Rizwan Sajan Profile : बचपन में ही पिता का सिर से साया उठ जाना दुनिया की सबसे तकलीफ़देह फ़ीलिंग्स में शामिल है. डनुबे कंपनी के मालिक और बिज़नेसमैन रिज़वान साजन (Rizwan Sajan) भी इस दुःखदाई फेज़ से गुज़र चुके हैं. वो मात्र 16 साल के थे, जब उन्होंने अपने पिता को खोया. भारतीय मूल के रिज़वान साजन आज भले ही UAE के अरबपतियों में शामिल हों, लेकिन यहां पहुंचने तक उनका सफ़र संघर्षों से भरा हुआ है.

Rizwan Sajan Profile

आइए आज हम आपको रिज़वान साजन के बारे में हर एक डीटेल बताते हैं.

रिज़वान साजन की शुरुआती ज़िंदगी

रिज़वान साजन का जन्म मुंबई के घटकापोर के एक लोअर मिडिल क्लास परिवार में हुआ था. उनके पिता नथानी स्टील प्राइवेट लिमिटेड के लिए काम करके महीने में 7000 रुपए कमाते थे. रिज़वान के तीन भाई-बहन थे, जिसमें वो सबसे बड़े थे. उनके स्कूल का नाम विद्या विहार था, जहां वो रोज़ 7-8 किलोमीटर पैदल चल कर जाया करते थे. उनके पिता उन्हें हर महीने 15 रुपए ट्रांसपोर्ट और पर्सनल ख़र्चों के लिए देते थे. लेकिन वो स्कूल पैदल चल कर ही जाते थे, ताकि समोसे और चाय के लिए वो रुपए बचा सकें.

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पिता की मौत के बाद पटरी से उतरी ज़िन्दगी

16 साल की उम्र में रिज़वान के पिता का निधन हो गया, जिसके बाद अचानक से ही घर की सारी ज़िम्मेदारी उन पर आ गई. उन्होंने गलियों में घूमकर छोटी-छोटी चीज़ें बेचनी शुरू कर दीं. फिर उन्होंने क़िताबों से लेकर स्टेशनरी के सामान बेचना शुरू किया. इसके बाद एक्स्ट्रा इनकम के लिए उन्होंने शाम को घर-घर दूध भी बेचा. उनके पिता की ग्रेच्युटी से उन्हें हर महीने 3000 रुपए मिलते थे. जिस कंपनी में उनके पिता काम करते थे, उन्होंने रिज़वान से 2000 रुपए महीने की नौकरी की पेशकश की. हालांकि, इस नौकरी के साथ पार्ट टाइम नौकरियां करने के बाद भी उनका घर नहीं चल पा रहा था.

क़ुवैत में अंकल से मांगी मदद

जब पानी सिर से ऊपर चला गया, तो रिज़वान ने क़ुवैत में रह रहे अपने चाचा को एक पत्र लिखा और पूछा कि वहां उनके लिए क्या कोई जॉब वैकेंसी है. जिस पर उन्होंने जवाब दिया कि 16 साल के होने के चलते उन्हें वहां नौकरी नहीं मिल सकती. ये बात सुनकर उन्हें गहरा धक्का लगा. उन्हें लगा कि उनके चाचा उनकी मदद नहीं करना चाहते. सारी उम्मीद खोकर रिज़वान ने दो साल अपनी फ़ैमिली के लिए जी तोड़ मेहनत करना जारी रखा. लेकिन जब वो 18 साल के हुए, तब उनके चाचा ने कुवैत से उन्हें एक जॉब ऑफ़र का लेटर भेजा.

कुवैत में बदली ज़िन्दगी

उन्हें एक सेल्स ट्रेनी की 1981 में क़ुवैत में नौकरी मिली, जिसमें उनकी सैलरी भारतीय करेंसी में कन्वर्ट करने पर 17,000 रुपए के आसपास थी. कंपनी द्वारा दिए गए घर में रहने से पहले वो अपने अंकल के साथ 6 महीने रहे. वहां उन्होंने कई बिज़नेस स्किल्स भी सीखी. कंपनी ने जो कमरा दिया था, उसमें एक कमरे में 12 लोग रहते थे. धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और उनकी सैलरी 150 दीनार से 1500 दीनार तक पहुँच गई. वो सेल्स मैनेजर बन गए. उन्होंने सेविंग से अपनी बहन की शादी कराई और फिर बाद में अपने लिए भी लाइफ़ पार्टनर ढूंढ ली.

सद्दाम हुसैन के क़ुवैत पर हमले से आया ठहराव

सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 1990 में सद्दाम हुसैन की क़ुवैत में घुसपैठ से फिर ज़िंदगी ज़मीन पर आ गई. रिज़वान की सारी सेविंग्स ख़त्म हो गईं. खाड़ी युद्ध शुरू होने के बाद वो मुंबई लौट आए. उन्होंने फिर से नौकरी तलाशनी शुरू की. इसके बाद उन्हें दुबई में एक नौकरी के बारे में पता चला, जिसका काम ब्रोकरेज के धंधे से जुड़ा था. ये कंपनी बिल्डिंग मैटेरियल सहित कई तरह के बिज़नेस में थी. बिज़नेस को अच्छी तरह से समझने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ कर बिल्डिंग मैटेरियल की अपनी कंपनी शुरू करने का फ़ैसला किया. इसके साथ ही Danube का जन्म हुआ.

कंपनी का है करोड़ों का टर्नओवर

आज उनकी कंपनी का टर्नओवर 1.4 बिलियन डॉलर से अधिक है और दुनिया भर में 50 से अधिक स्थानों पर इसका संचालन है. साथ ही इसके दुनिया भर में 3,300 से अधिक कर्मचारी हैं. 1993 में शुरुआत के बाद इस ग्रुप में कई बिज़नेस शामिल हो चुके हैं. आज रिज़वान की गिनती UAE के सबसे अमीर इंडियन बिज़नेसमैन में होती है. साथ ही उनकी नेट वर्थ 18 हज़ार करोड़ रुपए के क़रीब है.