हमारा देश आज़ाद है लेकिन सड़कें नहीं. वीआईपी कल्चर की हथकड़ियों ने इस पर चलने वालों की रफ़्तार को गुलाम बना रखा है. ये खुलती और बंद होती सिर्फ़ अपने मालिक के इशारे पर हैं.
ताज़ा उदाहरण चेन्नई का है. इंटरनेट पर एक वीडियो तेज़ी से सर्कुलट हो रहा है, जिसमें दिख रहा है कि एक एंबुलेंस जाम में फंस गई है.
ऐसा कहा जा रहा है चेन्नई पुलिस ने एंबुलेंस और अन्य लोगों को महज़ इसलिए रोक दिया ताकि वीआईपी काफ़िला बिना किसी परेशानी के आराम से निकल जाए. साथ ही माना जा रहा है कि ये काफ़िला किसी और का नहीं बल्क़ि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई. पलानीस्वामी का था.
#WATCH An ambulance and commuters were stopped by Chennai Police near Island Grounds intersection to allow VIP convoy to pass, today. #Chennai pic.twitter.com/0gdvHOhrFX
— ANI (@ANI) April 27, 2020
वीडियो के वायरल होने के बाद लोग चेन्नई पुलिस की वीआईपी कल्चर को प्रमोट करने के लिए काफ़ी आलोचना कर रहे हैं.
These types of protocols shall be minimised in this time of pandemic and ambulances shall never be stopped at thi first place
— Saurabh Bara (@100rabh_12) April 27, 2020
Commuters are ok but why stopping ambulance ?
— Vishal Biradar (@VishalB999) April 27, 2020
I took this visual my self sir. I saw patients inside both the ambulance. After announcement came in police walkie talkie that CM convoy left, ambulance, press vehicles and other essential vehicles were allowed to pass through.
— Ronald (@ronaldchennai) April 27, 2020
This the biggest shame
— Singh The King (@Singhthefighter) April 27, 2020
हालांकि, चेन्नई पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया है. उनका कहना है कि लॉकडाउन के दौरान ये रेगुलर चेकिंग का हिस्सा था और एंबुलेंस में कोई मरीज़ भी नहीं था.
‘सीएम ने सामान्य समय में भी ट्राफ़िक को नहीं रोकने के निर्देश दिए हैं. ऐसे में अब रोकने की कोई ज़रूरत ही नहीं है. उल्लंघन रोकने के लिए हर जगह गाड़ियों की जांच की जा रही है. एक जगह एंबुलेंस को महज़ एक मिनट के लिए रोका गया था और उसमें कोई मरीज़ नहीं था.’
हालांकि, इस मामले की सच्चाई क्या है, इस पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है. लेकिन ये अक़्सर देखने को मिलता है कि कई बार एंबुलेंस को वीआईपी काफ़िले के चलते रोक दिया जाता है. एंबुलेंस के सायरन की आवाज़ सत्ता के हॉर्न के आगे दब जाती है. मरीज़ अंदर तड़पता रहता है लेकिन साहब की ड्यूटी वर्दी के फ़र्ज पर भारी पड़ जाती है.