टॉर्ज़न एक ऐसा शख़्स था जो जंगल में रहता था और जंगली चीज़ें खाकर अपना गुजारा करता था. जंगली जानवरों से भी उसकी खूब पटती थी. ऐसी कई कहानियां आपने पढ़ी और सुनी होंगी, लेकिन क्या आप भारत में रहने वाले एक रियल टार्ज़न के बारे में जानते है?
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ये टार्ज़न पिछले 17 वर्षों से जंगलों में रह रहा है. कर्नाटक के जंगलों में रहने वाले ये आदमी 21वीं सदी में भी क्यों जंगलों में रह रहा है इसकी एक दिलचस्प वजह है.
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बीते 17 सालों से कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले के सुल्लिअ तालुक क्षेत्र में आने वाले घने जंगलों में ये शख़्स रहता है. इसका नाम चंद्रशेखर है. इसने बीच जंगल में अपनी झोपड़ी बना रखी है. जंगली फल-फूल और पास के गांव वालों से मिलने वाले राशन से ये अपना पेट भरता है.
टोकरी बनाकर बेचते हैं
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पिछले 17 सालों चंद्रशेखर ने बाल तक नहीं कटवाएं हैं और न ही दाढ़ी बनवाई है. ये आजिविका के लिए जंगली पत्तों से टोकरी बनाकर पास के बाज़ारों में बेचते हैं. वो शुरू से ही ऐसे नहीं थे. वो नेक्रल केमराजे गांव में रहते थे और खेती किया करते थे. उनके पास 1.5 एकड़ ज़मीन भी थी. 2003 में उस पर फ़सल लगाने के लिए उन्होंने बैंक से कर्ज़ ले लिया जिसे वो चुका नहीं पाए और बैंक वालों ने उनकी ज़मीन नीलाम कर दी.
जंगल जाने की वजह
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इससे नाराज़ होकर वो अपनी एंबेसडर कार से बहन के घर रहने चले गए. कुछ दिन वहां रहने के बाद घरवालों से खटपट हो गई और उन्होंने अकेले रहने का फ़ैसला किया. तब वो अपनी कार को इन जंगलों में ले आए और यहीं रहने लगे. जब चंद्रशेखर ने घर छोड़ा था तब उनके पास 2 जोड़ी कपड़े और चप्पल ही थी. अब इनके पास एक पुरानी साइकिल भी है.
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उसी के सहारे इन्होंने 17 साल काट दिए. जंगल में तेंदुए और हाथी इन्हें परेशान भी करते हैं पर ये वहां से हटने को तैयार नहीं हैं. वन रक्षकों को भी इनसे कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि ये जंगल को कोई नुक़सान नहीं पहुंचाते हैं. ये टोकरी बनाने के लिए भी सूखी पत्तियों और टहनी का इस्तेमाल करते हैं.
लग चुका है कोरोना का टीका
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56 साल के हो चुके चंद्रशेखर के पास आधार कार्ड नहीं है, लेकिन यहां के प्रशासन ने मानवीय आधार पर इन्हें कोरोना का टीका लगा दिया है. लॉकडाउन में इन्हें जंगल में रहने में काफ़ी तकलीफ़ हुई थी. तब जंगली फल आदि खाकर इन्होंने गुज़ारा किया था. चंद्रशेखर को लगता है कि एक दिन उन्हें उनकी ज़मीन वापस मिल जाएगी और वो फिर से वहां रहने चले जाएंगे.