दुनियाभर में तबाही मचा रहे कोरोना वायरस को लेकर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ख़ुलासा किया है. इससे पहले चीन के वैज्ञानिक भी कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर शोध कर चुके हैं.

दरअसल, इस वायरस को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं कि इसे चीन ने डिवेलप किया है, लेकिन अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस वायरस में माैजूद जीनोम की डिटेल स्टडी के बाद ये पता लगाया है कि ‘कोविड-19’ प्राकृतिक रूप से पनपा है. इसे किसी लैब में नहीं बनाया गया है. लैब में विकसित करने की बात पूरी तरह से अफ़वाह है.

‘नेचर मेडिसिन’ जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च में कहा गया है कि इस वायरस के लैब में बनाए जाने की बात पूरी तरह से अफ़वाह है. शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस, एसएआरएस-सीओवी-2 और संबंधित वायरस के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जीनोम सिक्वेंस के आधार पर ये विश्लेषण किया है.
अमेरिका के ‘द स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के वैज्ञानिकों ने भी कहा कि उन्हें ‘कोविड-19’ के किसी लैब में विकसित किए जाने का कोई प्रमाण नहीं मिला है.

‘द स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट’ वैज्ञानिक और स्टडी के सह लेखक क्रिश्चियन एंडरसन ने कहा कि अभी तक पहचाने गए कोरोना वायरस स्ट्रेंस के मौजूद जीनोम सिक्वेंस डाटा की तुलना करने से पता चलता है कि एसएआरएस-सीओवी-2 प्राकृतिक रूप से ही विकसित हुआ है.
वैज्ञानिकों ने वायरस के आनुवंशिक नमूने का विश्लेषण करने के लिए सबसे पहले इसके ‘टेल-टेल’ फ़ीचर पर फोकस करके इसके सिक्वेंस डाटा का प्रयोग किया और एसएआरएस-सीओवी-2 के पनपने का पता लगाया. इस दौरान पता चला कि ये वायरस अपनी बाहरी दीवारों पर बने कवच का इस्तेमाल करके इंसान या जानवरों की कोशिका की बाहरी दीवार को भेद कर उसे अपने कब्जे में ले लेता है.

इस वायरस से सबसे पहले एक व्यक्ति संक्रमित हुआ. इसके बाद एक इंसान का दूसरे इंसान के संपर्क में आने पर इसकी संख्या तेज़ी से बढ़ती चली गई और इसने महामारी का रूप धर लिया.
वैज्ञानिकों की ये रिसर्च कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन के दो मुख्य फ़ीचर्स पर फ़ोकस था. पहला- ‘रेसीपेटर बाइंडिंग डोमेन’ (एक प्रकार का हुक जो संक्रमित कोशिका को अपने कब्जे में करता है). जबकि दूसरा ‘क्लीवेज़ साइट’ (जो एक अणु होता है और वायरस को संक्रमित कोशिका को भेद कर उसके भीतर जाने का रास्ता बनाता है).

इस रिसर्च के मुताबिक़, एसएआरएस-सीओवी-2 स्पाइक प्रोटीन का ‘रेसीपेटर बाइंडिंग डोमेन’ इंसानी कोशिका की बाहरी दीवारों को भेदने के लिए खास तौर पर विकसित हुआ है. इसे एसीई2 कहा जाता है जो ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में शामिल है. कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन मानव कोशिकाओं को भेदने में बेहद प्रभावी है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस को विकसित किया गया होता तो उस वायरस के आधार पर बनाया जाता जो पहले से बीमारी के लिए जाना जाता है. ये प्राकृतिक रूप से ही संभव है, ऐसा करना जेनेटिक इंजीनियरिंग के बस की बात नहीं है.

रिसर्च में बता बताया गया है कि एसएआरएस-सीओवी-2 का आधार कोरोना वायरस के उन रूपों से अलग है जो पहले से परिचित हैं. ये चमगादड़ों और पैंगोलिन में पाए जाने वाले वायरस के मिलने से विकसित हुआ है.