संविधान दिवस, 26 नवंबर 2019 को राज्य सभा में ‘ट्रांसजेंडर परसन्स प्रोटेक्शन बिल’ को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया. 5 अगस्त 2019 को इस बिल को लोक सभा से भी मंज़ूरी मिल गई थी. इसके बाद ये बिल राष्ट्रपति के पास जायेगा और पारित हो जायेगा. ग़ौरतलब है कि इस बिल का पूरा ट्रांसजेंडर समुदाय पुरज़ोर विरोध कर रहा है.


सांसद राजीव गोड़ा और तिरुचि सिवा इस बिल में संशोधन की मांग कर रहे थे, पर इसे बिना किसी बदलाव के पारित कर दिया गया. 

मंत्री थावरचंद गहलोत ने ये बिल जुलाई में लोक सभा में और 20 नवंबर को राज्य सभा में पेश किया था. इस बिल के विरोध में बीते 24 नवंबर को दिल्ली में प्राइड परेड का आयोजन भी किया गया. इन सब के बावजूद ये पारित कर दिया गया.  

Feminist

लोक सभा में पारित होने के बाद हुआ था पुरजोर विरोध 


5 अगस्त, 2019 को ये बिल लोक सभा में पारित किया गया और ट्रांसजेंडर समुदाय ने एक स्वर में इस बिल को मानने से इंकार किया.   

Human Rights Watch

क्या है ट्रांसजेंडर परसन्स प्रोटेक्शन बिल? 


New Indian Express की रिपोर्ट के अनुसार इस बिल में ट्रांसजेंडर की परिभाषा ये है- 
‘ट्रांसजेंडर व्यक्ति वो है जिसका लिंग जन्म से निर्धारित लिंग से मेल न खाता हो और उस व्यक्ति के पास सेक्स रिआसाइनमेंट सर्जरी या हॉर्मोनल थेरेपी की परवाह किए बग़ैर ख़ुद की पहचान बतौर पुरुष, स्त्री या ट्रांसजेंडर व्यक्ति की तरह करने का हक़ हो. इस बिल में ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ भेदभाव को रोकने और उनको स्वास्थ्य और अन्य लाभ मिलने का प्रावधान है.’ 

The News Minute के मुताबिक़, बिल में ये भी लिखा है कि सर्जरी के बाद ट्रांसजेंडर को ज़िलाधिकारी द्वारा सर्टिफ़ाई किया जायेगा. ज़िलाधिकारी द्वारा ये सर्टिफ़िकेट किसी मेडिकल सुपरिटेंडेंट या चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर के सर्टिफ़िकेट के आधार पर ही दिया जायेगा. अगर किसी शख़्स को ज़िलाधिकारी सर्टिफ़िकेट नहीं देता है तो दोबारा अपील करने का कोई प्रावधान नहीं होगा. 

इस सर्टिफ़िकेशन के ही ख़िलाफ़ हैं ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग. 

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सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद बना बिल


2014 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल लीगल सर्विसेज़ अथॉरिटी व. यूनियन ऑफ़ इंडिया (नालसा) पर जजमेंट दिया. इस जजमेंट की प्रगतिशीलता के लिए इसकी तारीफ़ हुई थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक़ ये बिल हर व्यक्ति की निजता का हनन करेगा. 

बिल में जो ज़िलाधिकारी से सर्टिफ़िकेशन की बात कही गई है वो नालसा का सीधे तौर पर उल्लंघन है. नालसा ने बिना किसी मेडिकल सर्टिफ़िकेट या सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के जेंडर के सेल्फ़-डिटरमिनेशन की बात कही थी. नई कार्यप्रणाली ट्रांसजेंडर्स की मेडिकल जांच होगी. 

ये हैं खामियां 


बिल के अनुसार, जो ट्रांसजेंडर ख़ुद को पुरुष या महिला के रूप में आइडेंटिफ़ाई करवाना चाहते हैं उन्हें सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी करवानी होगी. ग़ौरतलब ये है कि सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी में कोई छूट या मुफ़्त में करवाई जाएगी या फिर कुछ तय जगहों पर होगी इन सब मामलों पर कुछ भी नहीं कहा गया है, जबकि यही ज़िलाधिकारी से सर्टिफ़िकेशन का आधार बताया गया है! आसान शब्दों में समझें तो किसी व्यक्ति को अपनी इच्छा से जीने के लिए ब्यूरोक्रेट्स का दरवाज़ा खटखटाना होगा. 

बिल में ट्रांसजेंडर्स के ख़िलाफ़ भेदभाव न करने की बात तो कह दी गई है पर उनको सामाजिक स्तर पर इतने ज़्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है इस पर कुछ भी साफ़-साफ़ नहीं कहा गया है. ट्रांसजेंडर्स कोई कई बार क़ानून के रखवाले ही शोषित करते हैं. 

रिपोर्ट्स के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में जब सेक्शन 377 को हटाया था तब ये भी कहा था कि ट्रांसजेंडर समुदाय को भी यौन उत्पीड़ना का सामना करना पड़ता है. इस बिल में यौन उत्पीड़न का सामना करने वाले ट्रांसजेंडर्स के लिए कुछ भी नहीं कहा गया है. भारतीय न्याय संहिता भी रेप की एक ही परिभाषा दी गई है, जिसमें पुरुष दोषी और महिला विक्टिम है. बिल में यौन उत्पीड़न के लिए 2 साल की सज़ा तो दी गई है पर किस-किस को यौन उत्पीड़न कहा जायेगा इस पर कुछ भी नहीं कहा गया है. 

ये बिल ट्रांसजेंडर्स को शिक्षा या रोज़गार में कोई रिज़र्वेशन भी नहीं देता.


मौजूदा बिल में ट्रांसजेडर्स को और किसी अन्य भारतीय नागरिक को सामान अधिकार नहीं मिल रहे हैं.