अभी कुछ ही दिनों पहले भाजपा सरकार ने गरीब सवर्णों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही. कोई राजनैतिक पार्टी इस मास्टर स्ट्रोक का विरोध नहीं कर पाई. लेकिन सबने आलोचना के तौर पर ये बात ज़रूर कही कि जब सरकार के पास नौकरियां ही नहीं हैं, तो वो आरक्षण का लाभ किसे देगी.
लोकसभा चुनाव सिर पर है, इसके मद्दे नज़र सरकार ने एक और बेहतरीन कदम उठाया है. रेलवे में ग्रुप C और ग्रुप D के 1.2 लाख खाली पदों को भरने की शुरुआत कर दी है.
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लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू कुछ अलग सच्चाई दिखाता है. रेलवे में 1.2 लाख नौकरियां दी जाएंगी, लेकिन उसे 3 लाख से ज़्यादा कर्मचारियों की ज़रूरत है.
अगर आकड़ों पर नज़र दौड़ाएं, तो ये बात बिना लाघ-लपेट के समझी जा सकती है. साल 2016-17 में रेलवे के पास 13,08,323 कर्मचारी थे, आठ साल पहले यानी साल 2008-09 में कर्मचारियों की संख्या 13,86,011 थी.
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साधारण हिसाब लगाने से भी मालूम चलता है कि रेलवे के पास पिछले साल आठ साल पहले के मुक़ाबले 77,688 कर्मचारी कम हैं. इस बीच कई बहालियां भी निकलीं लेकिन उससे हर साल रिटायर होने वाले कर्मचारियों की भरपाई नहीं हो सकी. जहां आठ साल में कर्मचारियों की संख्या में इज़ाफ़ा होना चाहिए था, उनकी संख्या घटा दी गई.
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भारतीय रेलवे दुनिया में सबसे ज़्यादा रोज़गार देने वाली संस्था है. फिर भी इसकी क्षमता का भरपूर उपयोग नहीं किया जा रहा. चुनाव को देखते हुए सरकार आखिर के समय में ग्रुप C और ग्रुप D के लिए 1.2 लाख वैकेंसी निकाल रही है लेकिन ये नौकरियां ज़रूरत के हिसाब से आधे से भी कम हैं.