इससे पहले आपका मेट्रो का सफ़र दर्द वाला सफ़र(Suffer) बन जाए, सावधान हो जाइए. दरअसल, दिल्ली मेट्रो में महिला पॉकेटमारों की संख्या काफ़ी बढ़ गई है. जहां साल 2017 में महिला चोरों की संख्या 85% थी, वहीं 2018 में ये संख्या 94% तक पहुंच गई है. इसके चलते साल 2018 में हर महीने मेट्रो में क़रीब 40 महिला चोरों को पकड़ा गया था. सिर्फ़ अप्रैल ही ऐसा महीना रहा जब महिला चोरों से जुड़ा एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ.

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CISF के एक अधिकारी ने DailyO को बताया, ‘ज़्यादातर महिला चोर सेंट्रल दिल्ली से मेट्रो में चढ़ती हैं. इन सबका चोरी करने का तरीक़ा काफ़ी हद तक एक जैसा होता है. ये महिला चोर दुपट्टे से सिर को ढके रहती हैं और एक बच्चा लिए रहती हैं, ताकि उन पर किसी को शक़ न हो. जैसे ही मौका मिलता है, भीड़ का फ़ायदा उठाकर क़ीमती सामान पर हाथ साफ़ कर जाती हैं. काम होते ही अगले मेट्रो स्टेशन या उस मेट्रो स्टेशन पर उतर जाती हैं, जहां भीड़ ज़्यादा हो.’

इतना ही नहीं पुरूष भी महिलाओं की तरह ही कपड़े पहने रहते हैं और हाथ में बच्चा को लिए रहते हैं. महिलाओं के कपड़े पहन कर महिला कोच में घुस जाते हैं. ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि पुरुष यात्रियों के मुक़ाबले महिलाएं ज़्यादा महंगी चीज़ें अपने साथ लेकर चलती हैं.

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कुछ चोरनियां और चोर गैंग बनाकर काम करते हैं. वो मेट्रो कोच में या फिर प्लेटफ़ॉर्म पर फैले रहते हैं, ताकि एक-दूसरे को चोरी का सामान पास कर पाएं और पकड़े जाने की स्थिति में उनके पास से सामान न मिले और वो छूट जाएं.

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पुलिस अधिकारियों का कहना है, ‘जब भी चोर पकड़े जाते हैं, तो जिनका सामान चोरी हुआ होता है वो लोग महिला और बच्चे पर आरोप नहीं लगाते हैं. इसलिए वो लोग आसानी से बच जाती हैं. CISF सिर्फ़ उन्हें हमें सौंप देता है. अगर पीड़ित शिक़ायत करता है तो हम मामला दर्ज करते हैं. मगर महिलाओं की तुलना में पुरुष पॉकेटमार के ख़िलाफ़ ज़्यादा मामले दर्ज होते हैं’.

चोरी की वारदातें भले ही कम हो गई हैं फिर भी ऐसी महिलाओं या महिलाओं के कपड़े पहने पुरुषों से सावधान रहें.

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