हमारा देश विविधताओं से भरा पड़ा है. यहां के हर राज्य में अलग-अलग स्वाद के पकवान खाने को मिलते हैं. ऐसा ही एक ख़ास फ़ूड है ‘झालमुड़ी’. यूं तो झालमुड़ी पूरे देश में खाने को मिलती है, वो भी अलग-अलग स्वाद में. लेकिन क्या आप इसका इतिहास जानते हैं?

झालमुड़ी को अकसर लोग बिहार का स्ट्रीट फ़ूड समझने की ग़लती कर बैठते हैं. लेकिन वास्तव में ये पश्चिम बंगाल से आया है. झाल का मतलब होता है मसालेदार और मुड़ी का मतलब चावल के भुने हुए दाने. 

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ये स्पाइसी स्ट्रीट फ़ूड इतना लज़ीज़ है कि ये भारत के अलग-अलग राज्यों के साथ ही विदेशों में भी फ़ेमस है. कर्नाटक में इसे ‘झुरीमुरी’ के नाम से जाना जाता है. मुंबई में ‘भेलपुरी’, यूपी में ‘लइया-चना’ कहा जाता है. बिहार के लोग तो इसे बहुत पसंद करते हैं. मुंबई में लोग इसे इवनिंग स्नैक्स के रुप में खाना पसंद करते हैं. 

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स्थान बदलने के साथ ही इसका नाम भी बदल गया है, लेकिन स्वाद बिलकुल वैसा का वैसा ही है. बनाने का तरीका भी लगभग एक जैसा ही है. ब्रिटिश शेफ़ Angus Denoon लंदन के लोगों को इसका स्वाद चखा रहे हैं.

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फ़ूड राइटर और इतिहासकार Pritha Sen के अनुसार, झालमुड़ी द्वितीय विश्व युद्ध के आस-पास लोगों के बीच फ़ेमस हुई. तब बिहार और यूपी से आए मज़दूरों ने इसे नाश्ते के रूप में बंगाल की गलियों में बेचना शुरू किया था. उस वक़्त झालमुड़ी बनाने वाले लोग इसे पुरानी सिगरेट के टिन के डिब्बे में बनाते थे. 

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बंगाल में झालमुड़ी पहले से ही मौजूद थी. हालांकि, इन्होंने इसे एक फ़ेमस स्ट्रीट फ़ूड बनाने में मदद की. पश्चिम बंगाल की गलियों में तो आपको झालमुड़ी वेंडर आसानी से देखने को मिल जाएंगे. कुछ ऐसा ही हाल देश के दूसरे हिस्सों का भी है. लेकिन अलग-अलग नाम के साथ.  

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स्नैक्स के राजा कहलाने वाले झालमुड़ी का इतिहास जानते थे आप? 

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