हम अपनी रोज़मर्रा की लाइफ़ में बहुत सी चीज़ें इस्तेमाल करते हैं, मगर कभी उनकी ख़ास बनावट पर ध्यान नहीं देते. मसलन, शेविंग ब्लेड (Shaving Blades) को ही ले लीजिए. क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी कंपनी का ब्लेड हो, उसके बीच में एक ही तरह के पैटर्न का स्पेस क्यों छोड़ा जाता है?

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दिलचस्प ये है कि सिर्फ़ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के ब्लेड्स के बीच में सेम पैटर्न में स्पेस होता है. ऐसा क्यों है, आज हम आपको इसी सवाल का जवाब देंगे. मगर उसके पहले आप ब्लेड का इतिहास जान लीजिए.

शेविंग ब्लेड्स का इतिहास (Shaving Blades History)

यूं तो शेविंग करने का इतिहास सदियों पुराना है. पाषाण युग में भी इंसान शेविंग करते थे, हां, तब ये आज के जितनी सरल-सुलभ नहीं थी. उस दौर में लोग नुकीले पत्थर से शेविंग किया करते थे. मगर आधुनिक ब्लेड को बनाने का श्रेय  किंग कैंप जिलेट (King Camp Gillette) को जाता है.

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उन्होंने साल 1901 में ब्लेड बनाया और उसका पेटेंट करवा लिया. साल 1903 में उसका प्रोडेक्शन भी शुरू कर दिया. पहले साल जिलेट ने 165 ब्लेड बेचे थे. दिलचस्प ये है कि अगले ही साल कंपनी ने 1 करोड़ 24 लाख ब्लेड बनाए और बेच डाले.

ब्लेड के ख़ास डिज़ाइन के पीछे क्या वजह है?

जब जिलेट महोदय ने ब्लेड बनया था, तब उन्हें नहीं मालूम था कि दुनिया के परम जुगाड़ू उससे पेंसिल छीलने या नाखून काटने लगेंगे. उन्होंने तो इसे शेविंग के लिए ही बनाया था. ऐसे में उसका डिज़ाइन ऐसा रखा गया कि वो रेज़र में फ़िट हो सके. ऐसे में रेज़र के बोल्ट में फ़िट हो जाने के लिए ब्लेड के बीच में ख़ास पैटर्न का स्पेस बनाया गया था.

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मज़ेदार बात ये थी कि उस वक़्त रेज़र सिर्फ़ जिलेट ही बनाती थी. ऐसे में सिरिक, विलकिंसन, निंजा, लेंसर और टोपाज़ जैसे ब्रांड मार्केट में आ तो गए, मगर उन्हें अपने शेविंग ब्लेड (Shaving Blades) का डिज़ाइन जिलेट के रेज़र के मुताबिक ही रखना पड़ा, ताकि वो उसमें फ़िट हो सके.

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हालांकि, बाद में इन कंपनियों ने भी अपने रेज़र बनाने शुरू कर दिए, मगर ब्लेड का डिज़ाइन नहीं चेंज किया. वजह बहुत नॉर्मल थी कि अगर कोई रेज़र जिलेट का इस्तेमाल करे, तो ब्लेड उनका कर सकता है या फिर इसका उल्टा हो, तो भी कोई परेशानी नहीं. हां, मगर एक सदी का वक़्त गुज़रने के बावजूद जिलेट आज भी लोगों का सबसे भरोसेमंद ब्रांड बना हुआ है.