Royal Enfield Siddharth Lal : सफ़लता मिलने की ख़ुशी भला कौन नहीं महसूस करना चाहता. इसको अचीव करने के पीछे काफ़ी मेहनत और संघर्ष छिपी होती है. हालांकि, एक बार बेहद प्रतिकूल समय में जिसे सफ़लता हासिल हो जाए, उसकी कहानियां लोगों को हमेशा सुनाई जाती हैं. भारतीय सड़कों पर दौड़ती टू व्हीलर रॉयल एनफ़ील्ड (Royal Enfield) की भी कुछ ऐसी ही सफ़लता भरी कहानी है. जी हां, वही रॉयल एनफ़ील्ड, जिसकी बाइक्स को सड़कों पर दौड़ाते लोग ख़ुद को शहंशाह से कम नहीं समझते हैं. कभी एक ज़माने में सड़कों से ग़ायब हो चुकी रॉयल एनफील्ड की मौजूदा नेट वर्थ 54 हज़ार करोड़ रुपए पहुंच चुकी है.

Royal Enfield Siddharth Lal

इसकी सफ़लता के पीछे का श्रेय इसके CEO सिद्धार्थ लाल को दिया जाए, तो बिल्कुल ग़लत नहीं होगा. आइए आज हम आपको बताते हैं कि सिद्धार्थ लाल से कैसे इस कंपनी का बेड़ा पार किया था.

कौन हैं सिद्धार्थ लाल?

आज भले ही भारत में रॉयल एनफ़ील्ड की पॉपुलैरिटी आसमान छू रही हो, लेकिन एक वक़्त ऐसा आया, जब ये कंपनी हमेशा के लिए बंद होने की कगार पर थी. इस दौरान सिद्धार्थ ने एक और मौका मांगा और फिर इसका डंका दुनियाभर में बजा दिया. दरअसल, साल 1973 में 27 की उम्र में सिद्धार्थ लाल इस कंपनी के सीईओ बने थे. वो कंपनी के चेयरमैन रहे विक्रम लाल के बेटे हैं. उन्‍होंने दून स्‍कूल से शुरुआती पढ़ाई के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्‍टीफ़न कॉलेज से इकोनॉमिक्‍स में ग्रेजुएशन किया. इसके बाद क्रैनफ़ील्‍ड यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्‍टर डिग्री ली. उन्होंने यूके की लीड्स यूनिवर्सिटी से ऑटो इंजीनियरिंग में मास्‍टर भी किया है.

ये भी पढ़ें : ‘राजदूत’ बाइक के बारे में सब जानते हैं लेकिन बहुत कम लोग ही इसको बनाने वाली कंपनी का पता है

बचपन से ही थे बुलेट के दीवाने

सिद्धार्थ को बचपन से ही बुलेट का शौक था, लेकिन कौन जानता था कि ये एक दिन रॉयल एनफ़ील्ड की डूबती नैया को पार लगाएंगे. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें, तो साल 2000 में कंपनी के चेयरमैन विक्रम लाल और सीनियर एग्ज़ीक्यूटिव इस कंपनी को बंद करने की सलाह दे रहे थे, क्योंकि कंपनी काफ़ी घाटे में जा रही थी. इसके बाद सिद्धार्थ ने क़ारोबार को दोबारा उठाने के लिए कुछ समय मांगा.

सिद्धार्थ ने कैसे बनाया रॉयल एनफ़ील्ड को फिर से किंग?

ज़िम्मेदारी मिलने के बाद सिद्धार्थ ने ख़ुद मोटरसाइकिल को चलाने के लिए कुछ समय मांगा. उन्होंने ख़ुद एक महीने तक इसे चलाया और इसकी खामियां और ख़ूबियों को पहचाना. कहा जाता है कि सिद्धार्थ ने हज़ारों किलोमीटर का सफ़र बाइक से करके लोगों से उनकी पसंद के बारे में जाना और समझा. युवाओं के लिए आइकॉन बनाने के लिए उन्होंने इसमें बदलाव किए और दो साल के भीतर इसका पूरा हुलिया ही बदल दिया. इसके बाद जो हुआ, वो अचंभित करने वाला था. देखते ही देखते इसकी बिक्री में ज़बरदस्त उछाल आया. साल 2014 आते-आते आयशर मोटर्स लिमिटेड ग्रुप की कुल कमाई में 80 फीसदी हिस्‍सेदारी सिर्फ़ इनफ़ील्ड की होने लगी.

सिद्धार्थ ने बाइक के लिए बेच दिया ट्रैक्टर का बिज़नेस

साल 2005 में सिद्धार्थ ने रॉयल एनफ़ील्ड के लिए आयशर मोटर्स के ट्रैक्‍टर बिज़नेस को ट्रैक्‍टर्स एंड फार्म इक्‍यूपमेंट लिमिटेड को बेच दिया. बता दें कि आयशा मोटर्स का पहला बिज़नेस ट्रैक्टर ही था. इसके बाद उन्‍होंने ट्रक बिज़नेस का भी 46 फीसदी बिज़नेस साल 2008 में स्‍वीडिश कंपनी वॉल्‍वो को बेच दिया. इसी के बूते इनफ़ील्‍ड अपने बाइक के दाम कम रख सकी. बीते साल 2022 में कंपनी ने 8,34,895 मोटरसाइकिल बेची, जो अभी तक का रिकॉर्ड है.

ये भी पढ़ें: जानिए बाइक या गाड़ी के टायर्स पर क्यों होते हैं कांटेदार रबर हेयर

आधी हो चुकी है सिद्धार्थ की सैलरी

मौजूदा समय में सिद्धार्थ आयशर ग्रुप के एमडी और सीईओ हैं. साल 2015 से वो यूके में हैं और वहीं से अपने बिज़नेस की कमान संभाल रहे हैं. साल 2021 में एक विवाद के चलते उनका सालाना पैकेज 21.12 करोड़ से घटाकर 12 करोड़ रुपए कर दिया गया था.