हमने आज़ादी के इतने सालों बाद ख़ुद के लिए क्या पाया है? जवाब बहुत आसान है, हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था का भार हासिल किया है. जी हां, ये वो भार है जिसे पहले हमने अपने चुने हुए नेताओं पर डाला और फिर वो नेता कब हमारे सिर पर सवार हुए पता ही नहीं लगा. अब दोगुने बोझ को लादे हुए ज़िंदगी की गाड़ी घसीटने को मजबूर हैं.

अब देखिए तो जिस देश में एक विधायक भी दसियों गाड़ियों का काफ़िला लेकर निकलता हो, वहां एक 75 साल के बुज़ुर्ग़ को अपनी बीमार पत्नी के लिए एक वाहन भी नसीब नहीं होता है. मजबूरी में वो साइकिल पर अपनी पत्नी को एक कपड़े की झोली में लटकाकर 80 किमी दूर अपने गांव के लिए निकल पड़ता है.
ये घटना मध्य प्रदेश के रायसेन जिले की है. 75 वर्षीय पूरनलाल की पत्नी मोहन बाई गंभीर रूप से बीमार हैं, वो लकवे से पीड़ित हैं. यहां वो एक अस्पताल में अपनी पत्नी को दिखाने आए. वापस लौटने के लिए उन्हें कोई वाहन नहीं मिला. जिला अस्पताल से भी उन्हें कोई वाहन नहीं मिल पाया. ऐसे में उन्होंने साइकिल से ही पत्नी को ले जाने का तय किया.

Navbharattimes की रिपोर्ट के मुताबिक़, पूरनलाल ने कपड़े की एक झोली बनाई और साइकिल पर टांग ली. अपनी पत्नी को उसमें बिठाकर वो 80 किमी दूर अपने गांव बमोरी के लिए निकल पड़े. पूरनलाल साइकिल से क़रीब 20 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके थे, जब भोपाल से नरसिंहपुर जा रहे एक किसान कांग्रेस नेता की निगाह उन पर पड़ी. जिसके बाद उनके लिए एंबुलेंस की व्यवस्था हो पाई.
ये हाल सिर्फ़ मध्य प्रदेश का नहीं है बल्क़ि देश के ज़्यादातर इलाक़ों का है. सरकार के तमाम दावों के बीच ज़मीनी हक़ीक़त भयावह है. एक चुनाव लड़ने के लिए हम हज़ारों LED स्क्रीन लगाकर वर्चुअल रैली का इंतज़ाम कुछ दिन में ही कर लेते हैं, लेकिन एक एंबुलेंस जैसी ज़रूरी और बुनियादी चीज़ का इंतज़ाम बरसों में नहीं कर पाते. हमारे देश की व्यवस्था से बेहतरीन सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने वाला उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा.