नहीं रहे भारतीय सेना के शेर जनरल बिपिन सिंह रावत. भारतीय सेना के जांबाज़ ऑफ़िसरों में से एक ‘चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़’ (सीडीएस) जनरल बिपिन सिंह रावत (General Bipin Rawat) दुःखद निधन हो गया है. तमिलनाडु के कुन्नूर में भारतीय सेना के हेलिकॉप्टर हादसे में जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत समेत सभी 14 लोगों की मौत हो गई है.
भारतीय सेना के जांबाज़ ऑफ़िसरों में से एक पूर्व ‘आर्मी चीफ़’ और सीडीएस जनरल बिपिन सिंह रावत (General Bipin Rawat) सन 1978 में ‘भारतीय सेना’ में भर्ती हुये थे. परम विशिष्ट सेवा मेडल (PVSM), उत्तम युद्ध सेवा मेडल (UYSM), अति विशिष्ट सेवा मेडल (AVSM), युद्ध सेवा मेडल (YSM), सेवा मेडल (SM) और विशिष्ट सेवा मेडल (VSM) हासिल करने वाले जनरल बिपिन रावत भारतीय सेना के ‘फ़ोर स्टार जनरल’ थे.
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कौन थे जनरल बिपिन रावत?
बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च, 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी ज़िले के सैंज गांव में हुआ था. उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी भारतीय सेना में लेफ़्टिनेंट जनरल रह चुके हैं. रावत फ़ैमिली पांच पीढ़ियों से भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रही है. बिपिन रावत ने देहरादून के ‘कैम्ब्रियन हॉल स्कूल’ और शिमला के ‘सेंट एडवर्ड स्कूल’ से पढ़ाई की थी. इसके बाद उन्होंने खडकवासला स्थित ‘नेशनल डिफ़ेंस अकेडमी’ और फिर देहरादून स्थित ‘इंडियन मिलेट्री अकेडमी’ में प्रवेश लिया. इस दौरान उन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर’ से भी सम्मानित किया गया था.
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बेहद पढ़े लिखे थे जनरल बिपिन रावत
बिपिन रावत ने तमिलनाडु के वेलिंगटन स्थित ‘डिफेंस सर्विसेज स्टाफ़ कॉलेज’ से डिफेंस स्टडीज़ में MPhil की डिग्री हासिल की थी. ‘मद्रास विश्वविद्यालय’ से प्रबंधन और कंप्यूटर अध्ययन में डिप्लोमा भी हासिल किया है. इसके अलावा उन्होंने ‘यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी कमांड’ एंड जनरल स्टाफ़ कॉलेज’ के ‘हायर कमांड कोर्स’ में स्नातक भी किया. साल 2011 में रावत को ‘मिलेट्री मीडिया स्ट्रेटेजिक स्टडीज़’ में उनके शोध के लिए मेरठ की ‘चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय’ ने ‘डॉक्टरेट ऑफ़ फिलॉसफी’ से सम्मानित किया था.
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बिपिन रावत का सैन्य करियर
देहरादून के ‘इंडियन मिलेट्री अकेडमी’ से पास आउट होने के बाद बिपिन रावत को 16 दिसंबर 1978 को भारतीय सेना की ’11 गोरखा राइफल्स’ की ‘5वीं बटालियन’ में सेकंड लेफ्टिनेंट के तौर पर नियुक्त किया गया था, जो उनके पिता की यूनिट भी थी. बिपिन रावत को High-Altitude Warfare में महारत हासिल थी. अपने सैन्य कार्यकाल के दौरान उन्होंने 10 सालों तक कई ‘आतंकवाद विरोधी अभियानों’ को भी सफलतापूर्वक अंजाम दिया था.
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सैन्य अधिकारी के तौर पर बिपिन रावत
भारतीय सेना में मेजर के तौर पर उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उरी में एक कंपनी की कमान संभाली थी. जबकि कर्नल के रूप में उन्होंने LAC पर किबिथू इलाक़े में अपनी 5वीं बटालियन ’11 गोरखा राइफल्स’ की कमान भी संभाली. इसके बाद ब्रिगेडियर के पद पर पदोन्नत होकर उन्होंने जम्मू-कश्मीर के सोपोर में ‘राष्ट्रीय राइफल्स’ की कमान संभाली. इसके बाद उन्होंने Democratic Republic of The Congo (MONUSCO) के ‘चैप्टर VII मिशन’ में एक मल्टीनेशनल ब्रिगेड की कमान भी संभाली. इस दौरान उन्हें 2 बार ‘फ़ोर्स कमांडर’ के प्रशस्ति से सम्मानित किया गया था.
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रह चुके थे ईस्टर्न कमांड के चीफ़
‘मेजर जनरल’ के पद पर पदोन्नति के बाद बिपिन रावत ने 19वीं इन्फैंट्री डिवीजन (उरी) के ‘जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग’ के रूप में पदभार संभाला. इसके बाद ‘लेफ्टिनेंट जनरल’ के तौर पर उन्होंने दीमापुर में मुख्यालय की III Corps की कमान संभाली थी. बाद में पुणे में ‘दक्षिणी सेना’ की कमान भी संभाली. उन्होंने Eastern Command के ‘मेजर जनरल जनरल स्टाफ़’ के रूप में भी काम किया. इसके अलावा भी वो भारतीय सेना के कई बड़े मुख्यालयों के चीफ़ भी रहे.
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कब बने भारतीय सेना के चीफ़?
बिपिन रावत ने 1 जनवरी 2016 को सेना कमांडर ग्रेड में पदोन्नत होने के बाद Southern Command के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग-इन-चीफ (जीओसी-इन-सी) का पद ग्रहण किया था. 8 महीने बाद ही 1 सितंबर, 2016 को वो थल सेना के उप प्रमुख बन गये. इसके 4 महीने बाद ही बिपिन रावत भारतीय सेना के 27वें चीफ़ बन गये. इस दौरान वो 31 दिसंबर 2016 से 31 दिसंबर 2019 तक भारतीय सेना के चीफ़ रहे. इसके बाद 1 जनवरी 2020 को वो भारत के पहले ‘चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़’ (सीडीएस) बने.
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बिपिन रावत के अचीवमेंट्स
जनरल बिपिन रावत भारतीय सेना के सबसे डेडिकेटेड ऑफ़ीसरों में से एक रहे हैं. उन्हें नेतृत्व क्षमता के साथ ही ‘युद्ध कौशल’ में महारत हासिल थी. सन 1987 में बिपिन रावत की बटालियन ने ‘Chu Valley’ के Sumdorong इलाक़े में चीनी सेना को मुहतोड़ जवाब दिया था. इसके बाद रावत ने कांगो में ‘संयुक्त राष्ट्र मिशन’ में भी अहम भूमिका निभाई थी. इसके बाद साल 2015 में हुये ‘Myanmar Strikes’ की कमान भी बिपिन रावत ने ही संभाली थी.
जय हिंद!