भारत में मई और जून के समय में लोगों के अंदर कोरोना वायरस को लेकर बहुत डर था. ये डर इस क़दर था कि लोग अस्पताल जाकर वायरस का इलाज करवाने से भी घबराते थे. कई केस में तो परिवार जन ही वायरस के संक्रमण के डर से अपनों को छोड़ देते थे.
हैदराबाद के रहने वाले 36 वर्षीय मिर्ज़ा जाफ्फर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ.
व्यवसाय में उनके पार्टनर और दोस्त, महेंद्र रेड्डी ने बताया कि मिर्ज़ा जून में कोरोना से संक्रमित हो गए थे. मगर कोविड -19 के डर ने मिर्ज़ा को इतना जकड़ लिया था कि उन्होंने अंत तक इलाज कराने से इन्कार कर दिया. जब तक वो सहमत हुए और डॉक्टर के पास गए तब तक बहुत देर हो चुकी थी, एक-दो दिन बाद उनका निधन हो गया. जिसके बाद महेंद्र और उनके परिवार को भी कोरोना हो गया मगर जल्द ही इलाज मिलने से सब स्वस्थ हो गए.
कोरोना के डर की वजह से हुई अपने दोस्त की मृत्यु को देख महेंद्र को महसूस हुआ कि लोग किस तरह इस बीमारी का इलाज करवाने से डर रहे हैं. जो कि खतरें को और बढ़ाता है. जिसके बाद महेंद्र को जब भी पता चला की उनके परिवार या दोस्तों में किसी को कोरोना हो गया है तो वो उन्हें अपनी बाइक पर बैठा कर ख़ुद इलाज के लिए क्लिनिक लेकर जाते हैं.
उनका मानना है कि यह केवल उपचार नहीं है जो मायने रखता है. मरीज़ों को दी गई देखभाल, साहस और समर्थन उन्हें बीमारी से लड़ने का आत्मविश्वास देती है.
पिछले 3 महीने में महेंद्र 100 से ज़्यादा कोरोना के मरीज़ों को क्लिनिक ले जा चुके हैं.
महेंद्र का कहना है कि उन्हें लोगों की मदद करके अच्छा लगता है और वह आगे भी ऐसा करते रहना चाहते हैं.