दुनियाभर के 212 देश जहां कोरोना वायरस से जूझ रहे हैं वहीं भारत का पूर्वोत्‍तर राज्‍य असम कोरोना के साथ ही ‘अफ़्रीकन स्‍वाइन फ़ीवर’ से भी जूझ रहा है. भारत में असम ‘अफ़्रीकन स्‍वाइन फ़ीवर’ का केंद्र बिंदु बन गया है. 

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फ़रवरी माह से अब तक असम में इस वायरस के कारण क़रीब 2800 सूअरों की मौत हो चुकी है. ये वायरस इतना ख़तरनाक है कि इससे संक्रमित सूअरों की मृत्युदर 100 फ़ीसदी है. 

ये वायरस भी चीन से ही आया है 

विशेषज्ञों की मानें तो ये वायरस आसानी से इंसानों तक भी पहुंच सकता है. चीन में इस वायरस का प्रकोप पहले से ही चल रहा है. ‘अफ़्रीकन स्‍वाइन फ़ीवर’ के कारण चीन में 2018 से लेकर अब तक क़रीब 60 प्रतिशत सुअरों की मौत हो चुकी है. शुरुआत में खुले में घूम रहे सूअर ही इस वायरस की चपेट में आए, लेकिन बाद में ये फ़ार्म हॉउस तक पहुंच गया. 

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असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पशु चिकित्सा और वन विभाग को ‘अफ़्रीकन स्‍वाइन फ़ीवर’ से सूअरों को बचाने के लिए एक व्यापक रोडमैप बनाने हेतु इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्‍चरल रिसर्च (ICAR) के ‘नेशनल पिग रिसर्च सेंटर’ के साथ काम करने के आदेश दिए हैं. 

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सीएम सोनोवाल ने ICAR और RILEM के डॉक्टरों के साथ बैठक की. इस दौरान उन्होंने पशु चिकित्सा और वन विभाग से इस वायरस के प्रकोप की रोकथाम के उपाय करने के लिए भी कहा है. साथ ही सूअर पालन क्षेत्र में लगे लोगों की संख्या और उनकी वित्तीय देनदारी का पता लगाने के लिए भी कहा ताकि सरकार उन्हें दंड से बचाने के लिए बेलआउट पैकेज की घोषणा करने के लिए व्यावहारिक कदम उठा सके. 

असम में ‘अफ़्रीकन स्‍वाइन फ़ीवर’ के प्रकोप के बाद एक विशेषज्ञ दल का गठन भी किया गया है. 

असम के पशुपालन और पशु चिकित्सा मंत्री अतुल बोरा ने कहा कि, राज्य व केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने के बाद भी सूअरों को तुरंत मारने के बजाय इस घातक वायरस को फैलने से रोकने के लिए कोई अन्य रास्ता अपनाना होगा. इस बीमारी का कोरोना से कोई लेना-देना नहीं है. फ़िलहाल उस जगहों के सूअरों को खाने में कोई ख़तरा नहीं है जहां ये इंफ़ेक्शन नहीं है. 

बता दे दें कि ‘अफ़्रीकन स्‍वाइन फ़ीवर’ का पहला मामला सन 1921 में केन्या और इथियोपिया में सामने आया था.