केंद्र सरकार प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल से अब तक 1 लाख किलोमीटर की सड़क बना चुकी है. केंद्र सरकार पिछले 4 सालों से सड़क निर्माण के लिए प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल कर रही है.

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हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, पिछले 4 सालों में केंद्र सरकार प्लास्टिक कचरे से 1 लाख किलोमीटर की सड़क बना चुकी है. इस दौरान सड़क निर्माण में कोलतार के साथ औसत मात्रा में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया जाता है. प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल से बनी सड़क की गुणवत्ता भी अच्छी होती है. 

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कैसे किया जाता है प्लास्टिक का इस्तेमाल?  

इस दौरान बताया गया कि, हर 1 किलोमीटर सड़क के निर्माण में 9 टन कोलतार और 1 टन प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया जाता है. इसका मतलब ये हुआ कि हर 1 किलोमीटर सड़क के लिए 1 टन कोलतार बचाई जाती है, जिसकी क़ीमत लगभग 30,000 रुपये है. प्लास्टिक की सड़कों में 6-8 प्रतिशत प्लास्टिक होता है, जबकि 92-94 प्रतिशत बिटुमेन होता है.

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बता दें कि केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने साल 2016 में पहली बार सड़क निर्माण में प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल की घोषणा की थी. पिछले 4 सालों में 11 राज्यों में 1 लाख किलोमीटर सड़क बनाने में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया जा चुका है. इस वित्त वर्ष में ये आंकड़ा दोगुना हो जाएगा.

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गुरुग्राम नगर निगम (MCG) ने साल 2018 में पहली बार सड़क निर्माण के लिए प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया था. पर्यावरण को प्लास्टिक से होने नुक्सान और प्लास्टिक कचरे से बनी सड़कों की गुणवत्ता को देखते हुए ‘गुरुग्राम नगर निगम’ ने अब सड़क निर्माण के लिए प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया है.

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असम ने भी इस साल से प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल से सड़क निर्माण का कार्य शुरू कर दिया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, क़रीब 270 किलोमीटर लंबे जम्मू-कश्मीर नेशनल हाइवे को तैयार करने में भी प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया गया है. दिल्ली-मेरठ हाईवे के 2 किलोमीटर स्ट्रेच पर क़रीब 1.6 टन प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया गया था. इसके अलावा धौला कुआं से दिल्ली एयरपोर्ट को जोड़ने वाली सड़क के निर्माण में भी प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया गया है.

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केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक़, भारत में प्रतिदिन लगभग 25,940 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है. इसमें से लगभग 60 प्रतिशत Recycle हो जाता है. बाकी बचे 40 प्लास्टिक प्रतिशत कचरे में से कुछ डंप हो जाता है, कुछ नालियों को जाम करता है, कुछ समुद्र में सूक्ष्म प्लास्टिक के रूप में चला जाता है, यही प्लास्टिक वायु प्रदूषण का कारण भी बनता है.

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भारत में प्रभावी ‘वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम’ न होने के चलते केवल 60 प्रतिशत प्लास्टिक ही Recycle हो पाता है. भारत में वैसे भी प्लास्टिक Recycling की प्रक्रिया बेहद महंगी है.