बहुत आसान होता था. इसलिए महिलाएं ऐसा करती थीं. मगर अब मार्केट गुजिया बनाने के बहुत सारे सांचे उपलब्ध हैं इसलिए हाथ से गोंठी हुई गुजिया जल्दी घर में देखने को नहीं मिलती हैं. 

गुजिया का इतिहास लिखते-लिखते मेरा भी मन गुजिया खाने का करने लगा, आप भी एक गुजिया खाकर आईए.