गांधी जी ने कहा था कि ‘भारत का भविष्य भारत के गांवों में बसता है’, पर आज इन्हीं गांवों की क्या हालत है, वो हम सब अच्छी तरह से जानते हैं. कहीं कोई गांव आज भी अंधेरे में रहने को मजबूर है, तो कहीं आज भी पानी के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है.

अपने ऐसे ही विकासशील देश में राजस्थान के कई गांव इन्हीं हालातों में रहने को मजबूर हैं, जिनकी वजह से यहां आये दिन लोगों का पलायन हो रहा है. 4 साल पहले तक देवकर्ण भी पलायन करने वाले उन्हीं लोगों में से एक थे, जो रोजी-रोटी की तलाश में हरियाणा के शहरों में मज़दूरी करने के लिए गए थे, पर आज उनके हालात पहले जैसे नहीं हैं. उनके पास खुद का एक ट्रेक्टर, दो मोटर साइकिल और 10 भैंसे हैं.

ऐसा सिर्फ़ एक अकेले शख़्स की कोशिश से मुमकिन हो पाया है कि अपने घरों को चुके लोग गांव लौटने लगे हैं.

वर्ष 1999-2000 में राजस्थान की सूखे की समस्या न्यूज़ चैनलों और अख़बारों की सुर्खियां बनी थी. इन सुर्ख़ियों का मुंबई की रहने वाली Amla Ruia पर बहुत गहरा असर पड़ा और वो इसे नज़रंदाज़ नहीं कर पाई. इसके बाद Amla Ruia ने राजस्थान के कई ऐसे गांवों का दौरा किया, जो पानी की समस्या से जूझ रहे थे.

अपनी यात्रा के दौरान Amla Ruia ने पाया कि बारिश के समय गांव के लोग इकट्ठा हुए पानी से खेती करते हैं. इसे एकत्रित करने का उनके पास कोई ख़ास इंतज़ाम नहीं है, जिसकी वजह से काफ़ी पानी बर्बाद हो जाता है.

गांव वालों को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए Amla Ruia कुछ करना चाहती थीं. इसके लिए उनके दिमाग़ में रेन हार्वेस्टिंग का विचार आया. इसके लिए उन्होंने ‘आकार चेरिटेबल ट्रस्ट’ की स्थापना की, जो बांध बना कर बारिश के पानी का संरक्षण करने काम करती है.

इस ट्रस्ट के ज़रिये Amla Ruia ने कम लागत में कई गांवों में बांध बनवाये, जिनकी वजह से लोगों को पानी मिलने लगा, जो किसान सूखे की वजह से खेती नहीं कर पा रहे थे. इन बांधों की वजह से साल में दो से तीन फसलें लेने लगे थे.

इन सालों के दौरान इस ट्रस्ट ने दौसा, अलवर और सीकर के 156 गावों में करीब 260 बांध बनाये, जिससे लोगों को सहुलियत होने के साथ ही रेवेन्यु भी मिलने लगा. Amla Ruia की इस कोशिश ने करीब दो लाख लोगों की ज़िंदगी बदल करके रख दी.

Feature Image Source: prabhuchawala