अख़बार पढ़ना बंद सा हो गया है, जब से ऐप ज़िन्दगी में आए हैं. एक न्यूज़ ऐप के ही नोटिफ़िकेशन में ही सुबह ख़बर देखी. ख़बर देखकर पुतलियां कुछ सेंटिमीटर चौड़ी हो गई. मेरठ में श्री अयुतचंडी महायज्ञ समिति, 500 क्विंटल(50000 किलो) आम की लकड़ी जलाकर, 9 दिन का महायज्ञ करेंगे. कारण जानकर तो विश्वास की नैया भी ज़रा डगमगा गई. पर्यावरण के शुद्धिकरण और प्रदूषण को कम करने के लिए ये ‘महायज्ञ’ किया जायेगा.

मेरठ के भैंसाली मैदान में 125*125 Square Feet के 108 हवन कुंड बनाये गये हैं, जहां पंडित जी हवन करेंगे. 350 पंडित के कर कमलों से ये कार्य संपन्न होने की बात पता चली है.

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TOI को इस समिति के वायस प्रेसिडेंट, गिरीश बंसल ने कहा,

हिन्दु धर्म के अनुसार आम की लकड़ी और गाय के शुद्ध घी से यज्ञ करने से हवा शुद्ध होती है और प्रदूषण कम होता है. इसकी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है क्योंकि शोध नहीं हुआ है.’ बंसल साहब ने ये आश्वासन दे दिया है कि पुराने और बेकार हो चुके पेड़ों की लकड़ियां इसके लिए इस्तेमाल की जाएंगी. समिति के अन्य मेंमबरान का कहना है कि 1 करोड़ आहुति के बाद ही यज्ञ पूरा होगा.

उत्तर प्रदेश पॉल्युशन कन्ट्रोल बोर्ड के रिजनल अफ़सर, आर.के.त्यागी ने TOI से हुई बातचीत में ये कहा, ‘इतने बड़े पैमाने पर लकड़ी जलाने से प्रदूषण बढ़ेगा. पर ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है जिसके आधार पर कोई कार्रवाई की जाए. इसलिये हम कुछ नहीं कर सकते.’

जनवरी, 2017 में Down To Earth में छपी एक रिपोर्ट की माने तो मेरठ की हवा की क्वालिटी दिल्ली से भी चिंताजनक है. माना कि ये सालभर पहले की रिपोर्ट है, लेकिन एक साल में ये अवस्था में बहुत ज़्यादा सुधार नहीं हुआ होगा, ये तय है.

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जब चारों तरफ़ प्रदूषण को लेकर हाहाकार मचा हुआ है तब ऐसे वक़्त पर इस तरह का ‘धार्मिक अनुष्ठान’ कई सवाल खड़े करता है.

ऐसा सुना था कि आम की लकड़ी और गाय के घी को अग्नि कुंड में समर्पित करने से आस-पास का पर्यावरण शुद्ध होता है. लेकिन ये किताबी बातें ही हैं, क्योंकि अभी तक इसका कोई सुबूत नहीं मिला. अगर ऐसा सच में हो तब कोई दिक्कत की बात नहीं है. जैसे बाकी आयुर्वेदिक औषधियों से मर्ज़ ठीक होते देखा गया है, वैसे ही क्यों न इस पर भी शोध किया जाये. सरकार को इस पर ख़र्च भी करना ही चाहिए. वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान अगर घर पर ही मिल जाये तो हर्ज़ ही क्या है. लेकिन हवाई बातों में आकर पेड़ों का, पर्यावरण का और अधिक नुकसान कर देना कहीं से भी समझदारी नहीं है.

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एक बात और अगर ये समिति, पर्यावरण शुद्धिकरण को लेकर इतनी ही चिंतित है, तो इस पूरे अनु्ष्ठान को एक अलग रूप भी दे सकती थी. आग में लकड़ियां न देकर, ये उतने ही नये पेड़ भी लगा सकते थे. न्यूज़ में ये तब भी आ जाते, और लोग सराहना करते.

एक बात और समझ नहीं आती कि पढ़े-लिखे होकर, धुंए से होने वाले नुकसान को जानते हुए भी लोग ऐसे किसी भी अनुष्ठान के लिए इतने बड़े लेवल पर तैयार कैसे हो जाते हैं. जिस शास्त्र की ये बात कर रहे हैं, उस समय प्रदूषण इतनी बड़ी समस्या नहीं थी. हम किसी भी धार्मिक भावना को आहत नहीं करना चाहते, न ही हम हिन्दु धर्म के खिलाफ़ हैं और नहीं इस लेख के लिए किसी दूसरे धर्म ने हमें पैसे दिए हैं.

एक बार ठंडे दिमाग़ से सोचकर देखिए.

Feature Image Source- Patrika

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