सफ़ूरा ज़रगर…

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एक ऐसा नाम जो आजकल लगभग हर Family WhatsApp Group, Social Media Platform, टीवी पर नज़र आ रहा है. एक ऐसा नाम जो CAA, NRC, शाहीन बाग़, दिल्ली दंगों के बारे में ढंग से न समझने वाले भी आज अच्छे से जानते हैं. एक ऐसा नाम जो दुनिया के सबसे बड़े गणतंत्र में ‘बिन ब्याही मां’ के रूप में फैलाया गया है.


सफ़ूरा ज़रगर जामिया मिलिया इस्लामिया से Phd कर रही एक छात्रा हैं. पिछले साल जब केन्द्रीय सरकार ने सीएए और एनआरसी लागू कर दिया तो देशभर में इसका पुरज़ोर विरोध हुआ. विरोधप्रदर्शकों में से एक सफ़ूरा भी थीं. सीएए-एनआरसी के साथ कुछ और नाम भी हर भारतीय को रट गये हैं- जैसे जामिया, जेएनयू, एएमयू, शाहीन बाग़, दिल्ली दंगे. 

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देश में फ़िलहाल कोविड-19 अपने पांव तेज़ी से फैला रहा है. एक तरफ़ तो कई राज्य कोविड-19 मुक्त हो रहे हैं लेकिन दूसरी तरफ़ पॉज़िटिव केस की संख्या में तेज़ी से इज़ाफ़ा भी हो रहा है. इस सबके दरमियां दिल्ली पुलिस ने दिल्ली दंगों की तफ़तीश शुरू कर दी. इस तफ़तीश का ही हिस्सा है कि दिल्ली पुलिस कई छात्र संगठनों के प्रमुखों को गिरफ़्तार कर रही है, दिल्ली में दंगे करवाने के षड्यंत्र रचने के आरोप में अप्रैल के शुरुआत में दिल्ली पुलिस ने कई छात्र नेताओं को हिरासत में लिया, उनके फ़ोन को अपने कब्ज़े में लिया. इन छात्रों पर पुलिस ने यूएपीए (अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रिवेन्शन एक्ट) लगाया. दिल्ली पुलिस ने उमर ख़ालिद, मीरन हैदर और सफ़ूरा ज़रगर पर ये एक्ट लगाया.

 
सवाल उठना लाज़मी है कि जब कई छात्रों के फ़ोन छीने गये, केस दर्ज हुआ तो सफ़ूरा ही इतनी मशहूर क्यों हो गईं. मीरान हैदर की गिरफ़्तारी 2 अप्रैल को हुई. सफ़ूरा पर दिल्ली पुलिस ने आरोप लगाया कि बीते फरवरी में दिल्ली के जाफ़राबाद में हुए सीएए, एनआरसी विरोध का नेतृत्व उन्होंने किया था.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, गिरफ़्तारी के अगले दिन, सफ़ूरा के वक़ील ने बेल की अर्ज़ी दी और बताया कि सफ़ूरा गर्भवती हैं, लेकिन फिर पुलिस ने उन पर दंगे भड़काने का आरोप लगाया और 13 अप्रैल को उन्हें दोबारा जेल भेज दिया गया. इसके बाद उन पर यूएपीए लगाया गया.  

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जैसा कि अमूमन हमारा समाज करता है सफ़ूरा पर लांछन लगाने का सिलसिला शुरू हो गया. ट्विटर के ब्लू टिक धारियों से लेकर ट्रोल्स तक, यहां तक कि फ़ैमिली वॉट्स ऐप ग्रुप्स तक सफ़ूरा पर भद्दी टिप्पणियां की जाने लगी.

जब मामला हर हद पार कर गया तब सफ़ूरा के परिवार को ये बात दुनिया को बतानी पड़ी कि सफ़ूरा विवाहिता हैं लेकिन लोग यहां नहीं रुके. 
बेशर्मी की हदें पार करते हुए लोग एक पॉर्नस्टार का वीडियो, सफ़ूरा के वीडियो के नाम पर वायरल करने लगे. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ये वीडियो, तस्वीरें, केन्द्रीय सरकार, बीजेपी का समर्थन करने वाले ग्रुप्स पर भी बड़े पैमाने पर किया जा रहा था. 

पुलिस महकमे से जुड़े लोग, नेता, आम जनता तक सफ़ूरा के बारे में अपशब्द कह रहे हैं. उन पर इतनी भद्दी टिप्पणियां की जा रही हैं जिन्हें सोचकर कोई भी अंदर तक कांप जाये.


सफ़ूरा पर छिंटा-कशी करने वालों में महिलाएं भी शामिल हैं.   

अक़सर ये देखा गया है कि जहां कोई महिला उठ खड़े होने की कोशिश करती है, अपना मत रखने की कोशिश करती है, समाज के ठेकेदार जो उस मत से सहमत नहीं होते उसे अलग-अलग तरीकों से नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं. उसके शरीर से लेकर, उसके ज़िन्दगी के हर निर्णय पर अपना जजमेंट देते हैं. ऐसे करने की दिशा में लोग इतना नीचे गिर जाते हैं कि स्त्री सम्मान आदि कोई मायने नहीं रखते. ये ‘रस्म-ओ-रिवाज़’ पूरी दुनिया में फ़ॉलो किया जाता है. सफ़ूरा के साथ भी यही हो रहा है, उन्होंने किसी विशेष मामले पर अपना मत रखा, कई महिलाओं ने रखा लेकिन वो जेल गई और जेल में पता चला कि वो गर्भवती है, लोगों को मानो मौक़ा मिल गया और उनके चरित्र हनन कर मज़ा लेने वालों का तांता लग गया. हमारी समझ में ये नहीं आता कि अगर सफ़ूरा ्अविवाहित होते हुए भी गर्भवती होतीं तो क्या उनके पास किसी मामले पर विरोध करने का हक़ नहीं रहता, ये लोग होते कौन हैं उन पर कीचड़ उछालने वाले? सबसे दुखद तो ये है कि ट्रोल करने वाले और भद्दी बातें कहने वाले ये लोग किसी भी अदालत में नहीं घसीटे जाते. ये आते हैं, बकते हैं और चले जाते हैं. फिर किसी और ‘सफ़ूरा’ का इंतज़ार करते हैं. 

ये मामला दिल्ली पुलिस और साईबर पुलिस और हमारे समाज पर कई सवाल भी खड़े करती है- – क्या किसी गर्भवती महिला को जेल में बंद रखना, क्या क्रूरता नहीं है?

– फ़ेक न्यूज़ फैलाने वालों पर नकेल क्यों नहीं कसी जाती?
– ब्लू टिक धारी जो मन आये वो बोलने का अधिकार क्यों रखते हैं?
– अगर कोई महिला सरकार का विरोध कर रही है तो उसके बच्चे को नाजायज़ कहने वाले आप कौन होते हैं?

मीडिया रिपोर्टस् की माने तो सफ़ूरा को मेडिकल फ़ैसिलीटी मुहैया करवाई जा रही है. लेकिन देश का न्यायतंत्र मौन क्यों है?  

Amnesty International ने भी सफ़ूरा को रिहा करने की मांग की

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इस पूरे मामले पर सफ़ूरा के परिवार की सदस्य ने ये कहा- 

  बहुत से लोगों का ये मानना है कि अगर वो किसी महिला के शरीर, उसके निजी संबंधों का तमाशा बना देंगे, ‘इज़्ज़त’ उछालेंगे तो वो डर कर वापस चारदिवारी में क़ैद हो जायेगी. जनाब, वो ज़माना गया जब महिलाएं डर के अंदर बैठ जाती थीं या बाहर ही नहीं निकलती थी. आज की महिलाएं न सिर्फ़ अपने हक़ के लिए बोलना बल्कि घर से निकल कर महिनों पर सड़क पर बैठना भी जानती हैं! महिलाएं आपके ट्रोल्स से डरने वाली नहीं हैं, आप एक को गिराने की कोशिश करिए 10 खड़ी हो जायेंगी!