1947 में बंटवारे के बाद अपनी सर-ज़मीन छोड़ कर हिंदुस्तान आये शरणार्थियों के लिए यहां भी मुसीबतें कुछ कम नहीं थी. नई ज़मीन पर शुरू से शुरुआत करना छिछलते पानी पर महल तैयार करने के जैसा था. इस बीच कुछ ऐसे भी लोग थे, जो खुद से ज़्यादा दूसरों की परवाह कर रहे थे. ऐसे ही कुछ गिने चुने लोगो में से एक थे तेजा राम, जो बंटवारे से पहले पाकिस्तान वाले हिस्से के एक पंजाबी गांव के सरपंच थे. गांव के लोगों को बचाने के लिए तेजा राम मुसलमान बन गए थे, पर हिंदुस्तान लौट कर उन्होंने अमृतसर में वापिस हिन्दू धर्म अपना लिया.
हिंदुस्तान पहुंचने के बाद भी तेजा राम की सेवा भावना कम नहीं हुईऔर वो लगातार 40 दिनों तक शरणार्थी कैम्पों में लोगों की मदद करते रहे. उनकी इस मुहीम में उनकी पत्नी ने भी साथ दिया और लोगों के खाने की व्यवस्था करने के लिए अपने गहने तक बेच दिए. इस वाकये को बेशक अब 60 साल से ऊपर का वक़्त हो गया है, पर तेजा राम द्वारा शुरू किये गए इस सेवा भाव को उनके पोते धरमवीर सिंह बग्गा पिछले 20 सालों से निभा रहे हैं.
तेजा राम मेमोरियल ट्रस्ट के तहत धरमवीर सिंह बग्गा हर सुबह और शाम गरीब लोगों को फ्री खाना खिलाते हैं. इसके अलावा वो अब तक 2200 गरीब लड़कियों की शादी भी करवा चुके हैं. धरमवीर लोगों का फ्री इलाज कराने के साथ ही लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार भी कराते हैं.
धरमवीर का कहना है कि स्वर्ण मंदिर में हिन्दू धर्म अपनाने के बाद उनकी दादी ने मन्नत मानी थी कि वो अपने पोतों की सिख बनाएंगी, जिसके बाद धरमवीर और उनके भाइयों ने सिर पर पग पहनना शुरू किया.
धरमवीर का फैजाबाद में साइकिल पार्ट्स के बिजनेस में हैं, जिसकी कमाई का दसवां हिस्सा वो मानवता की सेवा के लिए निकालते हैं और हर महीने स्वर्ण मंदिर में माथा टेकने आते हैं.
धरमवीर हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे के लिए हर साल एक महीने इफ़्तार पार्टी का आयोजन करते हैं. धरमवीर को सेवा का ये भाव अपनी दादी से उपहार के रूप में मिला था, जिसे वो आज तक निभा रहे हैं.