एक शहीद की पत्नी ने हाल ही में बयान दिया था कि युद्ध में कोई भी हारे, कोई भी जीते नुकसान दोनों को होता है और इस बात से कोई भी इंकार नहीं कर सकता. इतिहास गवाह है कि दुनिया में जितने भी युद्ध हुए हैं उसमें मरने वाले सिपाहियों के साथ-साथ उनके परिवार वाले ही सबसे ज़्यादा भुगतते हैं. उनकी आंखों में अपने बेटे, भाई या पति के लिए कभी न ख़त्म हों वाला इंतज़ार रह जाता है. ऐसी ही एक कहानी से आज हम आपको रू-ब-रू कराने जा रह हैं.

1970 में, अपना तीसरा राष्ट्रीय बैडमिंटन ख़िताब जीतने से ठीक पहले, दमयंती सूबेदार ने फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट विजय वसंत ताम्बे से शादी की. और शादी के ठीक एक साल बाद 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तान द्वारा पकड़े जाने पर उसने अपने पति को खो दिया.

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1971 के युद्ध को 47 साल हो चुके हैं, और इस युद्ध में पाकिस्तान ने हमारे 54 सैनिकों को अपने कब्ज़े में ले लिया था. आज भी फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट विजय वसंत जाम्बे एक युद्धबंदी हैं और उनकी पत्नी दमयंती ताम्बे आज भी उनके वापस आने का इंतज़ार कर रहीं हैं.

Economic Times के अनुसार, दमयंती और विजय की शादी को केवल 18 महीने हुए थे, जब 5 दिसंबर, 1971 में उनको ख़बर मिली कि उनके पति को पकड़ लिया गया है.

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जब उनको ये ख़बर मिली, तो वो इस ख़बर को इस उम्मीद के साथ झेल गयीं कि जल्द ही उनके पति को छोड़ दिया जाएगा और वो घर लौट आएंगे. लेकिन इन 47 सालों में उनकी ये उम्मीद अनगिनत बार टूट के बिखर चुकी है मगर उन्होंने अभी भी उन्होंने अपने पति के वापस आने की आस नहीं छोड़ी है.

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ताम्बे 71 की जंग में दुश्मन देश की गिरफ़्त में आये 54 रक्षा कर्मियों के समूह का एक हिस्सा हैं, जिसे भारत सरकार आज तक पाकिस्तान से वापस लाने में विफल रही है.

बीते 47 सालों में दमयंती ने कई याचिकाओं पर हस्ताक्षर किए और हर बड़े से बड़े अधिकारी से मुलाक़ात की और न जाने कितनी बार और कितने तरीकों से कोशिश की कि वो कम से कम पाकिस्तान जेल में क़ैद अपने पति से एक बार तो मिल सकें, लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ. 

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अपने ससुर के सुझाव पर, दमयंती ने दिल्ली में नौकरी की, ताकि वो ख़ुद को बिज़ी रख सकें और नियमित रूप से सम्बन्धित अधिकारियों से बातचीत सकें. लेकिन इस गंभीर मामले पर सरकार की निष्क्रियता ने खुद अपनी पोल खोल दी. The Telegraph से बात करते हुए उन्होंने कहा कि उनका गुस्सा स्थिति के प्रति सरकार की स्पष्ट उदासीनता पर था. उन्होंने कहा:

आपने ये कैसे सुनिश्चित नहीं किया कि आपके प्रत्येक आदमी वापस आ गए? आप इस पर कैसे शांत बैठ सकते हैं? मुझे आश्चर्य है कि सरकार कुछ भी करने में सक्षम क्यों नहीं है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वर्तमान में वॉर विडो एसोसिएशन के महासचिव पद पर कार्यरत दमयंती को हमेशा उनकी परिवार और दोस्तों का साथ मिला है, हर कोई उनके साथ खड़ा है, लेकिन सबके साथ होते हुए भी वो अकेली हैं और उनको इसका कोई हल नहीं मिला है. ET के अनुसार, हालांकि, दिल्ली के नेशनल वॉर मेमोरियल में शहीदों ने नामों में उनके पति का नाम भी शामिल है, पर फिर भी उन्होंने अपने पति फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट विजय वसंत ताम्बे के वापस लौटने की उम्मीद नहीं खोई है.

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