लक्ष्मी अग्रवाल, 30 वर्षीय वो बहादुर महिला, जिसने एसिड अटैक के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और साहस के साथ इसका सामना किया. एसिड हमले के ख़िलाफ़ जंग का चेहरा बनी लक्ष्मी को 2014 में अमेरिका की तत्कालीन प्रथम महिला मिशेल ओबामा US State Department की ओर से International Women of Courage Award से नवाज़ा जा चुका है. अपनी हिम्मत से एसिड हमलों के ख़िलाफ़ लड़ाई का चेहरा बनीं लक्ष्मी को दुनियाभर में सम्मान और शोहरत मिला. मगर आज इस साहसी महिला के पास रोज़गार नहीं है और वो दिन दूर नहीं जब उनके सिर के ऊपर छत भी नहीं होगी.
hindustantimes के अनुसार, आज लक्ष्मी अग्रवाल को नौकरी नहीं मिल रही है और वो आर्थिक तंगी से जूझ रही है. नौबत यहां तक पहुंच गई है कि उनके पास घर का किराया देने तक के पैसे भी नहीं हैं. बता दें कि लक्ष्मी दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में दो कमरे के फ़्लैट में रहती हैं.
गौरतलब है कि 15 साल की उम्र में जब लक्ष्मी अपने स्कूल से लौट रही थीं, तब उनसे दोगुने उम्र के आदमी ने पीछा करते हुए उनके चेहरे पर तेज़ाब फेंक दिया था. इसमें उनका पूरा चेहरा जल गया था. पर लक्ष्मी ने कभी हार नहीं मानी और ज़िन्दगी में आगे बढ़ने की ठान ली. आगे बढ़ते हुए उन्होंने अपने जैसी एसिड अटैक का शिकार हुई लड़कियों के लिए लड़ाई जारी की. ‘स्टॉप एसिड अटैक’ अभियान का हिस्सा बनकर उन्होंने अपनी जैसी कई सारी लड़कियों को हौसला दिया और प्रोत्साहित किया. उन्होंने लंदन फ़ैशन वीक में शिरकत की और कुछ टीवी शो में भी हिस्सा लिया. इसमें कोई शक़ नहीं है कि बहुत से लोगों को लक्ष्मी की ऐसी स्थिति के बारे में जानकार हैरानी हो रही होगी, लेकिन ये सच है.
लक्ष्मी कहती हैं, ‘एक एसिड अटैक एक्टिविस्ट की ज़िन्दगी की सच्चाई इसी से पता चलती है.’
इसके साथ ही वो कहती हैं,
जिस फ़्लैट में मैं रहती हूं, उसका मालिक किराया बढ़ाना चाहता है, पर मेरे पास किराया देने के लिए न ही पैसे हैं और न ही नौकरी. और अब मैं रेंट नहीं दे सकती हूं. लोगों को लगता होगा कि मैंने बहुत से रैंप और टीवी शोज़ किये हैं, मुझे बहुत से अवॉर्ड्स भी मिले हैं, तो मेरे पास तो बहुत पैसे होंगे. मगर मैं बता दूं कि मेरे पास अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने के पैसे भी नहीं हैं. और ये भी बता दूं कि पिछले एक साल से मेरे पास नौकरी भी नहीं है.
मगर हमेशा से लक्ष्मी की हालत ऐसी नहीं थी. चार साल पहले वो अपने पार्टनर और स्टॉक एसिड अटैक कैंपेन के संस्थापक आलोक दीक्षित के साथ बहुत खुश थीं और वो दोनों अपने बच्चे के जन्म का इंतज़ार कर रहीं थीं. इन दोनों ने साथ मिलकर छांव फ़ाउंडेशन नाम के एक NGO की शुरुआत भी की थी. मगर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. बच्ची के जन्म के बाद दोनों परिस्थितियोंवश अलग हो गए और बेटी की कस्टडी लक्ष्मी को मिली. हालांकि, कुछ समय पहले तक उनके ‘छांव फ़ाउंडेशन’ के डायरेक्टर की जॉब थी, जिससे हर महीने उनको 10,000 रुपये भी मिलते थे. मगर जब पिछले साल उन्होंने NGO छोड़ा तो ये पैसे भी मिलने बंद हो गए.
वहीं इस बारे में बात करते हुए आलोक का कहना है कि वो लक्ष्मी और उनकी बेटी की कोई आर्थिक मदद नहीं कर पा रहे हैं. वो कहते हैं, ‘मेरे पास बिलकुल पैसे नहीं हैं. आप मेरा बैंक अकाउंट देख सकते हैं. उसमें 5,000 रुपये भी नहीं हैं. मेरे पास रेगुलर जॉब नहीं है. मेरे NGO को जो भी पैसे मिलते हैं वो एसिड अटैक सर्वाइवर्स की देखभाल में खर्च होते हैं.’
अब तो हालत ऐसे हो गई हैं कि लक्ष्मी की सारी सेविंग्स भी ख़त्म हो चुकी हैं और उनका मकान मालिक किराया बढ़ाने के लिए कह रहा है, तो वो नया घर तलाश रही हैं. वो कहती हैं कि ये आसान नहीं है. लैंडलॉर्ड कहते हैं कि वो नहीं चाहते कि उनके एसिड से ख़राब हुए चेहरे को देखकर बच्चे डर जाएं. लक्ष्मी साथ में नौकरी भी ढूंढ़ रही हैं.
लक्ष्मी कहती हैं,
मैं 10वीं तक पढ़ी हूं और एक ट्रेन्ड ब्यूटीशियन भी हूं, अपनी बात अच्छे से कह भी सकती हूं. मगर मेरे चेहरे की वजह से मुझे कहीं काम नहीं मिलता है. ब्यूटी पार्लर में कहा जाता है कि आपका चेहरा देखकर कस्टमर्स डर जाएंगे. जब मैंने कॉल सेंटर में अप्लाई किया कि और सोचा कि वहां किसी को मेरा चेहरा नहीं दिखेगा, मगर वहां भी ये बोल कर मुझे रिजेक्ट कर दिया गया कि नौकरी की शुरुआत करने के लिए भी आपके पास एक सुन्दर चेहरा होना ज़रूरी है.
वहीं इस पर सामजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि लक्ष्मी की ऐसी परिस्थिति में कुछ भी नया नहीं है. अनुमानतः, भारत में तकरीबन 500 एसिड अटैक सर्वाइवर्स हैं. इन्हें लोगों की सहानुभूति तो मिलती है, मगर आर्थिक मदद नहीं मिलती है. एसिड हमलों के शिकार लोगों को कई साल करेक्टिव सर्जरी करानी पड़ती है.
लक्ष्मी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसिड हमले के मुआवज़े के तौर पर 3 लाख रुपये मिले थे, जो उनकी सर्जरी और प्रेग्नेंसी पर खर्च हो गए. Humans for Humanity नाम के NGO के संस्थापक अनुराग चौहान का कहना है कि Michelle Obama से अवॉर्ड पाने के बाद लक्ष्मी को काफ़ी सम्मान मिला. भारत में लोग सम्मान और अवॉर्ड देने तो आगे आते हैं, मगर पैसे कोई नहीं देता है.
लक्ष्मी ने टीवी के कुछ शोज़ होस्ट किए थे, जिसके लिए उन्हें 38,000 रुपये भी मिले थे. पर लंदन फ़ैशन वीक-2016 में हिस्सा लेने के लिए उन्हें एक भी पैसा नहीं मिला, इसलिए उन्होंने इस तरह के इवेंट्स का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
उनका कहना है कि मेरी एक बच्ची है और उसकी ज़िम्मेदारी मेरे ऊपर है और मुझे अब अपने जीविकोपार्जन के लिए पर्मानेंट जॉब की ज़रूरत है.
वैसे तो हम सब की ज़िम्मेदारी है कि हम लक्ष्मी और उनके जैसी महिलाओं की मदद के लिए आगे आएं. मगर देश की सरकार को ऐसे लोगों की सहायता के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए.