हिन्दू धर्म के दो महाकाव्य रामायण और महाभारत हैं. यह एक ऐसा महाकाव्य है, जिसके बारे में सबसे ज्‍यादा चर्चा की जाती है. इस काव्‍य से जुड़ी हुई कई मान्यताओं और महाभारत काल से जुड़े स्थानों के बारे में भी आये दिन नई-नई जानकारियां पता चलती रहती हैं. महाभारत में कई रहस्‍य छिपे हुए हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है.

महाभारत युद्ध क्यों हुआ, कौन-कौन इस युद्ध में मारा गया, किस तरह के षड़यंत्र रचे गए, हर कोई जानता है. ये तो सबको ही पता होगा कि जब युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया गया, तो दुर्योधन को ये बात बिलकुल पसंद नहीं आई और उसने ईर्ष्या के कारण पांडवों को मारने के लिए लाक्षागृह बनवाया था. उसने छल से पांडवों को माता कुंती के साथ मेला देखने जाने के लिए कहा और उनको विश्राम करने के लिए लाक्षागृह में जाने के लिए कहा. ताकि वो उनको लाक से बने इस महल में जलाकर मार सके. लेकिन विदुर जिनको दिव्य दृष्टि प्राप्त थी, ने इसके बारे में पांडवों को समय रहते सूचित कर दिया और दुर्योधन की ये चाल असफल हो गई.

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वैसे तो लाक्षागृह जल कर खाक हो गया था लेकिन आज भी वो जगह मौजूद है, जहां दुर्योधन ने लाक का यह महल बनवाया था. जी हां, आज हम आपको उसी के बारे में बताने जा रहे हैं. देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड में स्थित है, लाखामंडल की पौराणिक गुफा, जहां महाभारत काल में पांडवों को एक नया जीवन मिला था.

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प्राकृतिक सुंदरता के बीच सुन्दर वादियों में बसा लाखामंडल गांव यमुना नदी के किनारे स्थित है. बेहद ही खूबसूरत और आकर्षित करने वाला यह स्थान गुफाओं और भगवान शिव के मंदिर के प्राचीन अवशेषों से घिरा हुआ है.

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इस गांव के लोगों के मुताबिक़, इस मंदिर और इसके आस-पास का क्षेत्र, महाभारत के एक प्रकरण से सम्बंधित है. प्रकरण के अनुसार, दुर्योधन ने लाक या लाह से लाक्षागृह का निर्माण पांडवों को जिंदा जलाने के एक षड़यंत्र को अंजाम देने के इरादे से किया था. लोगों का मानना है कि लाक्षागृह, लाखामंडल के आस-पास ही निर्मित हुआ था. महाभारत के अनुसार, जब लाक्षागृह को जला दिया गया था, तब पांडवों ने एक सुरंग की मदद से अपने प्राणों की रक्षा की थी. ऐसी मान्यता है कि वह सुरंग एक गुफा के मुहाने पर जा कर खुलती है, जो अभी भी लाखामंडल में मौजूद है.

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यहां स्थित भगवान शिव के मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि यहां प्रार्थना करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस मंदिर का मुख्य आकर्षण ग्रेफाइट से बना शिवलिंग है. यहां पर खुदाई करते वक्त विभिन्न आकार के और ऐतिहासिक कई शिवलिंग मिले हैं. इस पवित्र भूमि को महाभारत काल से जोड़ा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना अज्ञातवास के समय धर्मराज युधिष्ठिर ने की थी. इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि जब इसका जलाभिषेक किया जाता है, तो यह चमकता है और इसमें जलाभिषेक कर रहां भक्त का प्रतिबिंब भी देख सकता है.

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मुख्य मंदिर के बगल में दानव और मानव को दर्शाती दो मूर्तियां स्थित हैं, जिनको द्वारपाल भी कहा जाता है. लोगों का मानना है कि ये मूर्तियां भीम और अर्जुन की हैं. द्वारपालों की इन मूर्तियों के लिए यह बात कही जाती है कि मृत व्यक्ति का शरीर अगर इनके पास रख दिया जाए, तो वह कुछ पलों के लिए जीवित हो जाता है.

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हमारे देश में कई ऐसी जगहें मौजूद हैं, जो हिन्दू धर्म के महाकाव्यों से जुड़े प्रसंगों से ताल्लुक़ रखती हैं. वैसे ही लाखामंडल भी देखने योग्य स्थान है. अगर आपको प्रकृति और इतिहास में रुचि है, तो एक बार यहां जाना तो बनता हैं.