भारत के बिज़नेस की बात जब भी होगी तो टाटा कंपनी का नाम सबसे ऊपर आएगा. ऐसा इसलिए की इस कंपनी ने अपने होने का न सिर्फ एलान किया है बल्कि हर बिज़नेस में ख़ुद बेहतरीन होने का तमग़ा भी दिलाया है. साल 1983 में एक बार जेआरडी टाटा ने बोर्ड मीटिंग लेते वक़्त पूछा कि आख़िर हमारे आने वाले 10 साल का प्लान क्या होना चाहिए. इसका जवाब देते हुए रतन टाटा ने बोला था कि हम आने वाले 10 सालों में ग्लोबल होने की तरफ क़दम बढ़ाएंगे.   

Tata

रतन टाटा को कंपनी कमान 1991 में मिली. ये उभरते हुए एक बिज़नेसमैन के लिए शानदार वक़्त था, क्योंकि इस वक़्त भारत का बाज़ार ख़ुल रहा था. विदेशी कंपनियों ने भारत में पैसा लगाना शुरु किया था. ऐसे में रतन टाटा ने भारत के साथ-साथ टाटा कंपनी तो दुनियाभर में फैलाने का मास्टर प्लान बनाया. 11 सालों में टाटा भारत और विदेशी मिला कर कुल 37 कंपनियों ख़रीदा है.

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टेटली

तो मास्टर प्लान का पहला सूत्र बनी टेटली. टेटली उस दौर में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चाय बेचने वाली कंपनी थी, जबकि लिपटन पहले नंबर पर थी, उसी वक्‍त टेटली ने ख़ुद को बेचने की बात उठाई और रतन टाटा को ये शानदार अवसर दिखा, अपनी उत्पाद की हुई चाय पत्तियों से घाटे में चल रही कंपनी को प्रॉफ़िट में लाने का. रतन टाटा ने टेटली पर लगी बोली में कई बड़ी कंपनियों हराया और 271 मिलियन यूरो में टेटली को टाटा बनाया. अगले तीन साल में ही कंपनी ने अपनी लागत कमा कर कंपनी को प्राॅफ़िट में ला खड़ा किया. इतना ही कुछ सालों में ही टाटा दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी चाय कंपनी बन गई 

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CORUS

टाटा ने अगली बड़ी टील की CORUS के साथ, लेकिन भारत और यूएस सरकार ने ,स्टील उत्पाद और बेचने में अपने कई नियम बदले, जिसका सीधा असर टाटा स्टील को हुआ. कंपनी 18 मिलियन टन स्टील हर साल उत्पाद करती थी. वहीं घाटे में चलती कंपनी को इसे कम कर के 10 मिलियन टन स्टील हर साल उत्पाद करना पड़ा था. उस दौर में एक इंटरव्यू में रतन टाटा ने मुस्कुराते हुए कहा था, Market Would Come Round, जिसका मतलब था कि बाज़ार फिर से सही होगा. हुआ भी वहीं. क़रीब एक दसक तक घाटे में रहने वाली कंपनी ने बाजार पकड़ा और टाटा ग्रुप की सबसे ज़्यादा प्रॉफ़िट देने वाली कंपनी बन गई.   

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स्टारबक्स

टाटा ने तेज़ी से बढ़ती स्टारबक्स के साथ भी हाथ मिलाया और 50 प्रतिशत भागीदारी कॉफ़ी कंपनी के साथ की. स्टारबक्स के लिए फूड़ प्रॉडक्ट का भी उत्पादन शुरू किया और आज ये भागीदारी सबसे बड़ी मुनाफ़ा कमाने वाली कंपनी बनी हुई है. टाटा कंज़्यूमर प्रॉडक्ट्स लिमिटेड ने लिवर ग्रुप की जड़ें हिला कर रख दीं. 

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जगुआर और लैंड रोवर

अगली बात करते हैं साल 2008 की, जो डील शायद हम सब ने सुनी होगी. साल 2008 में टाटा ने जेगुआर को ख़रीदा, लेकिन एक दिलचस्प बात ये है कि 2.3 बिलियन डॉलर की इस डील में टाटा ने पूरा पैसा कैश में दिया था. लेकिन कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती. टाटा मोटर सेग्मेंट में पहले ही बहुत बड़े नुक़सान को झेल रही थी और जेगुआर ख़रीदने के बाद ये नुक़सान बढ़ कर 291 बिलियन रूपये हो चुका था. लेकिन रतन टाटा जो की इस सेग्मेंट में खुद इन्वॉल्व थे, उन्होंने बिना देरी किए यूएस और दुनियाभर के डीलर्स से मुलाक़ात की और वक्त के हिसाब से कार में बदलाव की बात रखी, इस प्लान को 2013 में लागू किया गया, जिसके बाद 2017 तक न सिर्फ़ जेगुआर बल्कि टाटा मोर्टर्स भी प्रॉफ़िट में आई. साल 2017 में कंपनी ने 34 बिलियन यूएस डालर का रेवेन्यु जेनेरेट किया, जो किया आज तक का सबसे बड़ा रेवेन्यू था.

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बिग बास्केट

हाल ही में टाटा ने बिगबास्केट को भी अपने ग्रुप में शामिल किया है, बिग बास्केट ग्रोसरी डिलेवरी कंपनी है, जो बीते कुछ सालों में प्रॉफ़िट कमाने में नाकाम रही, लेकिन टाटा ग्रुप का हिस्सा बनते ही कंपनी की हालत में सुधार हुआ है.

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टाटा CLiQ

टाटा ग्रुप ने डिजिटल शॉपिंग में ख़ुद को आगे लाने के लिए CLiQ के साथ हाथ मिलाया, हांलाकि अभी इस भागीदारी में कंपनी को फ़ायदा नहीं हुआ है, लेकिन तेजी से बढ़ते स्टोर और कंपनी का प्रचार पॉलिसी को देख कर लगता है कि ये कंपनी भी टाटा प्रॉफ़िट में ला कर दिखाएगी

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भूषण स्टील

भारत में भी टाटा ने स्टील उत्पाद करने वाली कंपनी को ख़रीदा, जिसमें भूषण स्टील प्रमुख नाम है. घाटे में चल रही भूषण स्टील बंद होने के कग़ार पर थी और हज़ार करोड़ से ज़्यादा का कर्ज़ चढ़ा हुआ था. लेकिन बीते 4 साल पहले टाटा ने भूषण स्टील को ख़रीद लिया और आज कंपनी को प्रॉफ़िट में लाने के लिए सही प्रयास किए जा रहे हैं.   

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Hitachi

इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद में भी टाटा ने Hitachi को टाटा ग्रुप में शामिल किया. Hitachi ग्रुप के साथ ही टाटा ने इस सेग्मेंट में भी अपनी कमज़ोर होती पकड़ को एक बार फिर से मजबूत कर लिया

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मार्कोपोलो

टाटा के ट्रक्स और बस की गिरती सेल को दोबारा पटरी पर लाने के लिए टाटा ने मार्कोपोलो के साथ हाथ मिलाया, इस कंपनी को टाटा ग्रुप में शामिल करते ही बसों और ट्रकों के रेवेल्यूसरी चेंज के साथ ही टाटा एक बार फिर ट्रक और बस के सेग्मेंट खड़ा हो गया

Indian express

एवियेशन में लम्बी उड़ान की तैयारी

हाल ही में टाटा ग्रुप ने एयर इंडिया को आपस अपने पाले में ला खड़ा किया है. 18000 करोड़ के इस सौदे के बाद एयर इंडिया भी प्राइवेट हो गई, लेकिन ये सौदा भी टाटा ग्रुप के लिए आसान नहीं होगा. एयर इंडिया करीब 70 हज़ार 820 करोड़ रुपये के घाटे में चल रही थी.

Reuters

एयर इंडिया की चुनौती से कम नहीं, लेकिन टाटा ग्रुप और रतन का टाटा के पुराने फ़ैसलों ने साबित किया है कि वो हमारे देश के और दुनिया के सबसे बेहतरीन बिजनेस माइंड्स में से एक हैं. यक़ीन से तो नहीं, लेकिन हम ये बात कह ज़रूर सकते हैं कि अब एयर इंडिया एयरलाइंस के दिन बदलने वाले हैं, शायद थोड़ा वक़्त लगे लेकिन ऐसा होगा ज़रूर.