कोरोना वायरस कि वजह से बंद पड़ी दुनिया के चलते दुनियाभर के कारोबार को गहरा असर पड़ा है. अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. कई दफ़्तरों में लोगों को अपनों तनख़्वाह कट कर मिल रही है तो कई में हज़ारों कर्मचारियों को नौकरी से निकल दिया गया है.
ऐसा ही एक केस आंध्र प्रदेश राज्य के नेल्लोर नगर से सामने आया है.
15 सालों से शिक्षक की नौकरी कर रहे 43 वर्षीय, पत्तेम वेंकट सुब्बैयह को जब नौकरी से निकल दिया गया तो घर चलाने के लिए उन्होंने केले बेचना शुरू कर दिया.

पत्तेम एक कॉर्पोरेट स्कूल में संस्कृत और तेलुगू पढ़ाते थे.
TOI के मुताबिक़, देश में लॉकडाउन लगने के बाद से ही स्कूल प्रशासन ने उन्हें वेतन का 50 प्रतिशत दिया. इसके साथ ही, आगे भी यही नौकरी जारी रखने और अगले माह का वेतन पाने के लिए स्कूल वालों ने, पत्तेम से नए सत्र में एडमिशन के लिए कम से कम 6 से 7 उम्मीदवारों को लाने की शर्त रखी.
इस बात पर पत्तेम,

पत्तेम शादी-शुदा हैं और उनके दो बच्चे भी हैं. आर्थिक तंगी के चलते उनके पूरे परिवार को काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.
जहां पत्तेम को बतौर शिक्षक, प्रति माह 16,080 रुपये का वेतन मिल रहा था. वहीं अब नौकरी से निकाले जाने के बाद एक दिन का 200 रुपये कमाना भी उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया है.
इन सब के ऊपर, पत्तेम ने अपने बेटे के इलाज के लिए किसी निज़ी वित्तदाता से 3.5 लाख रुपये का लोन ले रखा है, जिसका 8,000 रुपये का मासिक ब्याज है.

जब नेल्लोर ज़िले के शैक्षिक अधिकारी M Janardhanacharyulu से इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा, ” इस मुद्दे को हमारे संज्ञान में लाया गया है. हम इस मामले में विस्तृत पूछताछ करेंगे. हमने सभी प्राइवेट स्कूलों के प्रशासन को भी निर्देश दिया है कि वो लॉकडाउन के दौरान अपने सभी स्टाफ़ को पूरा वेतन दें.”