‘तेरे शहर का निज़ाम बड़ा मौत पसंद है 

ज़िंदगी तेरी रियासत में रहने के क़ाबिल नहीं’

अब मानवता शर्मसार नहीं होती है. उसे क़त्ल कर बहुत गहरे तक दफ़नाया जा चुका है. इतना गहरा कि उसकी क़ब्र के ऊपर नाचती हैवानियत का उसे ज़रा भी इल्म नहीं है. कोरोना महामारी के दौरान शायद हमारी आंखें लाशें देखकर इतना थक चुकी हैं कि उनमें अब कुछ भी अच्छा और बुरा देखने की ताक़त नहीं बची है.   

हमने तो आंखें बंद कर लीं हैं, लेकिन ग़लती से सीसीटीवी अपना काम कर गया. मध्य प्रदेश के भोपाल में एक ऐसी घटना क़ैमरे में क़ैद हुई है, जिसने हर शख़्स को हिला कर रख दिया है. यहां एंबुलेंसकर्मी एक कोरोना मृतक के शव को हॉस्पिटल के बाहर सड़क पर रखकर भाग निकले.  

सीसीटीवी में नज़र आ रहा है कि दो पीपीई किट पहने एंबलेंसकर्मी एक शव को गाड़ी से बाहर निकालते हैं. उसे स्ट्रेचर से ज़मीन पर रखते हैं और तुरंत वहां से भाग जाते हैं.  

Ndtv की रिपोर्ट्स के मुताबिक़, विद्युत विभाग में काम करने वाले इस शख़्स को किडनी संबंधी समस्या थी. पिछले कुछ दिनों से उसे सांस लेने में परेशानी हो रही थी, जिसके बाद उसे भोपाल के पीपुल्स हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया. सोमवार शाम को उसकी कोरोना रिपोर्ट पॉज़िटिव आई, जिसके बाद उसे भोपाल के चिरायु हॉस्पिटल शिफ़्ट कर दिया गया. मृतक के बेटे का कहना है कि वो 23 जून से ही बीमार चल रहे थे.  

मृतक के बेटे का कहना है कि जब उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट किया जा रहा था, तब वो ज़िंदा थे. उन्होंने एंबुलेंस के वापस लौटने पर सवाल किया.  

‘मुझे नहीं पता कि एंबुलेंस में क्या हुआ. उन्हें चिरायु अस्पताल में एडमिट करने के लिए क्यों कहा गया और फिर इस तरह उनकी लाश को सड़क पर छोड़ जाना? दोनों अस्पतालों की ग़लती है… इन लोगों ने हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी.’  

पीपुल्स हाईटेक हॉस्पटिल के चीफ़ मैनेजर उदय शंकर दीक्षित ने कहा, ‘प्रोटोकॉल और IDSP (एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम) निर्देशों के अनुसार, चिरायु मेडिकल कॉलेज से एक एम्बुलेंस पहुंची, लेकिन एक घंटे 40 मिनट के बाद उन्होंने हमें सूचित किया कि वे वापस आ रहे हैं. लेकिन तब तक हमने आईसीयू को सील कर दिया था और प्रोटोकॉल के अनुसार अस्पताल के फ़्यूमिगेशन की प्रक्रिया शुरू कर दी थी और जब प्रक्रिया जारी थी, तब एम्बुलेंस वापस आ गई.’

शव के साथ इंतज़ार कर रहे एंबुलेंसकर्मी ने एक स्ट्रेचर मांगा लेकिन नहीं मिला. दीक्षित ने बताया कि, ‘जब हमने विरोध किया तो उन्होंने उसके शव को अस्पताल के बाहर सड़क पर फेंक दिया. उसके बाद मैंने अपने कर्मचारियों से पीपीई किट पहनने का अनुरोध किया, हमारे स्ट्रेचर का इस्तेमाल किया और उसे पुनर्जीवित करने की कोशिश की लेकिन वो सांस नहीं ले रहा था.’  

वहीं, चिरायु हॉस्पिटल के डायरेक्टर अजय गोयनका ने कहा कि पीपुल्स अस्पताल के डॉक्टरों ने फ़ोन कर उनसे एक एंबुलेंस के लिए कहा कि एक मरीज़ है, जिसे किडनी के साथ दिल की कुछ बीमारी है, लेकिन उसकी हालत स्थिर है.  

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‘इसलिए हमने ऑक्सीजन सपोर्ट के साथ एक एम्बुलेंस भेजने का फ़ैसला किया. ड्राइवर ने मरीज़ को उठाया और जब वो वीआईपी रोड के पास पहुंचा तो उसे लगा कि उसकी हालत बिगड़ रही है और वो गंभीर है. उन्होंने महसूस किया कि ट्रैफ़िक की वजह से चिरायु अस्पताल पहुंचने में लगभग 45 मिनट लगेंगे, इसलिए पीपुल्स अस्पताल में डॉक्टरों से बात करने के बाद वो बीच में ही वापस लौट गए.’  

दोनों ही अस्पताल एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं. इस बीच मैजिस्ट्रेट ने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं. भोपाल के कलेक्टर अविनाश लवानिया ने पीपुल्स अस्पताल से स्पष्टीकरण मांगा है. जिसमें उन्होंने कई सवाल किए हैं. जैसे, बिना मरीज़ की हालत को स्थिर किए दूसरे अस्पताल में रिफ़र कैसे कर सकते हैं, साथ ही एक हफ़्ते से ज़्यादा समय से एडमिट मरीज़ अचानक कोरोना पॉज़िटिव कैसे हो गया?